बोले अधिवक्ता -दहेज संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का नहीं हो पा रहा अनुपालन
हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट
जौनपुर ।इंजीनियर अतुल की आत्महत्या के मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। आज देश का हर नागरिक न्यायिक व्यवस्था और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर चिंता जाता रहा है। वैवाहिक मामलों के दुरुपयोग को रोकने के लिए दीवानी न्यायालय के अधिवक्ताओं से राय ली गई।अधिवक्ता विकास तिवारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन जो रजनीश बनाम नेहा के मुकदमे में कही गई है, उसका अनुपालन नहीं हो रहा है जिसमें सभी पक्षकारों को अपनी आय, सेविंग अकाउंट, 3 साल का ट्रांजैक्शन, लोन इत्यादि संपूर्ण विवरण भरना आवश्यक है। इस संबंध में पति व पत्नी दोनों पक्ष हलफनामा भी देते हैं लेकिन गलत हलफनामा या बयान में कोई बात गलत साबित होने पर कोई कार्रवाई नहीं होती। गाइडलाइन से संबंधित 32 पेज का प्रोफार्मा है।उसके बजाय चार पेज का प्रोफार्मा भरा जाता है। किसी भी मुकदमे में गाइडलाइन द्वारा जारी प्रोफार्मा नहीं भरा जाता। अतुल वाले मामले में पति-पत्नी दोनों कमाते थे तो दोनों को बच्चों को भरण पोषण देने का आदेश होना चाहिए था।
अधिवक्ता ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि औरतों के उत्पीड़न पर कानून बना है लेकिन आदमियों के उत्पीड़न के संबंध में कोई कानून नहीं बना है।अगर कोई महिला किसी के साथ भाग जाए या गलत संबंध बना ले तो उसे दंडित करने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है।जारता संबंधी प्रावधान भी खत्म कर दिया गया। भरण पोषण की धारा में प्रावधान है कि अगर महिला अपने मन से गई है या गलत संबंध बना ली है तो भरण पोषण की हकदार नहीं होगी लेकिन इस पर साक्ष्य आने के बाद भी विचार नहीं किया जाता। महिला चाहे जो अपराध करें वह पति से भरण पोषण पाएगी ही। दहेज उत्पीड़नके के मामले में निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। पूरे परिवार को मुल्जिम बना देना उचित नहीं है। महिलाएं इसको हथियार की तरह इस्तेमाल करती है। पुलिस चार्जशीट भी लगा देती है और कोर्ट सजा भी कर देती है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का अनुपालन होना चाहिए। अतुल के साथ नाइंसाफी हुई। न्यायिक प्रक्रिया व लड़की पक्ष के उत्पीड़न के कारण उसने आत्महत्या किया।इसमें जितने आरोपी है सभी दोषी है और सभी को दंड मिलना चाहिए।
अधिवक्ता सरस चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि वैवाहिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन अदालतों में नहीं हो रहा है। इसके लिए जनहित याचिका दाखिल करनी चाहिए। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ गया है कि वह लाइलाज बीमारी हो चुकी है। तहसील से लेकर जिलाधिकारी कार्यालय ,यहां के न्यायपालिका में भ्रष्टाचार चरम पर है।दहेज उत्पीड़न के मामले में पूरे परिवार को मुल्जिम नहीं बनाया जाना चाहिए केवल पति से विवाद है तो पति को ही आरोपी बनाया जाना चाहिए। दुष्कर्म के फर्जी मुकदमे भी किए जाते हैं। 156(3) के माध्यम से फर्जी मुकदमा से पूरा परिवार पीड़ित होता है। कोर्ट रूम व ऑफिस में भ्रष्टाचार कुछ हद तक सीसीटीवी कैमरे लगाकर रोके जा सकते हैं।
दीवानी बार के अध्यक्ष सुभाष चंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का अक्षरश: पालन होने पर वैवाहिक मामलों के दुरुपयोग को रोका जा सकता है। पति-पत्नी में विवाद होने पर पांच-पांच,छ:छ: मुकदमे पति व ससुराल वालों पर लाद दिए जाते हैं जिससे पूरा परिवार पीड़ित होता है। दहेज उत्पीड़न के मामलों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए पूरे परिवार को मुल्जिम नहीं बनाया जाना चाहिए। जिरह और बहस भी निष्पक्ष ढंग से हो तो ऐसी घटनाएं न घटें।अतुल ने आत्महत्या किया तो वह निश्चित ही काफी समय से मानसिक रूप से डिस्टर्ब रहा होगा। उसे ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था। ऐसा लगता है कि वह पूर्णतः त्रस्त हो चुका था।
लड़के वाले लड़की का मान सम्मान , मायके से मिला सब धन दौलत हड़प कर घर में रहने तक नहीं दे रहें उपर से लड़की सहित उसके माता-पिता भाई-बहन आदि को चोरी लूट मारपीट जैसी संगीन धाराओं में मुलजिम बना कर जबरन तलाक ले लेते हैं ।498a जैसी कमज़ोर धारा पूरी ipc में नहीं है ।
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