सनातन संस्कृति को गांवों के संस्कारों ने अक्षुण्ण रखा

*ग्रामीण संस्कृति के विलुप्त होने से सनातन संस्कृति पर खतरा*

*सनातन संस्कृति के आधार हैं गांव, गोत्र और गाय*

*सनातन संस्कृति की संवाहक है त्योहार, लोकगीत और रीति-रिवाज*

*भारत मे रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सनातनी*

*परम्पराओ के संरक्षण और संवर्धन में ग्रामीण महिलाओ की बड़ी भूमिका*

जौनपुर । विशाल भारत संस्थान द्वारा केराकत के छत्तरीपुर गांव में सनातन संस्कृति के संवर्धन में गांवों की भूमिका विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्यवक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय अधिकारी रामाशीष सिंह, अध्यक्ष पातालपुरी मठ के महंत बालक दास जी महाराज, विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने संयुक्त रूप से दीपोज्वलन कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। प्राचीन श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राभिषेक कार्यक्रम में सभी अतिथियों ने भाग लिया।


विषय परिचय देते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रिसर्च इंस्टीट्यूट की निदेशक आभा भारतवंशी ने कहा कि भारत के गांवों की महिलाओं ने सांस्कृतिक संरक्षण में अपना योगदान दिया है। जब तक गांव जिंदा है तब तक संस्कार और संस्कृति जिंदा है।


इस अवसर पर मुख्यवक्ता आरएसएस के रामाशीष सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति गांव और शहर में भेद नहीं करती। अंग्रेजों के आने के बाद भारत में गांव और शहर में अंतर शुरू हुआ। अंग्रेजों ने भारत के गांवों को पीछे रखा ताकि भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाया जा सके। सभ्यता अट्टालिका में कही नहीं बैठती। सभ्यता मनुष्यता के साथ रहती है। भारत के प्रभाव और विचार को संतों और महात्माओं के हाथों से निकल गया है। अब सभ्यता की परिभाषा राजनेता और तथाकथित विद्वान दे रहे हैं। भारतीय संस्कृति के बिंदुओं की जानकारी सभी को होनी चाहिए। सम्पूर्ण सृष्टि के अंदर हमारी संस्कृति एक ही ईश्वर यानी राम का ही दर्शन करती है। सबके अंदर एक ही ईश्वर का निवास है। भारत के अंदर धर्म की वजह से ही लोग एक दूसरे की रक्षा करते थे। भारत के लोगों ने अपने पूर्वजों की परम्पराओं को सुरक्षित रखकर अपने संस्कृति को बचाये रखा। गांव के लोगों ने रिश्तों को मजबूत बनाया, किसी तरह के लोभ को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। धर्म के नाम पर मानवता को बांटने की कोई परंपरा नहीं रही। शात्र कहते हैं की अपने चरित्र से सबको शिक्षा देनी चाहिए। स्वयं का अचार ठीक होगा, तभी हम अपनी संस्कृति को बचा पाएंगे।


विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि गांव के मन्दिर और गांव के संस्कार ही संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं।


अध्यक्षता करते हुए महंत बालक दास जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक भगवान श्रीराम हैं। राम भक्ति से ही देश में सांस्कृतिक एकता लाई जा सकती है।


संगोष्ठी का संचालन डॉ० अर्चना भारतवंशी ने एवं धन्यवाद विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय परिषद सदस्य शिशिर सिंह ने दिया। इस अवसर पर संत कबीर प्राकट्य स्थल, काशी के महंत गोविन्द दास, जगदीश्वर दास जी महाराज, डॉ० नजमा परवीन, नौशाद अहमद दुबे, विवेनन्द सिंह, सुधांशु सिंह, रमन सिंह, डॉ० धनंजय यादव, आकाश यादव, अफ़रोज अहमद पाण्डेय आदि लोग मौजूद रहे।

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