बाढ़ के पानी सरीखी हुई उत्तर प्रदेश की राजनीति, नेता हुए गलतफहमी के शिकार

-भारत न्याय यात्रा के दौरान राहुल गाँधी को ज़मीनी हक़ीक़त का पता लग गया, अब वह मायावती की तरह यूपी में अपने संगठन को मजबूत करने में लग गए, लेकिन पीडीए फार्मूला के चलते अखिलेश यादव सातवें आसमान पर तैर रहे l

-कैडर बेस पार्टी भाजपा को वर्षों चले घमासान के बाद समझ आने लगा कि कार्यकर्ताओं के बल पर ही पार्टी के कोर वोटर साथ देते हैं तभी कोई बड़ा नेता बना रह सकता है, दलबदलू नेताओं से कार्यकर्ताओं के साथ कोर वोटर भी छोड़ देता है साथ l

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-कैलाश सिंह-

लखनऊ (तहलका विशेष)l आज़ हम 2014 से 2024 में हुए लोकसभा व विधान सभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश की राजनीति में हो रहे उलटफेर के आकलन से दलों और उनके नेताओं के चिंतन की नब्ज़ निष्पक्ष भाव से टटोलने की कोशिश कर रहे हैं l इसमें बड़े राजनीतिक विश्लेषक 'एस पांडेय'  आकलन अहम है ल पहली नज़र में प्रदेश की राजनीति उस बाढ़ के पानी सरीखी हो चली है जो बारिश का मौसम जाते ही अपने पीछे कचरा छोड़ जाती है, उसी तरह राजनीतिक बाढ़ खासकर 'जाति आधारित' होने पर चुनाव बीतते ही नेताओं के दिमाग में गलतफहमी छोड़ जाती है l नेताओं की इसी गलतफहमी से पैदा हुए गुरुर को उनके पीछे डुगडुगी बजाने वाले अहंकारी बना देते हैंl प्रदेश में यह स्थित कायम है, जो समझ गए हैं वह तो अपने संगठन को मजबूत करने में लग गए हैं और जो हवा में तैर रहे हैं वह अपने हर कार्ड को हुकुम का गुलाम मान रहे हैंl

विगत लोकसभा चुनाव में देश के सभी राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश भाजपा के टिकट वितरण, प्रत्याशियों का चयन, संगठन की बैठकों में आदेश, निर्देश हो या चुनाव प्रचार में मुद्दे उठाने की समूची जिम्मेदारी, अपने कन्धे पर लेकर अमित शाह ऐसे डिक्टेटर बन गए जिनकी गलतफहमी के गुब्बारे की हवा को संगठन के ब्लॉक लेबल तक के कार्यकर्ताओं ने निकाल दीl बावजूद इसके चुनाव परिणाम आने के दो महीने बाद तक उन्हें अचम्भा लगता रहा है कि मोदी का जादू, लहर, हमारी रणनीति, चाणक्य का तमगा यह सब कैसे अचानक ताश के पत्तों की तरह बिखर गया, जबकि केन्द्र में नायडू और नीतीश की बैशाखी पर एनडीए की सरकार हिचकोले के साथ चल रही है और विपक्ष में भारत न्याय यात्रा से ज़मीनी हकीकत समझ चुके कांग्रेस के राहुल गाँधी जैसा युवा नेता हर सवाल का जवाब मांग रहा हैl

 खैर, इनकी गलतफहमी से पर्दा बीते 27 जुलाई को थोड़ा हटा तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में संगठन को एकजुट करने की समझ आईl यहाँ तक समझने की नौबत यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के जवाब और संघ की सलाह से आई l अब भाजपा में घमासान कम हुआ तो पार्टी कैडर पर चिंतन होने लगाl

सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव पीडीए की सफलता से इतने उत्साहित हैं कि सातवें आसमान से नीचे उतरकर झांकने की भी जहमत नहीं उठा रहे हैं l जबकि राहुल गाँधी यह समझ चुके हैं कि  मुस्लिम वोटर पूरा और नान जाटव दलित कांग्रेस की तरफ़ आया लेकिन गठबंधन के चलते वह सपा को वोट दिया l इसी के बल पर सपा को 37 सीटें मिलीं तो अखिलेश यादव पीडीए की सफ़लता मानकर गलतफहमी के शिकार हो गए l राहुल गाँधी अपनी पार्टी का कैडर फ़िर खड़ा करने में लगे हैं ताकि 2027 में गठबंधन रहे तो सीटों की हिस्सेदारी भी बराबर हो l 

गौर कीजिए 2012 में जीत की फसल पकाकर अखिलेश यादव को सीएम बनाने और करीब डेढ़ साल तक सरकार चलाने में मदद उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने ही की थी, इसके बाद घर की पार्टी में कलह से परिवार बिखर गया l 2017 के विस चुनाव में उनके साथ लगे डुगडुगी बजाने वालों ने जीत की गलतफहमी पैदा की थी, उन्हें उस हार की टीस अभी तक साल रही है, तभी तो उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य को सौ विधायक लाओ, सीएम बन जाओ का दूसरी बार ऑफर दिया, पहली बार 2022 से पहले दिया था अबकी उसका नाम मीडिया वालों ने मानसून ऑफर रख दिया l 

गौर कीजिए जिस केशव मौर्य के रहते भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्य को लाई, फिर वह 2022 में अपनी ही सीट हार गए इसके बाद भी पार्टी उन्हें डिप्टी सीएम बनाए रखती है और उसी को मानसून ऑफर देना अखिलेश यादव की राजनीतिक परिपक्वता को दर्शता है l जब भाजपा अपने कोर वोटर रोकते हुए अन्य वर्गों को फिर जोड़ लेगी, साथ में कांग्रेस अपना संगठन नए सिरे से खड़ा कर लेगी और बसपा भी फ़िर मजबूती से उठ गई तब पीडीए का हाल क्या होगा l अब मायावती की सक्रियता से लग रहा है कि एक बार फ़िर दलित राजनीति आगे आएगी l कांशी राम ही दलित राजनीति खड़ी किए और दशकों तक कांग्रेस के वोटर रहे दलित बसपा से जुड़े थेl संविधान में बदलाव के नारे से नान जाटव टूटे तो कांग्रेस का रुख किए l

भाजपा में योगी आदित्यनाथ पहले ही कह चुके थे कि मुझे हटना पड़ा तो गोरक्षपीठ चला जाऊंगा लेकिन दो, चार विधायक भी तोड़ने की ताकत न रखने वाले केशव मौर्य कैसे सौ विधायक तोड़कर सपा के साथ जाते l रहा सवाल पार्टी छोड़ने का तो उन्हें पूर्व सीएम कल्याण सिंह और उमा भारती की नज़ीर सपने में दिखने लगीl निष्कर्ष यह  कि 2027 में मुकाबला भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस में चतुष्कोणीय होगा, गठबंधन चाहे जिसका रहे, मतदाता ही सबक देगा l

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