तेलंगाना में सिर्फ वोट, सपोर्ट और नोट के लिये उत्तर भारतीयों का इस्तेमाल

 

कुछ ही दिनों में हैदराबाद में नगर निकाय के चुनाव होने वाले हैं। चुनाव की आहट को देखते ही कुछ राजनीति दल उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के लोगों के हितैषी बनने के होड़ में लग गये हैं। छोटे—मोटे आयोजन करके उनको लुभाने की कोशिशें की जा रही है जबकि समस्याओं से जूझ रहे लोगों के मदद के लिए कोई राजनीतिक दल सामने नहीं आता है। तेलंगाना में लाखों की संख्या में रहने वाले पर प्रांतियों के लिए कोविड में दो वक्त की‌ रोटी जुटाना एक बड़ी समस्या थी। साथ ही उस समय लोग अपने घर जाने के लिए परेशान थे। कोविड की संकट की घड़ी में आज हिमायती बनने वाले दल के लोगों ने यूपी बिहार के मजदूरों का हाल-चाल भी नहीं लिया। मौजूदा बीआरएस सरकार जो भी मदद कर पाई, उसी के सहारे लोग घर पहुंचे और तमाम कठिनाई उठाकर किसी तरह अपनी जिंदगी बचाई।‌ आज बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या ट्रेन को लेकर है।

उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए नियमित एक ट्रेन ही है। इस ट्रेन में लोगों को बहुत मुश्किल कर आरक्षित सीट मिलती है। गर्भवती महिलाओं, वृद्धजनों के लिए हैदराबाद से यूपी बिहार की यात्रा आसान नहीं है। श्री राम मंदिर अयोध्या, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी आदि तीर्थस्थल होने के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के लोग भी वाराणसी भारी संख्या में आते हैं। यात्रियों की संख्या तो बढ़ती जा रही रही है लेकिन ट्रेन की संख्या नहीं बढ़ रही है। बरसों से लोग यूपी बिहार के लिए नई ट्रेन चलाने की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे पर तेलंगाना कोई नेता या कोई राजनीतिक दल काम नहीं कर रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि उत्तरप्रदेश और बिहार के नेता भी पटना व वाराणसी से सिकंदराबाद के लिए ट्रेन चलवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं। बड़े-बड़े नेता केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकारों के मंत्री, सांसद-विधायक तेलंगाना के दौरे पर आते हैं। यूपी, बिहार के लोगों से स्वागत करवाते हैं और मीठा-मीठा आश्वासन देखकर चले जाते हैं। सिर्फ चुनाव वे अपने संबंधित दलों के प्रचार लिए आते हैं। लाखों की संख्या में तेलंगाना में रह रहे लोगों का कोई राजनीतिक दलों में प्रतिनिधित्व नहीं है। किसी दल ने अभी तक नियमित रूप से उत्तर भारतीय समाज आने वाले लोगों को पार्षद तक नहीं बनाया है।
इतना ही नहीं, संगठन में जिम्मेदार पदाधिकारी भी नहीं बनाया है जबकि तेलंगाना के पूर्व भाजपा अध्यक्ष डा. के. लक्ष्मण उत्तर प्रदेश भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं। उत्तर भारतीयों के सामने कोई समस्या आती है तो वह अपनी बात किसके सामने जाकर रखें और किसको अपनी पीड़ा बताएं। आज के दौर में सिर्फ उनका इस्तेमाल राजनीतिक दल वोट, सपोर्ट और चंदे के लिए कर रहे हैं। चुनाव के बाद समाज के लोगों को दरकिनार कर देते हैं। अपने साथ जो राजनीतिक दल यूपी, बिहार के लोगों को जोड़ने की बात कर रहे हैं तो उनको यह भी बताना पड़ेगा तेलंगाना के विकास में अपना खून पसीना लगाने वाले लोगों के लिए उनकी पार्टी के पास कौन सा ठोस प्लान है। बार-बार उत्तर भारतीय ठगे गए हैं। फिर कुछ चंद लोगों को मोहरा बनाकर जीएमसी के चुनाव में ठगने की फिर तैयारी है।
मजेदार बात यह है कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश, बिहार के लोगों के लिए कार्यक्रम आयोजित कर संयोजन बन जाते हैं लेकिन उनका समाज के लोगों की समस्याओं से कोई दूर-दूर तक लेना देना तक नहीं है। बस वह यह सब इसलिए कर रहे हैं, ताकि किसी राजनीति दल उनका भला हो जाय। इन दिनों एक उत्तर भारतीय हैदराबाद में काफी चर्चा में है। वे बेचारे संयोजक बनने की होड़ में लगे रहते हैं। कई बार उत्तर भारतीय मजदूरों के साथ मारपीट की जाती है। वेतन नहीं दिया जाता है। कभी-कभी दुर्घटना का शिकार होकर मजदूर मर जाते है। उनके शव को पैतृक आवास भेजना होता है। ऐसे में कोई राजनीतिक दल यह कोई बड़ा नेता मदद के लिए सामने नहीं आता है। हां उत्तर भारतीय समाज के कुछ नौजवान और चुनिंदा संस्थाएं इस दिशा में काम करती है। वह नई ट्रेन चलाने की मांग को लेकर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। सभी उत्तर भारतीयों को अपने वोट, सपोर्ट और चंदे कीमत को पहचानना होगा और सही वक्त पर सही निर्णय लेना होगा।
अजय शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार

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