भारत ने बांग्लादेश को 50 वर्ष पूर्व का इतिहास दोहराने से बचाया


-कैलाश सिंह-

राजनीतिक संपादक

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-वर्ष 1974 में तत्कालीन प्रधान मन्त्री इंदिरा गाँधी ने बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान को सतर्क किया और बचाव के लिए हाथ बढ़ाया पर वह नहीं माने, उन्हें अपनी उस आर्मी पर भरोसा था जो अमेरिकी इशारे पर चल रही थी, आखिर 15 अगस्त 1975 में उनका कत्ल कर दिया गयाl इस दौरान तीस लाख से अधिक हिंदू मारे गए थे l

-अब 50 साल बाद उसी तरीके से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  की तरफ़ से शेख हसीना (शेख़ मुजीबुर्रहमान की बेटी) को सतर्क  किया गया तो उनका भी जवाब यही था की आर्मी चीफ़ मेरे दूर के दामाद हैं, वह ऐसा नहीं होने देंगे लेकिन मोदी उन्हें सुरक्षित निकाल लाये, उस देश में फ़िर हिन्दू व मन्दिर निशाने पर हैं, इसमें भारत सरकार सतर्क हैl 

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लखनऊ, (तहलका विशेष)l दुनिया में विकसित देश तो कई हैं लेकिन यूरोप और एशिया में महाशक्ति बने रहने या बनने को लेकर कुछ देशों में जो होड़ चलती है उसमें षड्यंत्र के शिकार   विकासशील और नए देश होते हैंl ऐसी महा शक्तियाँ दूसरे देशों में कटपुतली सरकार चाहती हैं, लोकतांत्रिक सरकार जो राष्ट्रवाद को लेकर चलती हैं वह उन्हें पसन्द नहीं आतीं l पांच दशक पूर्व जब भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की सेना के दबाव में पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बना दिया तभी अमेरिका को यह बात अखर गई क्योंकि अमेरिकी सेना का बेड़ा भी चल दिया था लेकिन उसके पहुँचने से पूर्व शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर सत्ता सम्भाल चुके थे l वह साल था 1971 का और पांच साल बाद 1975 में इंदिरा गाँधी के सचेत करने के बावजूद गफलत में पड़े राष्ट्रपति के कत्ल के साथ लाखों हिंदुओं के नरसंहार में तख्ता पलट हो गया l वही इतिहास दोहराने से भारत ने इस बार पांच अगस्त को बचा लिया l 

एक हफ्ते से बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद से हिंदुओं को निशाने पर लेने वाले चरमपंथियों का जुनून मानवता को तार -तार करते हुए हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक को भी मिटा रहा है l ढाका से लेकर दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन भारत में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर जैसा विरोध होना चाहिए वह नहीं दिख रहा हैl इस संदर्भ में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यहाँ वोट की राजनीति के चलते हिंदुओं को जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर बांट दिया गया है l विपक्षी दल खामोशी अख्तियार किए हैं क्योंकि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के निशाने पर जो सभी हिंदू हैं वह सर्वाधिक दलित हैं या यूं कहें तो पूरी संख्या वहाँ दलितों की ही बची है l

भारत में धर्म निर्पेक्षता के नाम पर राजनीति करने वालों से बेहतर तो इजराइल की आम जनता रही जो हमास के मुखालफत और अपनी सरकार के सहयोग में दूसरे देशों से नौकरी, व्यवसाय छोड़कर एकजुटता प्रदर्शित की l ऐसे ही बड़े उद्योगपतियों ने अमेरिका को अपने देश के सहयोग के लिए बाध्य कर दिया l उसी दौरान हमारे देश में फिलिस्तीनियों के नाम पर हमास के सहयोग में विरोध जताया तो यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऐसे लोगों को निशाने पर लिया और वह शांत हुए, लेकिन बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के नरसंहार को लेकर ऐसे ही लोगों के बयान सोशल मीडिया पर दिखे, जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेश की तरह भारत में भी ऐसी घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है l

 रहा सवाल बांग्लादेश में हो रहे उपद्रव व नरसंहार पर तो हमारी सरकार का गृह मंत्रालय सुरक्षा व्यवस्था के साथ निगरानी में है l दूसरे देश में कोई अन्य देश अंतर्राष्ट्रीय नियम के तहत सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है l

इधर गोरक्षपीठाधीश्वर व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने बीते सात अगस्त को अयोध्या में एक कार्यक्रम में सनातन संस्कृति और हिंदुत्व की जिस एकजुटता को लेकर चिंता जाहिर की थी दरअसल वह बांग्लादेश के संदर्भ में ही थी लेकिन अपने देश में वोट की राजनीति में जातियों में बंटे लोगों के लिए भी थी, सनातनियों के जागृत होने के लिए यही उपयुक्त वक़्त है l जन सहयोग से ही सरकार को 'परदेश' में प्रताड़ित खास समुदाय को बचाने में ताकत मिलती है ।

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