सड़क दुर्घटना के मामलों में अब चालक को होगी अधिक सजा

 दुर्घटना के बाद पुलिस को सूचना देने पर नहीं है दस वर्ष का कारावास तब ड्राइवरों द्वारा विरोध क्यों?

सड़क पर राहगीरों की सुरक्षा का दायित्व है राज्य का,वाहन का पता न चलने पर राज्य प्रदान करे सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति 

चिकित्सक की उपेक्षा से मृत्यु के मामले में कारावास की सजा पर डाक्टर भी जता रहे विरोध 

हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट 

जौनपुरः उतावलेपन या उपेक्षा पूर्ण किए गए कार्य से किसी की मृत्यु होने पर पहले आइपीसी की धारा 304 ए में दो वर्ष सजा या जुर्माना का प्रावधान था। अब भारतीय न्याय संहिता एक जुलाई से लागू होने के बाद धारा 304 ए अब धारा 106 हो गई है। इसमें उतावलेपन या उपेक्षा पूर्ण किसी कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने वाला पांच वर्ष तक की सजा से दंडित होगा और जुर्माना भी अदा करेगा। इसके अलावा नई धारा में यह भी जोड़ा गया है कि किसी चिकित्सा व्यवसायी द्वारा चिकित्सीय प्रक्रिया के दौरान अगर अपेक्षा पूर्ण कार्य करने से किसी की मृत्यु होगी तो दो वर्ष तक की सजा से चिकित्सा दंडित होगा और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से इस धारा का विरोध किया जा रहा है। 


धारा 106 की ही उप धारा 2 को लेकर पूरे देश में चालकों द्वारा विरोध किया गया। इसमें यह प्रविधान है कि यदि कोई व्यक्ति उतावलेपन या उपेक्षापूर्ण ढंग से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा और घटना के तत्काल बाद पुलिस या मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बिना निकलकर भागेगा तो उसे दस वर्ष तक कारावास की सजा होगी और जुर्माने से भी दंडित होगा। इसमें चालक को कई दिनों के लिए जेल भी जाना पड़ेगा। इस धारा को लाने के पीछे इसके पीछे सरकार की मंशा यह रही कि जो व्यक्ति दुर्घटना में घायल हुआ है या उसकी मृत्यु हुई है। उसके परिवार वालों को दुर्घटना करने वाले वाहन की बीमा कंपनी से क्षतिपूर्ति मिल जाए, क्योंकि दुर्घटना करके यदि वाहन भाग गया तो अज्ञात वाहन के खिलाफ एफआइआर दर्ज होती है और पीड़ित परिवार को क्षतिपूर्ति नहीं मिल पाती।हिट एंड रन के मामले में सरकार से कुछ क्षतिपूर्ति मिल जाती है। ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं कि मृतक के परिजन पुलिस से मिलीभगत करके अज्ञात वाहन के स्थान पर बीमित वाहन विवेचना में प्रकाश में लाकर उसके खिलाफ आरोपपत्र लगवाकर उसी वाहन की बीमा कंपनी से मुआवजा लेकर बीमा कंपनी को लाखों का नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा सरकार की यह भी मंशा रही कि दुर्घटना में घायल व्यक्ति की सूचना यदि दुर्घटना करने वाले वाहन का चालक तत्काल पुलिस या मजिस्ट्रेट को दे देगा तो घायल को तत्काल चिकित्सा सुविधा मिलने पर उसके बचने की भी संभावना रहेगी। दस वर्ष की सजा केवल तब होगी जब दुर्घटना करने के बाद वाहन बिना पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचित किए भाग जाए, लेकिन अगर वह पुलिस को सूचित कर देता है तब वह धारा 106 (1) के दायरे में आ जाएगा जिसमें सजा पांच वर्ष की ही है और उसकी जमानत भी पूर्व की भांति तत्काल हो जाएगी। धारा 106(2) जिसमें 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है वह एक प्रकार से सशर्त धारा है जो केवल तब लागू होगी जब दुर्घटना करने के बाद वाहन का ड्राइवर पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना न दे। चालकों का कहना है कि दुर्घटना के बाद भीड़ आक्रोशित होती है उस समय भागना ही विकल्प रहता है, अन्यथा भीड़ चालक को मार सकती है। यदि ऐसी बात भी है तो ड्राइवर वहां से गाड़ी आगे ले जाकर अन्य किसी थाने पर भी इस दुर्घटना के बाबत सूचना देकर इस दंड के प्रविधान से बच सकता है। इसके अलावा गाड़ी से आगे जाकर पुलिस को इमरजेंसी काल करके भी घटना की सूचना देकर इस दस वर्ष तक की सजा के प्रविधान से बच सकता है। फिलहाल अभी धारा 106 (2) जिसमें दस वर्ष तक की सजा का प्रविधान है उसे देश भर में चालकों के विरोध के कारण सरकार द्वारा प्रभाव में नहीं लाया गया है। इस संबंध में अधिवक्ता वीरेंद्र सिन्हा,प्रवीण मोहन श्रीवास्तव एवं सुभाष मिश्रा एडवोकेट कहते हैं कि धारा 106(2)में मजिस्ट्रेट व पुलिस को सूचना न देने पर 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है लेकिन अगर ड्राइवर घटना के बाद आगे जाकर किसी भी थाने पर या फोन से पुलिस को सूचना दे देता है तब यह 10 वर्ष की सजा का प्रावधान लागू नहीं होगा।उस स्थिति में धारा 106(1)के तहत 5 वर्ष तक की सजा का प्रविधान लागू होगा जिसमें ड्राइवर को पूर्व की भांति तुरंत जमानत मिल जाएगी। ऐसी स्थिति में इस धारा के विरोध का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। हां यह अलग बात है कि पहले 2 वर्ष की सजा थी अब 5 वर्ष की सजा हो गई है लेकिन जमानत तो अब भी मिल जाएगी। अधिवक्ताओं का कहना है कि सड़क पर चलने वाले नागरिकों की सुरक्षा का दायित्व राज्य का है। अगर दुर्घटना करने के बाद ड्राइवर वाहन समेत फरार हो जाता है और धारा 106(2) ड्राइवरों के विरोध के कारण लागू भी नहीं होती तो ऐसी स्थिति में राज्य का दायित्व है कि राज्य दुर्घटना में घायल व्यक्ति या मृतक के परिजनों को वही सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति अदा करे जितनी मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण द्वारा मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों तहत प्रदान किया जाता है। यह व्यवस्था कानून में होना सरकार से अपेक्षित है।

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