स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्यनाथ उपाध्याय की 27 वी पुण्य तिथि पर पत्रों को दिया गया कम्बल
सूर्यनाथ उपाध्याय तरुणावस्था में ही अपने खून से फार्म भरकर भगत सिंह के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद घर से बाहर निकले तो आजादी मिलने के बाद ही चैन की सांस ली।
श्री उपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1918 को एक संभ्रांत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने 1938 में सत्याग्रह में भाग लिया। 18 मार्च 1941 को पहली बार अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। नौ माह की कठोर कारावास हुआ। सौ रुपए जुर्माना न देने पर सजा तीन माह और बढ़ा दी गई। जेल से छूटने के बाद सिरसी, बरईपार के शिव मंदिर पर क्रांतिकारियों की बैठक में उन्हें संगठन का कमांडर चुना गया। उनकी अगुवाई में मछलीशहर तहसील पर धावा बोला गया और सुजानगंज थाना लूट लिया गया। ताहिरपुर में बने छावनी को तहस नहस कर दिया। कई गोदाम, डाकखाने लूटने के साथ सई नदी पुल तोड़ने, कुल्हनामऊ में डाक लूटने के बाद इन्हें साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया। हरदोई रेलवे स्टेशन पर नारा लगाते समय अंग्रेज अफसर से कहा सुनी हुई तो लोटे से प्रहार कर उसका सिर फोड़ दिया। जेल में अंग्रेजों ने बर्बरतापूर्ण यातना दी।
सूर्यनाथ उपाध्याय की आज 27 वीं पुण्यतिथि उनके गांव में सादगी पूर्वक मनाया गया। उनके पौत्र संजय उपाध्याय ने बताया कि दादा जी हमेशा गरीबों मजलूमों की सेवा करते थे इस लिए आज उनके पुण्यतिथि के मौके पर एक सौ से अधिक पत्रों में कम्बल वितरित किया गया।
महान आत्मा को याद करने का बहुत अच्छा तरीका, हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं
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