यदा कदा ही दर्शन मिलते हैं हाथियों के, चिड़ियाघर पहुंच से दूर हैं सरकार

 

जौनपुर। जनपद की जनसंख्या वर्तमान में लगभग पचास लाख के ऊपर है जिसमें दस बारह वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या भी लगभग दस लाख के ऊपर ही है। बच्चों की इतनी बड़ी आबादी शेर,बाघ,हाथी, जिराफ़, दरियाई घोड़ा, गैंडा,हिरन आदि जंगली जानवरों के  दीदार के लिए तरसती रहती हैं।यदा कदा ही शादी विवाह के दौरान ही सड़कों पर चलते हुए हाथियों के दर्शन हो जाते हैं। पहले शादी विवाह में द्वार पूजा के समय में हाथियों को जरूर मंगवाया जाता था। स्थानीय स्तर पर हाथियों की उपलब्धता भी रहती थी।दस पांच गांवों में कोई न कोई शौकीन हाथी घोड़ों को जरूर पालता था लेकिन बदले समय ने सबकुछ बदल दिया। शादियों में घोड़ों के रथ दिख जाते हैं लेकिन हाथियों का दर्शन दुर्लभ ही है।यह मछलीशहर विकास खंड के बंधवा बाजार का दृश्य है जहां सड़क पर सुबह हाथी दिखते ही बच्चों की फौज आंखें फाड़कर देख रही है लेकिन हाथी है कि रुक- रुक आगे बढ़ता ही जा रहा है। हाथी के आंख से ओझल होते ही बच्चों के चेहरे पर उदासी दिखने लगती है कारण साफ है साल दो साल के गये फिर कभी दैव योग से ही हाथी दिखेगा।


बच्चों की इस मायूसी के पीछे सबसे बड़ा कारण जौनपुर और उसके पड़ोसी जनपदों में किसी चिड़ियाघर का न होना है। प्रदेश के तीनों बड़े चिड़ियाघर लखनऊ, कानपुर और गोरखपुर बहुत दूर हैं। पड़ोसी वाराणसी जनपद का सारनाथ डियर पार्क है, शेष जंगली जानवरों दर्शन बच्चों को दीदार करना बहुत ही कठिन है।एल के जी में पढ़ने वाले साहस सिंह हाथी के चले जाने के बाद दुबारा ज़िद करते हुए कहते हैं कि जौनपुर और मछलीशहर जहां भी चिड़ियाघर हो चलने को तैयार हूं हाथी दिखाइये। उनके बड़े भाई धैर्य सिंह उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि चिड़ियाघर जौनपुर में ही नहीं है बल्कि वाराणसी और प्रयागराज में भी नहीं है। गोरखपुर, लखनऊ और कानपुर की दूरी इतनी है कि वहां जाने के लिए सोचना पड़ेगा।

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