इस शख्स ने नौकरी करने के बजाय चुना स्वरोगार, आज सफलता चूम रही है कदम

 जौनपुर। इण्टर तक की पढ़ाई में यदि अव्वल नही है तो आप लोग वगैर समय गवाएं अपनी क्षमता के अनुसार व्यापार में उतर जाय, अपने कौशल व मनपंसद कार्य को पूरी मेहनत और ईमानदारी से करें तो सफलता अवश्य मिलेगी। पढ़े लिखे बेरोजगार युवकों को यह संदेश दे रहे है खाना खजाना रेस्टोरेंट एवं होटल के अधिष्ठाता संजय श्रीवास्तव ने। संजय ने वगैर परिवार वालों की रजामंदी के पढ़ाई को ब्रेक करके अपना व्यापार शुरू किया तो सफलता कदम चूमने लगी। आज संजय जहां खुद अपने व्यापार में बुलंदी  है तो वही सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दिया है। काम धंधा को पटरी पर दौड़ाने के साथ ही उन्होने फिर से पढ़ाई-लिखाई शुरू करके लॉ किया। 

कायस्थ परिवार पढ़ाई लिखाई करके सरकारी, गैर सरकारी नौकरी करना अपना धर्म मानता रहा है लेकिन समय की मांग को देखते हुए तमाम युवाओं का रूझान अब स्वरोजगार की तरफ बढ़ा है हलांकि ऐसे युवाओं की तादात अभी नाम मात्र ही है। 

व्यापार को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले शकरमंडी मोहल्ले के निवासी संजय श्रीवास्तव इण्टर तक की पढ़ाई में आपेक्षित नम्बर नही ला पाये तो उन्होने स्वरोगार करने को ठान लिया। उन्होने अपना निर्णय परिवार वालों को बताया तो सभी लोग आवाक रह गये। परिवार वाले उनके इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि कायस्थ्य परिवार का लड़का अगर ग्रेजुट तक की पढ़ाई नही करेगा उसका समाज में बदमनामी होगी। लेकिन संजय परिवार वालों की रजामंदी वगैर मात्र 23 वर्ष की उम्र में हीर व्यापार में कदम रख दिया। उन्होने दोस्तो की मदद से ओलन्दगंज में टीडी कालेज रोड पर नंद गारमेंट नाम से एक कपड़े का दुकान खोल दिया। संजय ने युवाओं की पंसद जींस टी शर्ट बेचना शुरू किया तो एक वर्ष के भीतर गारमेंट के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना लिया। 

संजय की कड़ी मेहनत ईमानदारी के चलते दुकान चलने लगी तो उन्हे एक और व्यक्ति के सहारे की जरूरत पड़ गयी। इसी बीच संजय के बड़े भाई जो बिहार में सहारा कम्पनी काम करते थे जिनकी तनख्वाह उस समय मात्र छह हजार मिलती थी। संजय ने उन्हे भी अपने धंधे में शामिल होने का आग्रह किया तो उन्होने तुरंत सहमति दे दिया। भाई का साथ मिलने के बाद व्यापार की रफ्तार तेज होती गयी। उसके बाद संजय ने हरलालका रोड पर दूसरी दुकान खोला। दोनो प्रतिष्ठान अच्छी तरह चलने लगा। 

जीता ं तो स्कूल खोलूगां हारा तो होटल चलाऊंगा 

गारमेंट की धंधे में सफलता हासिल होने के बाद संजय ने कुत्तुपुर तिराहे के पास अपनी जमीन पर कुछ अलग धंधा करने के लिए सोच बिचार कर रहे थे। वे कभी यहां स्कूल खोलना चाहते थे तो कभी होटल चलाने पर विचार कर रहे थे । इसी बीच उन्होने नगर पालिका के चुनाव में अपने वार्ड से सभासद की चुनाव लड़ने का मुड बनाया। उसी समय तय किया कि यदि जीत गया तो स्कूल खोलूंगा हार हुई तो होटल चलाऊंगा। भाजपा ने संजय को टिकट दिया लेकिन जातीय समीकरण के चलते उन्हे हार का सामना करना पड़ा। 

चुनाव हारने के बाद संजय ने खुद से किये गये वादे के अनुसार अपनी जमीन पर खाना खजाना नाम से रेस्टोरेंट खोल दिया। उन्होने बताया कि यह धंधा मेरे लिए नया था कोई अनुभव नही था लेकिन अपनी मेंहनत और ईमानदारी से कार्य करता रहा। उन्होने कहा कि यह धंधा पूरी तरह से कारीगरों व सहयोगियों के भरोषे होता है इस लिए मैने सबको अपने भाई की तरह इज्जत करता हूं 

महीने की पहली तारीख को किसी तरह से सभी के वेतन भुगतान कर देता हूं। इसी के कारण आज मेरे व्यापार अच्छी तरह से चल रहा है। 

संजय ने कायस्थ परिवार के युवाओं समेत हर जाति के युवाओं से अपील किया कि आप लोग सरकारी या गैर सरकारी नौकरी का इंतजार करने के बजाय खुद के अंदर के कौशल को समझते हुए कोई काम धंधा शुरू करियें आप लोग मेहनत और ईमारी से  कार्य किया तो सफलता अवश्य मिलेगी। 






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