अतुल की 12 मार्मिक अंतिम इच्छा मृत्यु में माता-पिता की 'इच्छा मृत्यु' भी शामिल

  मुकदमे की लाइव सुनवाई और उसके वीडियो व सुसाइड नोट को साक्ष्य में लेने की किया मांग 

लिखा:दोषियों के दंडित होने तक अस्थियों का विसर्जन न हो, दोषी निर्दोष साबित होने पर उसकी राख बहा दी जाए गटर में

हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट 



जौनपुर । न्यायिक व्यवस्था व पत्नी पक्ष के उत्पीड़न से पूरी तरह टूट कर आत्महत्या करने वाले इंजीनियर अतुल ने 12 मार्मिक अंतिम इच्छाओं का जिक्र अपने सुसाइड नोट में किया है। जिसमें 12वीं अंतिम इच्छा में उसने यहां तक कह दिया है कि अगर उत्पीड़न और जबरन वसूली जारी रही तो मेरे बूढ़े मां-बाप को औपचारिक रूप से न्यायालय में 'इच्छा मृत्यु' की मांग करनी चाहिए। आईए इस देश में पतियों के साथ-साथ माता-पिता को भी औपचारिक रूप से मार डालें और न्यायपालिका के इतिहास में एक काला युग बनाएं। 


उसने अपनी अंतिम इच्छाओं में पहली इच्छा में कहा है कि उसके केस की सुनवाई लाइव होनी चाहिए और पूरे देश के लोग यह जान कि किस प्रकार लीगल सिस्टम का एक औरत दुरुपयोग कर रही है।दूसरा उसके सुसाइड नोट और वीडियो को साक्ष्य में लेने की अनुमति दी जाए। तीसरा उसे भय है कि दीवानी न्यायालय में संबंधित कोर्ट में दस्तावेजों से छेड़छाड़ व गवाहों पर दबाव बनाया जा सकता है इसलिए उसके केस को बैंगलोर ट्रांसफर कर दिया जाए। यहीं ट्रायल हो। चौथा उसके बच्चे को उसके माता-पिता की कस्टडी में दे दिया जाए जिससे उसका सही मार्गदर्शन व विकास हो सके। पांचवा उसकी पत्नी व पत्नी के परिवार के लोग उसके शव के नजदीक न आएं। छठवां जब तक उसका उत्पीड़न करने वाले दंडित नहीं किए जाते उसकी अस्थियों का विसर्जन न किया जाए।अगर कोर्ट निर्णय करती है सभी आरोपी दोषी नहीं है तब उसकी राख को कोर्ट के सामने गटर में डाल दें।सातवां उसका उत्पीड़न करने वालों को अधिकतम दंड मिले। अगर उसकी पत्नी जेल की सलाखों के पीछे नहीं जाती तो भविष्य में समाज के अन्य बेटों पर और अधिक फर्जी केसेस लगाए जाएंगे। आठवां न्यायपालिका से मांग किया कि उसके माता-पिता व भाई का फर्जी मुकदमों में उत्पीड़न करने से रोका जाए। नौवां मुकदमे में किसी प्रकार का कोई सुलह समझौता ,बातचीत ऐसे दोषी लोगों के साथ नहीं होना चाहिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। दसवां अपनी पत्नी को चाकू बताते हुए कहता है कि उसकी पत्नी को मुकदमों को वापस करने के लिए अनुमति नहीं देना चाहिए। जब तक वह स्वीकार नहीं करती कि उसने फर्जी मुकदमे दाखिल किए हैं। 11वां मेरी पत्नी मेरे बच्चे के साथ कोर्ट में लोगों की सहानुभूति लेने के लिए न आए। इस प्रकार का ड्रामा कोर्ट में नहीं होना चाहिए क्योंकि उसने मुझे अपने बच्चे से 3 साल तक मिलने नहीं दिया। अंत में उसने अपने माता-पिता का ज्यादा उत्पीड़न व उनसे एक्सटॉर्शन की मांग लगातार होने पर न्यायालय से इच्छा मृत्यु मांगे जाने की बात कही है।

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