भारत कृषि प्रधान के साथ धार्मिक देश भी है...

 डा. दिलीप सिंह एडवोकेट

हमारे ऋषि—मुनि बहुत बुद्धिमान और विद्वान थे, इसलिए उन्होंने देशकाल पर स्थितियों के अनुसार उन्होंने संपूर्ण 12 महीनों की इतनी सुंदर विस्तृत वैज्ञानिक समायोजन किया था कि आश्चर्य होता है भारत एक कृषि प्रधान धार्मिक देश था, इसलिए सावन के महीने में चारों तरफ पानी भरा रहने से चारों तरफ घनघोर जंगल, वनस्पतियां, पेड़—पौधे होने से कहीं आना-जाना संभव नहीं होता था, इसलिए घर पर रहकर धर्म के कार्यों को किया जाता था और घर—परिवार—समाज एक साथ भगवान शिव माता पार्वती की पूजा—पाठ, हवन, यज्ञ अनुष्ठान करके खुद को धन्य समझता था और उत्साह उमंग में भर जाता था। इससे परिवार, समाज और धर्म की एकता बहुत शक्तिशाली हो जाती थी और सबको यथोचित फल भी प्राप्त होता था। धार्मिक आध्यात्मिक विषयों में वार्ता करते हुए सारा समय अच्छे से बीत जाता था।


सावन महीने का वैज्ञानिक एवं पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन का महत्व
जैसा कि आज विज्ञान और वैज्ञानिक तथा सारे संसार के बुद्धिजीवी भी स्वीकार कर चुके हैं कि सनातन धर्म से अधिक वैज्ञानिक विस्तृत और उत्कृष्ट कोई अन्य ऐसा धर्म नहीं है जो देशकाल परिस्थितियों में संपूर्ण जीवन में समायोजन का सुंदर से सुंदर उदाहरण प्रस्तुत कर सके। सावन महीने में तेल, मसाले, मांसाहार, मदिरा, शराब तथा ठंडी चीजों का प्रयोग वर्जित किया गया था, क्योंकि एक तो यह सब जहर से ज्यादा हानिकारक सावन महीने में सिद्ध होते थे। दूसरे दूध का पीना भी इसलिए वर्जित किया गया था कि इस समय पेड़ पौधे, वनस्पतियां और फसलों में बहुत खतरनाक जीवाणु, विषाणु, कीटाणु, रोगाणु और हानिकारक जीव—जंतु के बैठे रहने से वह विषैला हो जाता है और इसलिए उसे दूध को भगवान शिव को अर्पित किया जाता था।
दुग्ध के साथ अर्पित की जाने वाली चीज जैसे जड़ी बूटियां, वनस्पतियां, भांग, धतूरा, फूल अन्य बेल पत्र इत्यादि मिलकर वातावरण को शुद्ध और स्वच्छ बनाते थे और जब यह जल में मिलता था तो जल भी शुद्ध हो जाता था और इससे ऐसी महक उत्पन्न होती थी कि  खतरनाक सांप, बिच्छू, कीड़े, मकोड़े, जीवाणु, विषाणु घर छोड़कर काफी दूर भाग जाते थे। ऐसा ही कुछ नागपंचमी में भी होता है। मछलियां इस काल में प्रजनन करके बच्चे देती हैं। इस काल में मछली खाना-वाना होने के कारण उनकी वृद्धि बहुत तेजी से और अपरंपार हो जाती थी। यही हाल मांसाहारी पशुओं के साथ भी होता था। अभी भी भारत के धर्म दर्शन, विज्ञान, अध्यात्म और सबसे उत्तम जीवन के बारे में खोज अनुसंधान संपूर्ण विश्व में जारी है।

सावन महीने में भगवान शिव ही की पूजा क्यों?

ब्रह्मा,विष्णु और शिव अपनी शक्तियों के साथ सृष्टि का पालन संहार और सृजन करते हैं। इस समय भगवान विष्णु 4 महीने योग निद्रा में होते हैं और सृष्टि के संपूर्ण नियंत्रण का भार भगवान शिव के ऊपर आ जाता है, इसलिए अधिष्ठात्र देवता होने के कारण भगवान शिव की ही पूजा भगवती मां पार्वती के साथ की जाती है। भगवान शिव का सामंजस्य भी सावन महीने के साथ बहुत सटीक बैठता है। गले में सांप की माला गंगा नदी का मस्तक पर विराजमान होना चंद्रमा और त्रिशूल के साथ डमरू और गले में काल कूट हलाहल विष उसके साथ संपूर्ण शक्तियों का होना और साथ में नंदी तथा गणेश भगवान और भूत, प्रेत, पिशाच, श्मशान घाट, हिमालय का बर्फ से ढका हुआ क्षेत्र कैलाश मानसरोवर की परम पवित्र भूमि चारों ओर ऋषि—मुनि—देवता नाग, असुर, गंधर्व, दानव, मानव सब उनकी पूजा करते हुए कुल मिलाकर इससे अधिक सामंजस्य संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं देखने को मिलता। भगवान शिव सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले और केवल जलाभिषेक से ही संतुष्ट हो जाने वाले हैं और उनकी शक्ति भगवती मां पार्वती संसार की आदि शक्ति हैं। दया, ममता, माया, उदारता का केंद्र बिंदु है, इसीलिए इस महीने का पूरा पूजा पाठ भगवान भोलेनाथ को समर्पित रहता है।

भगवान शिव व सावन महीने के अन्य रहस्य

भगवान शिव की पूजा के लिए मुख्य रूप से गाय का घी लाल और सफेद चंदन का चूर्ण, पान का पत्ता, धूप, दीप, सुगंधी फल, फूल, बेलपत्र, कपूर, मिठाई, मधु, दही, दूध, मेवा, गुलाब जल, केवड़ा जल, पंचामृत गाने, नारियल का रस, जल, मिश्री, पंचामृत, अक्षत, सुपारी, सारंगी यंत्र, हरी दूब, रक्षा सूत्र, रोली, सिंदूर, राष्, अष्टगंध, अबीर, गुलाल, नारियल, भांग, धतूरा और शिवलिंग का पूजन किया जाता है। शिवलिंग स्वयं ही संपूर्ण शक्ति ऊर्जा और प्रकाश का केंद्र पूरी सृष्टि में होता है, इसलिए परमाणु भट्ठियां भी शिवलिंग के आकार की ही बनाई जाती है। इन सबका बहुत विस्तृत वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व है। सृष्टि के लिए यह सभी अपरिहार्य तत्व हैं। इस महीने में लोगों को यथाशक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने को कहा गया है, क्योंकि इस समय शक्ति बहुत जल्दी क्षीण होती है। सात्विक रहने से और धर्म का आचरण करने से तथा सादा भोजन खाने से उच्च विचार शारीरिक शक्ति और सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इसलिए सावन को सबसे पवित्र और सबसे फलदाई महीना माना जाता है। पूरे एक महीने तक इसमें शुभ और अशुभ मुहूर्त का चिंतन नहीं होता है, इसलिए आपातकाल में शुभ और मांगलिक कार्य इस महीने में किया जा सकते हैं। उपसंहार वास्तव में सावन महीना परम पवित्र है और भगवान शिव भगवती पार्वती अद्वितीय और आदिशक्ति हैं, इसलिए उनको अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। इस प्रकार संपूर्ण सावन में स्वच्छता के साथ शिव जी के रुद्राभिषेक करने से चारों ओर सैनिटाइजेशन अर्थात वातावरण रोग रहित हो जाता है। नदियां, जल और हवा शुद्ध हो जाते हैं। लोगों में भक्ति उत्सव उमंग भर आता है, इसलिए सावन महीना अद्भुत और अद्वितीय हैं।

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