कथा सम्राट प्रेमचंद का पूरा मानव समाज ऋणी है

जौनपुर। सल्तनत बहादुर पी जी कालेज बदलापुर  में मंगलवार को कथा सम्राट प्रेमचंद जी की जयंती की पूर्व संध्या पर एकसंगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें छात्र छात्राओं ने अधिक उत्साह से सहभागिता किया। 

सरस्वती वंदना रजनी और काजल ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर सुनील प्रताप सिंह  ने किया।

 मुख्य वक्ता पश (हिंदी विभागाध्यक्ष), प्रोफेसर डी के पटेल, विशिष्ट वक्ता डा रेखा मिश्रा और डा रोहित सिंह रहे।

वक्ताओं ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कथा सम्राट प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य से समस्त मानव जाति को मानवीय मूल्यों से समृद्ध करने का उत्तम योगदान प्रस्तुत किया है, जिसके लिए पूरा मानव समाज उनका ऋणी है और रहेगा। प्रेमचंद जी एक ऐसे साहित्य का आवाहन करते हैं जिसमें चेतना हो जो मनुष्य को सुलाये नहीं बल्कि समाज से बुराइयों को दूर करने के लिए बेचैन करे। क्रांति कारी विचार उत्पन्न करे। 

अपने सबसे प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में उन्होंने समाज की अनेकानेक बुराइयों को उजागर किया है उनमें से एक समस्या कृषक समस्या भी है इसीलिए गोदान को कृषक जीवन का महाकाव्य भी कहा जाता है। गोदान उपन्यास में  होरी नामक पात्र है जिसका पुत्र गोवर्द्धन है, लेकिन गोवर्द्धन को लोग गोबर कहकर पुकारते हैं। वस्तुतः समृद्ध और यशस्वी व्यक्ति की संतान को लोग आप कहकर पुकारते हैं वहीं ईमानदारी से जीवन यापन करने वाले की संतान को शुद्ध नाम से पुकार तक नहीं पाते। गोदान उपन्यास में एक साथ ग्रामीण समस्या, नगरीयसमस् या,शोषित वंचित वर्ग की समस्या ऐसी अनेक निर्दयी समस्याओं का चित्रण किया है। प्रेमचंद जी की एक कहानी है शतरंज के खिलाड़ी जिसमें उन्होंने दिखाया है कि सर्व शक्ति सर्व गुण सम्पन्न होते हुए भी भारतीय अपना समय कैसे व्यर्थ बिताते है और निजी सुख के लिए कितनी अनर्गल रुचि पाल लेते हैं। उनके इस मनबढ़ पन के कारण परिवार, राष्ट्र तथा वे स्वयं कितने असहाय हो जाते हैं। ऐसी अनेक कहानियाँ समाज का विद्रूप रुप चित्रित करती दृष्टि गत होती हैं।

प्रेमचंद जी के समय में भारत पर संकट के बादल छाये हुए थे। सामाजिक ढांचा पूरी तरह से डगमगा रहा था। ऐसी विषम परिस्थिति में अपनी लेखनी से सत्य का चित्रण विलक्षण ढंग से करके राष्ट्र के प्रति महत्वपूर्ण योगदान दिया । 

 छात्रा पूजा, अर्पिता, काजल आदि ने अपनी वैचारिकता को कुशलता से प्रस्तुत किया। कार्य क्रम का आयोजन और संचालन डा पूनम श्रीवास्तव हिंदी विभाग ने किया।

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