है नमन उसको जो देश के लिये हुए कुर्बान

देश के लिये सर्वोच्च बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों का हो रहा अपमान

शहीद स्तम्भ के पास लगा है कूड़ों का अम्बार, जिम्मेदार बेखबर




केराकत, जौनपुर। भारत के स्वतंत्रता इतिहास में अनगिनत ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आहुति देकर देश को आजाद कराया। शहीदों के इतिहास में कुछ नाम चर्चित हुए तो कुछ गुमनाम रहे पर देश का बच्चा-बच्चा अपनी मातृभूमि के लिए शहीद वीर सपूतों को न सिर्फ अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, बल्कि शहीदों के शौर्य पराक्रम को सुन गौरवान्वित महसूस करते हैं। जरा सोचिए, उनकी याद में बना शहीद स्तंभ की स्थित अगर जीर्ण—शीर्ण होने के साथ ही अगल बगल कूड़ों का अंबार लगा हो तो आप क्या कहेंगे?
हम बात कर रहे केराकत मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित मुफ्तीगंज बाजार के बीचों बीच महात्मा गांधी के चबूतरे के समीप बने शहीद स्तंभ की जिसकी दयनीय स्थिति को देख हर भारतवासी का कलेजा सिहर उठेगा। आलम यह है कि शहीद स्तंभ से महज कुछ ही दूरी पर कूड़ों का अंबार लगा हुआ है जिसको स्थानीय लोगों के साथ प्रशासनिक अधिकारी भी नजरंदाज करते दिख रहे हैं जबकि शहीद स्तंभ को लेकर हर वर्ष अखबारों में खबर प्रकाशित होती रहती है। बाबजूद इसके भी जिम्मेदार पूरी तरह से बेखबर नजर आते हैं। विडंबना तो देखिए शहीद स्तंभ जौनपुर मुख्यालय व केराकत तहसील के मुख्य मार्ग से कुछ ही दूरी पर बना हुआ है। इसी मार्ग से अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों का आना—जाना लगातार लगा रहता है। मगर किसी का भी ध्यान शहीद स्तंभ के पास लगे कूड़ों के ढेर पर इनायत नहीं होती है जो अपने आपमें बड़ा सवाल खड़ा करता है। आखिर कब शहीद स्तंभ को मिलेगा कूड़ों की ढेर से निजात? क्या तीनों रणबांकुरो की शहादत इतिहास में अतीत बनने के कगार पर है? आखिर कब जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी को समझ शहीद स्तंभ का कराएंगे कायाकल्प?

44 अंग्रेजों को ढेर करने वाले वीर सपूत का इतिहास बन रहा अतीत
क्रांतिकारी जंग बहादुर पाठक पुत्र हरिभजन निवासी पठखौली, शिवनाथ पुत्र मथुरा निवासी तारा व क्षत्रधारी पुत्र उमाचरण निवासी विजयीपुर ने कभी भी अंग्रेजों की अधीनता को स्वीकार नहीं की। अग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग—ए—आज़ादी में कूद पड़े और 44 अंग्रेजों को जौनपुर के शाही पुल के पास मार गिराया था। अंग्रेजों के आंख की किरकिरी बने तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत कूटनीति के बदौलत धोखे से पसेवा गांव के समीप पकड़कर एक महीने के कारावास में रखकर उनके साथ बर्बरता की सारे हदें पार की गई जिससे कारण उनका निधन हो गया। उनकी वीरता व शौर्य को याद में मुफ्तीगंज बाजार के मध्य में शहीद स्तंभ का निर्माण कराया गया है जो आज प्रशासनिक उदासीनता के चलते शहीद स्तंभ के कुछ ही दूरी पर कूड़ों का अंबार लगा हुआ है।

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