बैसरन घाटी में मौजूद रहे पति-पत्नी ने बयां की दहशत की दासतां,पत्नी ने निकाली बिंदी तो पति ने रक्षा

 घोड़े से उतरते समय पत्नी के हाथ में चोट के कारण कुछ पहले ही रुक कर नाश्ता कर रहे थे दंपति,तभी तड़तड़ाई गोलियां

ड्राइवर ने कहा कि 28 लोगों की नहीं बल्कि पर्यटकों की वजह से पल रहे लाखों परिवारों की हुई है हत्या

हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट 





जौनपुर । पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकी वारदात के समय घाटी से 700 मीटर दूर मौजूद अधिवक्ता सूर्यमणि पांडेय और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी निवासी भूपतपट्टी मुस्तफाबाद ने पहलगाम से लौटने के बाद दहशत की दास्तान बयां किया।


अधिवक्ता ने बताया कि 18 से 24 अप्रैल का हम लोगों का कार्यक्रम था। यहां से श्रीनगर पहुंचने के बाद 18 से 21 तारीख तक श्रीनगर रहे।दूसरे दिन सुबह 22 तारीख को पहलगाम के लिए निकले वहां पहुंच कर बैसरन घाटी जिसे मिनी स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है वहां जाने के लिए दो घोड़ा किया। सड़क से 5 किलोमीटर तक का सफर घोड़े से तय कर बैसरन घाटी पहुंचे वहां नाश्ता पानी के लिए घोड़े से उतरते समय पत्नी विजयलक्ष्मी के हाथ में चोट लग गई और सूजन आ गई। पत्नी ने कहा कि अब आगे नहीं जा पाएंगे। यहीं से वापस लौटिए।तब वहीं पास की कैंटीन में नाश्ता करने लगे। तभी घाटी में सात-आठ सौ मीटर दूर तीन-चार फायर की आवाज आई। घोड़े वालों ने कहा कि गुब्बारा फूटा होगा।धुआं दिख रहा था।तभी कुछ लोग दौड़ते हुए बचाओ बचाओ कहते हुए हम लोगों की तरफ आने लगे और बोले कि टेररिस्ट अटैक हुआ है। हम लोग यह सुनकर कांप उठे और पैदल ही भागने लगे। घोड़े वाले दौड़ते हुए हम लोगों के पीछे आए और कहे फायरिंग हुई है।आप लोग घोड़े पर बैठें और तुरंत नीचे चलिए। मोबाइल निकाला तो घोड़े वाले ने मना किया कोई रिकॉर्डिंग या फोटोग्राफी न करो, जान बचाओ। हाथ का कलवा और शिखा काटने को बोला व पत्नी से सिंदूर, बिंदी निकालने को कहा। पत्नी ने बिंदी निकाल दिया। सिंदूर टोपी के नीचे छिपा ली। पत्नी रोने लगी। घोड़े वाले ने कहा कि आप डरिए मत औरतों को नहीं मारते हैं।रास्ते में दौड़ते हुए जो लोग आ रहे थे वह कह रहे थे कि हिंदू पूछ कर गोली मार रहे हैं।इतनी देर में तीन-चार बार फायरिंग की आवाज और सुनाई पड़ी। करीब 25 मिनट में हम लोग घोड़े से पहलगाम पहुंचे तब तक वहां सीआरपीएफ के लोग आ गए थे।गाड़ी में बैठ गए सीआरपीएफ कवर करते हुए होटल तक लाई और यह हिदायत दिया कि आप लोग बाहर न निकलें। करीब 3:30 बजे हम लोग होटल में पहुंच चुके थे। होटल वाले व ड्राइवर कैंडल जुलूस निकाले। नारा लगा रहे थे की मेहमान हमारी जान है,कश्मीर की पहचान है, कत्लेआम बंद करो। कहे कि हम लोग अपनी जान दे देंगे आप लोगों को कुछ नहीं होने देंगे।कहा कि आतंकियों ने 28 लोगों को नहीं मारा बल्कि हम जैसे होटल वालों,ड्राइवर, कपड़े बेचने वाले, कैंटीन वाले आदि लाखों परिवारों को मारा है जिनकी रोजी-रोटी पर्यटकों की वजह से ही चलती है।अब हम लोग भुखमरी में आ जाएंगे। अधिवक्ता ने बताया कि हम लोग दहशत के मारे रात भर जागते  रहे। हेलीकॉप्टर की आवाज, पुलिस सायरन की आवाज से रात भर भय का माहौल बना था। अगले दिन 23 तारीख को सीआरपीएफ की सुरक्षा में हम लोग श्रीनगर डल झील गए। वहां हाउसबोट में रात भर रहे। 24 को सुबह श्रीनगर से फ्लाइट से दिल्ली, दिल्ली से बाबतपुर और बाबतपुर से चार पहिया वाहन से यहां आए।अधिवक्ता ने बताया कि अगर पत्नी के हाथ में चोट न लगी होती तो हम लोग भी घटनास्थल पर पहुंच गए होते और हो सकता है कि जिंदा भी न बचते।

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