अकरम जौनपुरी का सम्मान: महफ़िलें तो सजीं, पर उनकी शायरी अब भी किताब से महरूम

 

जौनपुर। शायरी की दुनिया में ऐसे मौक़े कम आते हैं जब किसी शायर को उसके काम के लिए एक से ज़्यादा महफ़िलों में सिर-आँखों पर बिठाया जाता है। अकरम जौनपुरी ऐसे ही शायर हैं, जिनके कलाम ने आल यूपी तरही नज़्मख्वानी के तहत प्रदेश भर में वाहवाही बटोरी और कई मंचों पर पहले और दूसरे इनाम से नवाज़ा गया। अकरम जौनपुरी के कलाम ने उन महफ़िलों में सिर चढ़कर बोला, जहां उनका हर लफ़्ज़ दिलों पर दस्तक देता रहा।

इसी सम्मान के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अंजुमन रजाए मुस्तफा मीरमस्त ने रविवार को अहाता नवाब यूसुफ स्थित मदरसा हानफिया के हॉल में एक खास कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में अकरम जौनपुरी को न केवल गुलपोशी और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया, बल्कि उनकी शख्सियत और अदबी योगदान पर गहन चर्चा भी हुई। हर कोई मानो इस बात पर सहमत था कि अकरम साहब का कलाम सिर्फ शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि वह समाज और इंसानियत के लिए एक आईना है।

वक्ताओं में एडवोकेट मेहदी रज़ा ने विशेष रूप से अकरम जौनपुरी को "साहिबे दीवान" बनाने की सिफारिश की। उनके मुताबिक, यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि अकरम साहब के कलाम को किताब की शक्ल दी जाए ताकि उनकी शायरी की रौशनी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे। इस मौके पर उपस्थित अन्य अंजुमन के नुमाइंदों ने भी अकरम के लिखे कलाम को पढ़कर समां बांध दिया।

कार्यक्रम में मुस्तइम जौनपुरी, अहमद हफीज जौनपुरी, सजर जौनपुरी, हाफिज हसीन, मौलाना कयामुद्दीन, हसीन बबलू, शकील मंसूरी, अशफाक मंसूरी जैसे अदब के दीवानों ने अपनी मौजूदगी से महफ़िल की रौनक बढ़ाई। संचालन की जिम्मेदारी अजवात कासमी ने बखूबी निभाई। यह एक ऐसा लम्हा था जहां शायरी, इज़्ज़त और इंसानियत का संगम देखने को मिला।

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