महाकुम्भ: डिजिटल युग में लहराती सनातन की वैश्विक पताका

महाकुम्भ: अध्यात्म और वर्तमान परिवेश

भारत भूमि को ऋषि-मुनियों, संतों और अध्यात्म का केंद्र माना जाता है। इस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में कुंभ मेले का विशेष स्थान है। हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाला महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। यह मेले का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चतुर्भुज क्रम में होता है। वर्तमान के डिजिटल युग में इस महाकुंभ की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार होने के कारण विश्व के कोने-कोने से लोग इन तीर्थों पर आ रहे हैं। अशांत मन और आंतरिक शांति की खोज करने वाले श्रद्धालु संतों के बीच बैठकर उनके प्रवचन और विचार सुनकर आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि धन—सम्पदा का भोग करने के बाद उन्हें जिस शांति की तलाश थी, वह ऐसे महोत्सव पर ही मिल रहा है। केंद्र और प्रदेश सरकार ने इस आयोजन पर जो खर्च किया है, उससे सनातन धर्म के लोगों में आत्मविश्वास के साथ एक जुटती भी दिख रही है। संगम में डुबकी लगाने के बाद उन्हें ऐसा एहसास हो रहा है कि वह दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से मुक्त हो गये हैं।


महाकुम्भ का अध्यात्मिक महत्व

महाकुम्भ मेले का स्नान तन मन धन की पवित्रता के साथ जुड़ा हुआ है। इसकी पौराणिकता समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है जिसमें अमृत कुंभ के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरीं और उन स्थानों को पवित्र तीर्थस्थल के रूप में मान्यता दी गई। महाकुंभ इन स्थलों पर एक आध्यात्मिक पर्व के रूप में मनाया जाता है। महाकुम्भ के दौरान साधु-संत, महंत, और नागा संन्यासी एकत्र होते हैं। विभिन्न अखाड़ों के संन्यासियों का यह मिलन अध्यात्म के विविध रूपों का संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ लोग गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। यह आयोजन व्यक्ति को बाहरी और आंतरिक शुद्धि का संदेश देता है।

वर्तमान परिवेश में महाकुम्भ का महत्व

डिजिटल युग में इंसान मशीन हो गया है। यह मशीन की चार्जिंग का संबंध धन से जुड़ा हुआ है। जब तक शरीर में चार्जिंग है तब तक धान का आवागमन बना हुआ है। ऐसे आधुनिक जीवनशैली में लोग भाग—दौड़ और तनाव से घिरे रहते हैं। इस पृष्ठभूमि में महाकुंभ आध्यात्मिकता और आंतरिक शांति की खोज का अवसर प्रदान करता है। महाकुम्भ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन के गहरे अर्थों को समझने और आत्मनिरीक्षण का भी समय है।

संस्कृति और एकता का प्रतीक

केंद्र और प्रदेश की सरकार ने वैश्विक स्तर पर इसका प्रचार प्रसार किया। मगर दुर्भाग्य की बात है की उत्तर प्रदेश की विधानसभा में इस पर चर्चा के दौरान विपक्ष दूसरी ही लाभ कर रहा था। जहां भाजपा की सरकार सनातन और हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश कर रही थी, वहीं संभल के नाम पर समाजवादी पार्टी बांटने का काम कर रही थी। शायद सपा मुखिया को ईश्वरी शक्ति का अंदाजा नहीं। या यह भी हो सकता है कि मुस्लिम बोर्ड की राजनीति के तहत हुआ नाटक कर रहे हो। अब लगता है कि उन्हें पश्चाताप के लिए याद आ गया कि महाकुंभ में जाना चाहिए। ऐसी खबरें पार्टी के सूत्रों से निकलकर आ रही है। शायद उन्हें यह लगने लगा कि पाप और पुण्य का हिसाब इसी धरती पर होना है। महाकुंभ मेले में देश के विभिन्न भागों से लोग आते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है। यहां विभिन्न समुदायों के लोग मिलते हैं जो भारत की "एकता में अनेकता" की भावना को सुदृढ़ करता है।

पर्यावरण और स्वच्छता के प्रति जागरूकता

आज के समय में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। महाकुम्भ में स्वच्छता और गंगा नदी के संरक्षण पर भी जोर दिया जाता है। इस आयोजन ने पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

डिजिटल युग ने दिया वैश्विक मंच

वर्तमान में डिजिटल तकनीक ने महाकुंभ को विश्वव्यापी मंच प्रदान किया है। ऑनलाइन दर्शन, वर्चुअल गाइड और डिजिटल प्रसारण के माध्यम से लोग दुनियाभर से इस मेले का हिस्सा बन रहे हैं। यह आधुनिक तकनीक और प्राचीन परंपराओं का अद्भुत संगम है।

अध्यात्मिकता का संदेश
महाकुम्भ हमें यह सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है। यह आत्मा के शुद्धिकरण, परोपकार और आध्यात्मिक उत्थान का अवसर है। यह पर्व अहंकार का त्याग कर सामूहिकता और मानवता की भावना को प्रबल करता है।

महाकुम्भ: वैश्विक आकर्षण

महाकुम्भ मेले का आकर्षण न केवल भारतीयों बल्कि विदेशी पर्यटकों के बीच भी है। योग, ध्यान, साधना और भारतीय संस्कृति को जानने की चाह रखने वाले लोग बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। यह आयोजन भारत की आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि को विश्व मंच पर प्रस्तुत करता है। कहने का कुल आशय यह है कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज का आइना है। यह आयोजन अध्यात्म और भक्ति का ऐसा संगम है जो जीवन को संतुलित, सरल और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। आधुनिक परिवेश में महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है, बल्कि यह हमें प्रकृति, मानवता और आत्मिक शांति के महत्व को भी याद दिलाता है।

डॉ सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर।

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