जौनपुर में कई चिकित्सक पैसे की हवस में अंधे होकर बन गए हैं 'नीम- हकीम खतरे जान'
-मरीजों से लूट- खसोट में वाराणसी के निजी डॉक्टरों को टक्कर दे रहे हैं जौनपुर के कुछ कथित विशेषज्ञ, प्लेटलेट, ऑक्सीजन गिरने के नाम से खून की बिक्री चरम पर, किडनी मरीजों की डायलसिस का नया धंधा खूब फल, फूल रहा l
-एक कथित विशेषज्ञ चिकित्सक जो हर मर्ज का करता है इलाज, अब वह वाराणसी में मुर्दों का इलाज करने वाले पकड़े गए चिकित्सक को भी मात देने लगा है, मरीजों के किसी भी हिस्से का ऑपरेशन उसके बाएं हाथ का है खेलl
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-कैलाश सिंह/बी पी सिंह-
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लखनऊ/वाराणसी, (तहलका विशेष)l वाराणसी की तर्ज पर जौनपुर के कुछ विशेषज्ञ चिकित्सक (वन डिजीज स्पेशलिष्ट) लेकिन हर मर्ज का इलाज कर रहे हैं l दवाएं इतनी देते हैं कि कोई न कोई तो फायदा कर ही जाएगी, साथ में इन 'नान ब्रांडेड दवाओं' के नाम पर सामान्य से चार गुना अधिक कमाई भी हो जाती है l मरीजों के मरने या अति गंभीर होने पर उसे अपने अस्पताल से तभी बाहर करते हैं जब तक पूरा भुगतान नहीं करा लेते हैं l जिस मरीज में थोड़ी जान बाकी रहती है या उनका केस उनकी डाइग्नोसिस से बाहर होता है उसे वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली आदि के बड़े अस्पतालों में रेफर के नाम पर भी मोटा कमीशन लेते हैं l जबकि ये खुद ग्रामीण इलाकों या सरकारी अस्पतालों से मरीजों को भेजने वालों को कमीशन देते हैं l इस तरह जौनपुर भी मेडिकल सिंडिकेट का अहम हिस्सा बन गया है और मरीज इनके हाथ का खिलौनाl
वाराणसी में कोरोना काल और इससे पूर्व कुछ निजी अस्पतालों में अभूतपूर्व घटनाएं हुईं जहाँ फिल्म गब्बर के मुख्य किरदार की तरह बीएचयू में मृत व्यक्ति को लाकर उसके तीमारदार ने दो दिन ईलाज में डेढ़ लाख फूंक दिया और अंत में उनके द्वारा मृत की घोषणा के बाद बीएचयू से मिला प्रमाण दिखाया तो उन डॉक्टरों के पैरों तले से जमीन खिसक गई l लाखों भुगतान दंड स्वरूप करने के बावजूद अस्पताल महीनों सील रहे l अब उसी तर्ज पर पैसों के लिए जौनपुर में मरीजों से वसूली की जा रही है l
नई गंज का एक डॉक्टर पानी में डूबे बच्चे को बचाने के नाम पर हजारों वसूला पर जान नहीं बचा पाया l इसी तरह एक युवा शिक्षक की खोपडी उसने हल्के ब्रेन स्ट्रोक पर खोल दी और लाखों लूटने के बाद मेदांता अस्पताल भेज दिया जहाँ उनकी मौत हो गई जबकि घर वालों ने 60 लाख से अधिक खर्च कर दिए और महीनों कोमा में रहे उस मरीज की जान भी नहीं बचीl
जौनपुर में कई निजी अस्पताल तो आवासीय कालोनी में अवस्थित हैं जो सरकारी मानक के विपरीत हैं l नईगंज में एक ऐसा चिकित्सक है जो सपा के शासन काल में जिले का स्वयम्भू मिनी मुख्यमन्त्री घोषित रहा l उस दौरान उसके यहां सपा के नेता भी दरबार लगाते थेl हर जाति वर्ग में उसने दलाल पाल रखे थे जो आज भी उससे वफादारी निभाते हैं l उसी सरकार के कार्यकाल में उसने अपने पारिवारिक कॉलेज के एक कमरे में फार्मेसी (नर्सेज कॉलेज) भी खोल दिया l जबकि सरकारी दस्तावेज में कई कमरे दर्शाया है, यह भी खुद को चेस्ट रोग का विशेषज्ञ बताता है लेकिन इलाज हर मर्ज का करता है l कई ऐसे भी हैं जो नौकरी देने के नाम पर नर्सों का शोषण करते हैं l इसके चलते उनमें से कुछ का गृह क्लेश पुलिस स्टेशन तक पहुँच रहा है l
जौनपुर तो बानगी है, कमोबेश उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में यही स्थिति है l हर जगह मालशॉप की तरह सुपर स्पेशियलिटी की दुकानें सजाये लोगों में कुछ को छोड़कर बाकी मरीजों की जिंदगी से खेलते हुए पैसे लूट रहे हैं l अधिकतर निजी अस्पतालों में ब्लड बैंक, पैथालाजी, आई सी यू और अब वेंटिलेटर के साथ डायलिसिस का धंधा बिना विशेषज्ञ के चोखा सरीखे चलने लगा है l जौनपुर शहर में गोरखपुर- प्रयागराज फोरलेन सिपाह और नईगंज में इन अस्पतालों के वाहन स्टैंड सड़क जाम के कारण भी बनते हैंl यहां बाहरी मेडिकल स्टोर से तीनगुना कीमत पर दवाएं मिलती हैं, कारण उनके द्वारा कराई जाने वाली मनमाफिक एमआरपी जो है, जबकि बाहरी मेडिकल स्टोर पर सामान्य रेट में से बीस फीसदी छूट भी मिलती है l कुछ अस्पतालों में कथित पत्रकार दलाल के रूप में तैनात हैं और कुछ विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की सरपरस्ती हासिल करने को लाखों खर्चते हैं l यहां थोड़ी गनीमत पुराने डॉक्टरों के चलते है जिस कारण जन, धन की हानि कम हो रही हैl बाकी अगले एपिशोड में क्रमशः-,,,,,,, l
१००/सही लिखा है सर आपने।
जवाब देंहटाएंअब इन हरामखोरो कोई मिडिल क्लास या गरीब आदमी इलाज नहीं कर सकता उसकी मृत्यु निश्चित है
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही लिखा है आपने ऐसा ही खेल हो रहा है नईगंज में सभी डॉक्टरों के हैं लगभग
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