संघ मुख्यालय नागपुर: पीएम मोदी के आने के राजनीतिक मायने!
-अटकलों में सवालों की झड़ी: पीएम के रूप में मोदी अपने तीसरे कार्यकाल यानी 11 वें साल में पहली बार संघ मुख्यालय आये यह राजनीति के लिहाज से ऐतिहासिक घटना हुई, उन्होंने 'गुरु जी और डॉ केशव बलराम हेडगेवार' की प्रतिमा के आगे शीश नवाया, वह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षा भूमि पर भी गए इसके भी मायने निकाले जा रहेl
----------------------------------------
कैलाश सिंह-
राजनीतिक संपादक
----------------------------------------
नागपुर/दिल्ली,l 30 मार्च 2025 रविवार का दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष के इतिहास में 'तारीख' बन गयाl संघ के अनुसांगिक संगठनों में शुमार भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक संगठन हैl यह संघ की मर्जी के बगैर अपनी मनमानी नहीं कर सकताl पीएम नरेंद्र मोदी के पहुँचने से भाजपा का यह भ्रम दूर हुआ और इसी के साथ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा दिये अथवा दिलाये गए बयान कि - संघ के बगैर भाजपा खुद में सक्षम हो गई है l जबकि इसी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 240 सीट रूपी करंट के झटके की अहम भूमिका मोदी के नागपुर आने में मानी जा रही हैl
दरअसल पीएम मोदी के नागपुर आने से संघ और भाजपा के बीच बयानबाजी के जरिये जारी शीत युद्ध या यूं कहें उनके बीच का गतिरोध सही मायने में अब दूर हुआ हैl भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जिस संघनिष्ठ व्यक्ति के नाम की घोषणा होनी है उसका चयन हो चुका हैl इनमें पार्टी के पूर्व संगठन महासचिव संजय जोशी का नाम पहले नम्बर पर स्थान बनाए हुए हैl अध्यक्ष के नाम पर अनुमोदन 18 अप्रैल 2025 को बेंगलुरु में होने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में होगाl
राजनीतिक विश्लेषकों का कयास है कि मोदी द्वारा संघ की सहमति से पार्टी की सक्रिय राजनीति से रिटायर होने की निर्धारित उम्र 75 साल अब खुद मोदी पर लागू होने में महज छह महीने दूर रह गई हैl यानी 17 सितंबर 2025 कोl अब वह लालकृष्ण आडवाणी सरीखे कद्दावर नेताओं की कतार में शुमार होकर मार्गदर्शक मंडल में जाएंगे या कोई संवैधानिक पद लेकर 'पॉवर सेंटर' का हिस्सा बनेंगे? उनके बाद अगला पीएम कौन? यह सवाल भी तीन नामों के साथ जवाब लेकर नागपुर की फिजाओं में तैरने लगाl इसमें पहला और सर्वाधिक मजबूत नाम है नितिन गडकरी काl इनके बहुत अंतर के बाद दूसरा नाम उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का आता है, जो संघ की नज़र में हिन्दू महासभा से निकले हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बन चुके हैं, लेकिन संगठन संचालन में वह दक्ष नहीं माने जाते हैंl बुलडोजर को लेकर उनके ख्यतिलब्ध किंतु कठोर नीति को अपनाने वाले महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस का नाम तीसरे नम्बर पर हैl इनके पास संगठन संचालन का अनुभव है और वह संघ की पृष्ठिभूमि से आते हैं l
दिलचस्प पहलू यह है कि संघ के सांचे में कथित राजनीतिक चाणक्य अमित शाह कहीं नहीं दिख रहेl मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद अमित शाह की कोशिश थी कि वह गुजरात के सीएम बन जाएं लेकिन संघ ने उन्हें दूर रखते हुए गृह मंत्री, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनके बेटे को बीसीसीआई आदि के चेयरमैन/सचिव तक स्वीकार लिया लेकिन उन्हें 'नेक्स्ट पीएम' की लिस्ट से बाहर रखा हैl राष्ट्रीय स्तर पर 'मोदी के साथ शाह' ने राजनीतिक विरोधी की बजाय राजनीतिक शत्रु अधिक बनाए हैंl' यह बातें सोशल मीडिया के जरिये आमजन के जेहन में भी कौंधती रही हैंl इसका निहितार्थ यही निकाला जा रहा है कि मोदी का राजनीतिक ट्रैक बदलते ही शाह के लिए ट्रैक अदृश्य हैl
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि संघ की ठोस प्लानिंग या कंक्रीट बातचीत मीडिया में भी छानकर दी जाती हैं l यही कारण है कि संगठन पदाधिकारियों के हावभाव और एक्सप्रेशन से अटकलों की उड़ान को पंख लगते हैंl फ़िर भी नागपुर के संघ मुख्यालय पर नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी, संघ प्रमुख मोहन भागवत से पीएम मोदी की बातचीत से यह तय नज़र आया कि भाजपा से बड़ा संघ था, है और रहेगा l 'अध्यक्ष हो या पीएम' इन पदों पर बैठने वाले नेता का संघनिष्ठ होना अनिवार्य हैl मीडिया से कम शब्दों में बातचीत के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक और स्वयं सेवक रहे हैं, इसी नजरिये से वह संघ मुख्यालय नागपुर आयेl