दहेज हत्या साबित नहीं,बीमारी से हुई थी विवाहिता की मौत,आरोपी दोषमुक्त

जलती चिता से मायके वालों ने उतरवाया था मृतका का शव

*पीएम रिपोर्ट,विसरा रिपोर्ट से गला घोटने,जलाने या जहर देने से मौत की नहीं हुई पुष्टि*


हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट 



जौनपुर ।महाराजगंज में विवाहिता की दहेज हत्या का मामला साबित न होने पर अपर सत्र न्यायाधीश मो. शारिक सिद्दीकी ने पति,सास, ससुर को दोषमुक्त कर दिया।

इस मामले में न्यायालय ने दहेज हत्या के आरोपों को साक्ष्यों के अभाव में खारिज कर दिया। यह घटना न केवल न्याय प्रक्रिया में साक्ष्य के महत्व को दर्शाती है, बल्कि समाज में दहेज उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों की सही जांच-पड़ताल की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। 

प्रमुख बिंदु:

1. **अभियोजन का पक्ष**:

   - मृतका मीना के पिता हरिगेन निवासी घिसुआ खुर्द थाना मछली शहर ने महाराजगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराते हुए  आरोप लगाया कि उसकी लड़की मीना की शादी 11 जून 2011 को त्रिभुवन यादव निवासी खैरपारा महाराजगंज के साथ हुई थी।विवाह के बाद से ही मोटरसाइकिल और अंगूठी की मांग को लेकर उसकी बेटी को ससुराल में प्रताड़ित किया जाता था।

   - आरोप था कि दहेज की मांग पूरी न होने पर 23 दिसंबर 2015 को पति त्रिभुवन, ससुर राम कैलाश व सास उत्तराजी द्वारा मीना की हत्या कर दी गई और जल्दी से उसका अंतिम संस्कार करने का प्रयास किया गया।

   - घटना की जानकारी मिलने पर मायके वालों ने शव जलती हुई चिता से उतरवाया और पुलिस में मामला दर्ज कराया।


2. *वैज्ञानिक साक्ष्य**:

   - *पोस्टमार्टम रिपोर्ट**: मृत्यु का कारण जलना नहीं पाया गया। गला घोटने या गला दबाने के कोई निशान नहीं मिले।

   - *विसरा रिपोर्ट**: शरीर में किसी भी प्रकार के जहर के होने की पुष्टि नहीं हुई।


3. *आरोपियों का पक्ष**:

   - मृतका के पति, सास, और ससुर ने दावा किया कि मीना की मृत्यु बीमारी के कारण हुई। उसे ठंड और उल्टी-दस्त होने पर डॉक्टर के पास ले जाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।

   - स्थानीय परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार की तैयारी की गई थी।


4. *न्यायालय का निर्णय**:

   - न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष दहेज हत्या के आरोप को सिद्ध करने में असफल रहा।

   - वैज्ञानिक साक्ष्य और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने कहा कि मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई।

   - न्यायाधीश ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। अभियोजन पक्ष से पैरवी सरकारी वकील लाल बहादुर पाल ने एवं बचाव पक्ष से पैरवी अधिवक्ता दिनेश मिश्रा व अवनीश चतुर्वेदी ने की।


इस निर्णय का महत्व:

- *साक्ष्य का महत्व**: यह प्रकरण दर्शाता है कि किसी भी आपराधिक मामले में ठोस और वैज्ञानिक प्रमाण निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

- *झूठे आरोपों की संभावना**: दहेज हत्या जैसे गंभीर आरोपों में सही जांच और सत्यापन बेहद आवश्यक है ताकि निर्दोष लोगों को सजा न हो।

- **कानूनी प्रक्रिया का पालन**: न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि केवल आरोपों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

यह घटना समाज और न्यायपालिका दोनों के लिए एक सबक है कि महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और झूठे आरोपों के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

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