थानाध्यक्ष को मौत के घाट उतारने वाले नौ आरोपितों को मिली उम्र कैद की सज़ा

 थानाध्यक्ष को पकड़ने वाले सुखनंदन की भी एक अन्य आरोपित द्वारा चलाई गई गोली से हुई थी मौत

26 के खिलाफ लगी चार्जशीट, नौ आरोपियों की हुई मौत, 9 को हुई सजा, 8 दोषमुक्त

जौनपुर । 18 दिसंबर 1985 को सुरेरी थाना क्षेत्र के ग्राम सिरोही पूरवा मोदक में जमीन कब्जा की सूचना पर पहुंची पुलिस जब ग्राम धनवस्तेपुर जाकर आरोपित बलिराम को गिरफ्तार कर ले जाने लगी तभी आरोपियों ने पुलिस पार्टी पर जानलेवा हमला किया जिसमें थाना अध्यक्ष अमरनाथ भारती की मौत हो गई। थानाध्यक्ष को पकड़ने वाले आरोपित सुखनंदन की एक अन्य आरोपित द्वारा गोली चलाने से मृत्यु हो गई। जिला जज वाणी रंजन अग्रवाल ने मानिकचंद समेत नौ आरोपितों को हत्या व अन्य धाराओं में दोषी पाते हुए आजीवन कारावास व प्रत्येक को 10-10 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाया।


अभियोजन के अनुसार 18 दिसंबर 1985 को 8:15 बजे उप निरीक्षक बब्बन सिंह ने सुरेरी थाने में एफआईआर दर्ज कराया की 18 दिसंबर 1985 को थानाध्यक्ष सुरेरी अमरनाथ भारती के साथ उप निरीक्षक बब्बन सिंह व अन्य पुलिसकर्मी विवेचना के लिए रवाना होकर 6:45 बजे ग्राम सरेरी पूरवा मोदक पहुंचे तो मुकदमे से संबंधित जमीन पर पुनु आरोपियों द्वारा कब्जा किया जाना पाया गया। पुलिस वाले 7:30 बजे धनवस्तेपुर में बलिराम के घर पहुंची। उसे गिरफ्तार किया। उसे लेकर थाने की तरफ चले। करीब 7:45 बजे सुखनंदन के खेत के पास आरोपित मानिकचंद,जयप्रकाश, ओमप्रकाश,उत्तम, श्री राम, मोहन, नवीउल्ला, रजज्ब ,जल्ला व अन्य आरोपित कट्टा,बल्लम, लाठी डंडा, ईट पत्थर लेकर पुलिस पार्टी को घर लिए और बलिराम को छुड़ाने लगे। पुलिस पार्टी पर हमला कर दिए। सोभनाथ ने बलल्म से अमरनाथ भारती को मारा तब बलिराम ने उनके सीने पर चढ़कर ईट से मारा जिससे उनकी मृत्यु हो गई ।सभी पुलिस वालों को आरोपित घेर कर ईट पत्थर व कट्टे से फायर कर मारने लगे जिससे उप निरीक्षक बब्बन सिंह, कांस्टेबल झुल्लन प्रसाद व कांस्टेबल हरकेश गुप्ता को चोटें आईं।बलिराम ने थानाध्यक्ष अमरनाथ भारती की पिस्टल, मैगजीन और कारतूस ले लिया। अभियोजन कथानक के अनुसार अमरनाथ भारती को सुखनंदन ने पकड़ा था। जयप्रकाश ने कट्टे से अमरनाथ पर फायर किया ।वह झुक गए। गोली सुखनंदन को लगी। उसकी भी मौके पर मौत हो गई। पुलिस ने घटनास्थल से खून लगी लाठी,ईट के टुकड़े,खोखा कारतूस,लाठी के टुकड़े इत्यादि बरामद किए थे। पुलिस ने बलिराम की निशानदेही पर घटना में लूटी गई सरकारी पिस्टल मैगजीन व 18 कारतूसों की बरामद की। पुलिस ने विवेचना कर 26 आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया। आरोपित सुखऊ,भूखंदर व हीरालाल की मृत्यु के बाद 23 आरोपितों के खिलाफ हत्या के प्रयास व अन्य धाराओं में कोर्ट में आरोप तय हुआ। बलिराम के खिलाफ चोरी व आर्म्स एक्ट में भी आरोप बना। कोर्ट में 10 गवाहों के बयान जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश पांडेय व राजनाथ चौहान ने दर्ज कराए। दौरान मुकदमा आरोपित बलिराम, चानिका, पुल्लू, अमरनाथ,सोभनाथ व लालमनि की मृत्यु हो गई। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद आरोपित मानिकचंद,जयप्रकाश, ओमप्रकाश,उत्तम,श्री राम,मोहन, नबी उल्ला, रज्जब व जल्ला को हत्या व अन्य धाराओं में दोषी पाते हुए दंडित किया। कोर्ट ने प्रेमचंद,मोती,राजकुमार,पट्ठे, लालचंद,लाल जी,पंचम व सुरेंद्र शेष आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में दोष मुक्त कर दिया।

क्यों हुआ था विवाद, क्या था मामला 

जौनपुर-प्रथम गवाह रघुनाथ ने कोर्ट में बयान दिया कि गांव में आराजी नंबर 30 रकबा 70 डिसमिल का पट्टा उसके नाम 1984 में हुआ था जिस पर उसे कब्जा दिलाया गया था।उसके पट्टे के पूर्व 1976 में इसका पट्टा बुद्धू के पक्ष में ग्राम प्रधान बलिराम ने किया था जिसे अवैधानिक होने के कारण 1979 में तत्कालीन एसीएम द्वारा खारिज कर दिया गया तथा जमीन ग्राम समाज में निहित हो गई। जब उसके पक्ष में पट्टा हुआ तो वह उस पर फसल बोने लगा। 16 नवंबर 1985 को पूर्व ग्राम प्रधान बलिराम ने वर्तमान प्रधान पोतन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उन्हें प्रधानी से हटा दिया तथा यह कहकर प्रधान के पद से हटने पर उनके द्वारा किया गया पट्टा निरस्त हो गया है, बलराम द्वारा उसके पट्टे की आराजी पर चानिका मानिका और मोहन का कब्जा कर दिया गया। पुलिस प्रशासन को प्रार्थना पत्र देने पर लेखपाल और कानूनगो से जांच कराई गई। दिनांक 17 दिसंबर 1985 को थानाध्यक्ष सुरेरी अमरनाथ भारती फोर्स के साथ मौके पर आकर चानिका,मानिका व मोहन को कब्जा हटाकर उसे काबिज करा दिया जिस पर उसने गेहूं की फसल बोई। 18 दिसंबर 1985 को 5:00 बजे सुबह आरोपित चानिका ,मानिका व अन्य हथियारों से लैश होकर मौके पर आए। जबरन आराजी पर कब्जा कर लिया।घटना की रिपोर्ट 18 दिसंबर 1985 को 6:00 बजे सुबह थाने पर दी गई। इसके पश्चात पुलिस पहुंची ।उसकी जमीन पर रखे सामान को लिखा पढ़ी करके पुलिस ने कब्जे में लेकर श्री राम के सुपुर्दगी में दे दिया और आरोपियों की तलाश में धनवस्तीपुर गए।जहां से बलिराम को ले जाते समय घटना घटी।

इन धाराओं में मिली यह सजा 

जौनपुर सुरेरी के थानाध्यक्ष हत्याकांड मामले में जिला जज ने नव आरोपियों को धारा 147 /148 आईपीसी, धारा 225 आईपीसी, धारा 332 आईपीसी में 2 वर्ष कारावास, धारा 302 आईपीसी सपठित 149 आईपीसी में आजीवन कारावास व प्रत्येक को ₹10000 अर्थदंड से दंडित किया। अर्थ दंड अदा न करने पर 2 वर्ष अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। आरोपित मानिकचंद व अन्य के खिलाफ धारा 307 आईपीसी का मामला नहीं पाया गया।

दोषियों के तर्क:सुखनंदन की हत्या का नहीं बना आरोप,

 आरोपियों ने पुलिस के खिलाफ भी दर्ज कराया था क्रास केस

जौनपुर -सुरेरी थानाध्यक्ष हत्याकांड मामले में आरोपितों की तरफ से तर्क दिया गया कि सुखनंदन की हत्या संबंधी आरोप कोर्ट में विरचित नहीं किया गया है। आरोपितों के द्वारा पुलिस पार्टी के विरुद्ध सुखनंदन की हत्या करने, लूटपाट करने आदि कथनों के संबंध में क्रॉस केस दर्ज कराया गया है। जिसमें पुलिस पार्टी के विरुद्ध सुखनंदन की हत्या के संबंध में आरोप पत्र है। यह भी कहा गया है कि अमरनाथ भारती के साथी पुलिस कर्मी के द्वारा गोली मारकर सुखनंदन की हत्या कर देने पर मौके पर एकत्रित उग्र भीड़ के द्वारा पुलिस वालों पर ईट पत्थर फेंकने से अमरनाथ भारती व अन्य पुलिस कर्मी घायल हुए। कोर्ट ने आदेश में लिखा कि नक्शा नजरी में अमरनाथ और सुखनंदन के शवों के बीच केवल चार कदम की दूरी अंकित है जिससे अभियोजन को बल मिलता है कि अमरनाथ भारती को लक्ष्य करके किया गया फायर ही सुखनंदन को लगा जिससे मौके पर उसकी मृत्यु हो गई। सुखनंदन की भी हत्या के संबंध में पृथक आरोप विरचित न किया जाना विधिक अनियमितता है जो कार्यवाही को दूषित नहीं करती।

सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्थाओं का दिया गया हवाला 

जौनपुर-सुरेरी थानाध्यक्ष हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्थाओं का हवाला दिया गया कि किसी व्यक्ति को गैर कानूनी भीड़ का हिस्सा होने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है भले ही उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से हमला न किया गया हो। गैर कानूनी भीड़ का गठन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समूह के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति में किए जाने वाले अपराध के लिए अभियोजन को यह साबित किया जाना आवश्यक है कि वह व्यक्ति गैर कानूनी भीड़ का सदस्य था तथा वह समूह के द्वारा किए जाने वाले संभावित अपराधों से अवगत रहा हो। भले ही अभियुक्त पर कोई प्रत्यक्ष कार्य आरोपित न किया गया हो। विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में अभियुक्त की मौके पर उपस्थित दोष सिद्धि के लिए पर्याप्त है। यदि वह समूह द्वारा किए जाने वाले अपराध की संभावना से अवगत रहा हो। कोर्ट ने यह भी लिखा कि आरोपितों ने मृतक थानाध्यक्ष के सिर पर पहुंचाई गई चोट का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।प्रथम तीन गवाहों के बयान से आरोपितों द्वारा लाठी डंडा इत्यादि से जान से मारने की नीयत से हमला किए जाने का कथन किया गया है। मौके पर खून लगी दो लाठियां व खून आलूदा ईट के टुकड़े बरामद कर फर्द बनाई गई है। साक्ष्य से अमरनाथ भारती की मृत्यु में सभी नामित अभियुक्तों की सक्रिय भूमिका होना साबित होता है।

घटना का मोटिव 

जौनपुर रघुनाथ के द्वारा थाने पर धारा 447 आईपीसी व 198 ए जमींदारी उन्मूलन अधिनियम दर्ज कराई गई जिसकी विवेचना के क्रम में थानाध्यक्ष अमरनाथ भारती व अन्य पुलिसकर्मी मौके पर जाकर आरोपियों द्वारा मौके पर रखी गई नाद इत्यादि कब्जा में लेकर फर्द बनाई गई। आरोपित बलिराम को गिरफ्तार किया। अन्य आरोपित लाठी डंडा बल्लम से लैस होकर बलिराम को पुलिस से छुड़ाने के उद्देश्य से पुलिस पार्टी पर हमला किए।

आरोपितों का बचाव,राशन कार्ड बनाने के लिए बलिराम के घर इकट्ठा थे आरोपित, थानाध्यक्ष पर की सुखनंदन की हत्या का आरोप

जौनपुर -आरोपितों ने अपने बचाव में तर्क दिया कि सभी आरोपित राशन कार्ड बनवाने के लिए बलिराम के घर पर एकत्रित थे। थानाध्यक्ष अमरनाथ भारती घटनास्थल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित बलिराम के घर जाकर बिना कारण बताए उसे गिरफ्तार किया तथा लूटपाट प्रारंभ की गई। गोली मारकर बलिराम के चाचा सुखनंदन की हत्या की गई। इस पर उग्र भीड़ द्वारा मौके पर बचाव करने का प्रयास किया गया जिससे थानाध्यक्ष अमरनाथ भारती की मृत्यु हो गई ।मौके से केवल दो लाठियां बरामद हुई आइडेंटिफिकेशन मेमो साक्ष्य में साबित नहीं कराया गया। आरोपितों के विरुद्ध सुखनंदन की हत्या के संबंध में आरोप नहीं बनाया गया। पत्रावली पर मूल तहरीर चिक प्रथम सूचना रिपोर्ट व जीडी उपलब्ध नहीं है। बरामद शुदा सरकारी असलहा व अन्य वस्तुएं डंडा ईट पत्थर आदि को वस्तु प्रदर्श के रूप में साबित नहीं कराया गया है। आरोपित निर्दोष है दोष मुक्ति की मांग की गई।

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