जौनपुर पहुंचे 15 सदस्यीय एनसीसी दल का हुआ जोरदार स्वागत

 

जौनपुर। उत्तर प्रदेश एनसीसी के 15 सदस्यीय साइक्लोथोन दल का शहर आगमन पर भव्य स्वागत किया गया। 7 जनवरी को मेरठ से 2025 किलोमीटर की साइकिल यात्रा पर निकले 15 सदस्यीय दल का पूनम यादव पत्नी शाहिद सिपाही जिलाजीत यादव ने झंडी दिखाकर स्वागत किया। 5 छात्राओं सहित यह दल प्रदेश में 1857 की क्रांति के प्रमुख स्थान पर श्रद्धांजलि अर्पित कर नगरवासियों को इस ऐतिहासिक घटना की पूरी जानकारी देगा और युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों के बलिदानों की याद दिलाते हुए खुद को सशक्त भारत बनाने की प्रति प्रतिबद्ध करेगा। रोजाना औसतन 113 किलोमीटर की 18 दिवसीय यात्रा के अंत में इस दल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गणतंत्र दिवस समारोह की श्रृंखला में आयोजित एनसीसी की पीएम रैली के दौरान फ्लैग इन किया जाएगा।

ज्ञात हो कि अंग्रेजों से पहले 2000 वर्षों में भारत अनेक साम्राज्य या छोटे राजघराने द्वारा शासित किया जाता था। 1608 में अंग्रेज आए और अगले 100 वर्षों में उन्होंने लगभग पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा कर लिया। सन 1825-50 के दौर में भारतीय मूल के सैनिकों से बनी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा न सिर्फ पूरे हिंदुस्तान में उनके आर्थिक हितों की रक्षा कर रही थी, बल्कि अंग्रेजों की ओर से अफगानिस्तान, चीन, वर्मा, पर्शिया और क्रीमिया में भी लड़ रही थी परंतु सैनिकों के कल्याण के बारे में कोई सोच नहीं थी। 1855 के आस—पास अंग्रेजी शासन के खिलाफ रोष और बढ़ने लगा प्रमुखता कठोर शासन प्रणाली खेती-बाड़ी पर बढ़ता लगान, स्थानीय उद्योगों का खत्म करना और भारतीय मूल के राजघराने पर कब्जा इसके मुख्य कारण थे। इसी समय सैनिकों के लिए एक नई राइफल आई जिसमें गोली को मुंह से काटकर भरा जाता था ऐसा माना जाता था की गोली पर गाए और सूअर की चर्बी से लेप होता था, जो भारतीय सैनिकों के धर्म के खिलाफ था। ऐसी स्थिति में फरवरी 1857 में एक पलटन ने उक्त कारतूसों को इस्तेमाल करने से मना कर दिया। उन सैनिकों को निरस्त कर दिया गया। इस मसले पर क्षोभित होकर मंगल पांडेय ने अंग्रेजी अधिकारी पर हमला किया जिसके लिए उनको फांसी दी गई। इस खबर ने रोष और बढ़ा दिया जगह-जगह पर विदोह होने लगे।
उत्तर प्रदेश में मेरठ मुरादाबाद बरेली बनारस इलाहाबाद लखनऊ और कानपुर उसके प्रमुख केंद्र रहे। सैनिकों के विद्रोह को किसानों व्यापारियों जमींदारों और कारीगरों ने भी पूरी तरह साथ दिया अंग्रेजी शासन ने इन इलाकों को मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसी से अफगानिस्तान नेपाल और दक्षिण एशिया से सेना एकत्रित कर अगले डेढ़ साल में अपने काबू में किया। हार और भारी नुकसान के बावजूद इस घटना ने आगे आने वाले समय में भारत की स्वाधीनता की राह प्रशस्त की। इसी का 1857 की क्रांति को सही मायने में भारतीय आजादी का प्रभाव प्रथम युद्ध कहा जाता है।
इस अवसर पर ग्रुप कैप्टन विकास पंजियार ग्रुप कमांडर एनसीसी ग्रुप मुख्यालय वाराणसी, कर्नल शंकर सिंह गौतम सीओ-96 उत्तर प्रदेश वाहिनी एनसीसी, लेफ्टिनेंट कर्नल नवीन सिंह एडम अफसर 96 उत्तर प्रदेश, एनसीसी कर्नल निकेत सिंह नेगी सीओ 98 उत्तर प्रदेश, डा. एसपी सिंह प्रधानाचार्य टीडी इंटर कालेज, बृजेश यादव डायरेक्टर बाबा बायोटिक एंड रिसर्च सेंटर बदलापुर, सूबेदार फिलिस नायब सूबेदार विगेद्र सिंह सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।

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