सावधान:दिवाली पर धन तेरस के दिन से निकलेगा दिवाला
-गारन्टी सौ प्रतिशत की लेकिन माल मिलेगा 75 फीसदी से कम का, कैरेट, जीएसटी और युआईडी के बड़े खेल में शातिर हैं जौनपुर के गोल्ड माफ़िया, यह एक जिले की नज़ीर कमोबेश प्रदेश के सभी जिलों की एक जैसी स्थिति दर्शाती मिलेगीl
---------------------------------------
-कैलाश सिंह-
---------------------------------------
लखनऊ/जौनपुर, (तहलका विशेष)l शस्त्र पूजन के साथ दशहरा बीता और दीपावली की तैयारी घरों के रंग- रोगन के साथ शुरू हो गई l दुकानों और ठेलों पर बिकने वाली भगवान् गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्तियाँ सस्ती- महंगी जरूर मिलेंगी लेकिन उनमें मिलावट या खोट नहीं होगी, परन्तु धोख़ा वह लोग खाएंगे जो आँखें बन्द करके पूजन के लिए सोने- चांदी के सिक्के खरीदते हैंl यदि भरोसा न हो तो पिछले वर्षों में जितने भी सिक्के ख़रीदे हों उसे धनतेरस से पूर्व उन्हीं दुकानों या कथित शो रूम पर जाइए l रसीद रखे हों तो लेते जाइए क्योंकि तभी दुकानदार पहचानेगा वरना डॉक्टरों के पर्चे की तरह जैसे दूसरे चिकित्सक खारिज करते हैं उसी तरह आपके सिक्कों को वह नकली ठहराकर खारिज कर देगा l हम एक सच्ची घटना के जरिये इस साल के पहले एपिशोड में आपको मिले 'धोखे' को को आईना दिखाते हैं l
यह घटना एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति की है लेकिन ऐसी ही कहानी प्रदेश के हर मुख्य शहर में एक नहीं, कई मिलेंगी l एक महोदय 35 साल की उम्र से ही मितव्ययी थे, लेकिन कम आमदनी के बावजूद वह अपनी कमाई से बचाए थोड़े पैसे को विभिन्न योजनाओं में लगाने से नहीं चूकते थे l इसी में से एक शौक था दिवाली पर हर साल सोने- चांदी के दर्जनों सिक्के खरीदने और पूजन के बाद उसे संदूक में रखने काl जब उनकी उम्र 70 पार कर गई और सबसे छोटी बेटी का विवाह पड़ा तो सिक्के देने का चलन फ़ैशन से बाहर हो गया था l
घटना दो साल पूर्व की है, उनके बच्चों ने सलाह दी कि क्यों न सैकड़ों सिक्कों को बेचकर विवाह में कोई बड़ा तोहफा दिया जाए l वह महोदय सिक्के तो संभाल रखे थे लेकिन रसीदें नहीं मिलीं, फिर भी दुकानदार से तीन दशक पुराने रिश्ते पर उन्हें भरोसा था l वह छोटी बोरी में सिक्के लेकर पहुँच गए l बोरी में सिक्के होने की बात खुलते ही उनके दशकों पुराने रिश्ते दरक गए l इसका पहला संकेत उन्हें पीने को पानी मांगने पर मिल गया लेकिन वह समझ नहीं सकेl बात मोलभाव पर आई तो दुकानदार ने उन्हें धर्म का हवाला देकर बेचने से रोका, वह नहीं माने तो दाम लगाना पड़ा, लेकिन यह क्या ' सस्ती के जमाने से अब तक इन सिक्कों के नाम पर डेढ़ लाख से अधिक लगा चुके थे और मिला महज 14 हजार l उनके लिए सिक्कों के कलेक्सन का शौक लाटरी अथवा कैसीनों (जुआ) साबित हुआ, उनकी जिंदगी का यह छोटा निवेश धोख़ा दे गया l
दिवाली तक चलने वाली हमारी इस सीरीज के मुख्य किरदार जिले के चार बड़े गोल्ड माफ़िया हैं l इनके खिलाफ़ बाकी के सराफा कारोबारी इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि यह बड़े अफ़सरों को 'ज़रखरीद' और अपराधियों को हफ़्ता, महीना देकर खरीद लेते हैं, फ़िर यही 'झुंड' उन छोटे व्यापारियों का जीना हराम कर देते हैं l
यह गोल्ड माफ़िया 'सोने से मिट्टी और मिट्टी से सोना' बनाने में माहिर हैं, यानी बड़े भू- माफ़िया के रूप में उभर चुके हैं, वाहन, होटल और बिल्डर के व्यवसाय पर भी इनका दखल हो चुका हैl इनमें से दो ऐसे हैं जिनके यहाँ तीन साल पूर्व आयकर विभाग छापा पड़ा तो हफ़्ते भर चला, इनके भवनों की दीवार भी तोड़कर सोने और रुपये निकाले गए थे l हर एपिशोड में इनके शातिराना तरीके वाले खेल का भंडाफोड़ मिलेगा l,,,,,, क्रमशः