मानसून की शुरूआत से सर्पदंश का खौफ!
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अतुल प्रकाश जायसवालस्नैक बाइट—
हम गंगा व उसकी सहायक नदियों से निर्मित मैदानी इलाके में रहते हैं। इस उर्वर भूमि ने हमें सबकुछ दिया है। पर्याप्त पानी, हरियाली, जैव विविधता, खेती योग्य भूमि और अनुकूल जलवायु। पूर्वांचल, सीमावर्ती बिहार राज्य की मानवीय आबादी का सामना अक्सर ही जहरीले जंतुओं, मुख्यतः सर्प से होता रहता है। गंगा नदी की कृपा छाया में शहर बसे हैं तो गहरे पानी से भी सामना अक्सर होता रहता है। ऐसे में में अक्सर वहां सर्पदंश व नदी/तालाब/नहर में डूबने जैसी मेडिकल इमरजेंसी हमारे सामने आती रहती हैं। आज सर्पदंश विषय पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
सर्पदंश— मॉनसून की शुरुआत से सर्पदंश के मामले सुनाई पड़ने लगते हैं। -मध्य जून से मध्य अक्टूबर तक का समय सर्वाधिक संवेदनशील होता है। -वैसे तो हैबिटाट के क्षरण के कारण सांपों की संख्या में कमी आयी है। किंतु आज भी ग्रामीण इलाके सर्पों के निवास के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं, इसलिए ग्रामीण जन ही सर्वाधिक प्रभावित आबादी है। -'भारत में सर्पदंश मृत्युदर में रुझान' शीर्षक वाले जुलाई 2020 (2000-2019 तक) के एक अध्ययन आंकड़े: भारत में हर साल लगभग 28 लाख लोगों को सांप काटता है। लगभग 50000 लोग हर साल सर्पदंश के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। मरने वालों में 94% ग्रामीण भारतीय होते हैं।
सांपों को कितना जानते हैं?
जिस देश को मदारियों का देश कहकर खिल्ली उड़ाई गई, जिस देश में सर्प पूजा की परम्परा है, नागों को कई बार मानवों से ऊपर रखा गया, जो देश आज की तारीख में एंटी स्नैक वेनम का सर्वप्रमुख उत्पादक व निर्यातक है, उस देश की बड़ी आबादी सर्पों को ठीक से जानती-पहचानती तक नहीं। मालूम हो कि 90% सर्पदंश गैर-घातक होते हैं, क्योंकि सांपों की ज्यादातर प्रजातियां विषहीन होती हैं। देश में पाये जाने वाले जहरीले सांपो को उनके जहर के असर के अनुसार तीन प्रकारों में बाँट सकते हैं।
यूरोटॉक्सिक सांप— इनका जहर शरीर में फैलने के क्रम में नर्वस सिस्टम को चोट पहुंचाता है। बोलने में परेशानी/साँस लेने में दिक्कत/चक्कर आना/दृष्टि धुंधली होना/शरीर का लकवाग्रस्त होना/ब्रेन डैमेज जैसे घातक दुष्परिणाम प्रकट होते हैं। कोबरा व आम करेत सर्प इसी श्रेणी के सर्प होते हैं। उत्तर भारतीय प्रदेशों में इन्ही सर्पों की बहुलता है और सर्वाधिक मृत्यु का कारण भी यही हैं। बरसात के मौसम में इनके निवास स्थानों में पानी भर जाने के कारण ये बाहर निकल आते हैं और मानवीय आबादी से टकरा जाते हैं। भारतीय परम्परा में जिन्हें नाग देवता कहा जाता है, वही कोबरा के नाम से जाने जाते हैं।
हेमोटॉक्सिक सांप— इनका जहर अंदरूनी रक्तस्राव को बढ़ा देता है। वाइपर प्रजाति के सर्प रसेल, शॉ स्केल्ड वाइपर व नोज वाइपर इत्यादि का जहर हेमोटॉक्सिसिटी का कारण बनता है। रसेल वाइपर को दुनिया के सबसे विषैला सर्पों में से एक माना जाता है। आंकड़ों की मानें तो 15-20 मौतें उत्तर प्रदेश में हर साल रसेल वाइपर के काटने से होती हैं। रसेल वाइपर के काटने के मामले सोनभद्र जिले में ज्यादा मिलते हैं।
मायोटॉक्सिक सांप— आम तौर पर मायोटोक्सिक सांप समुद्री सर्प होते हैं और उन्हीं इलाकों में मिलते हैं। इनका मामला बहुत रेयर मिलता है।
कुछ जानने योग्य तथ्य— भारत में साँपों की 300 से ज्यादा प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इनमें से 60 जहरीली प्रजातियां मानी जाती हैं लेकिन 10 में से 9 मौतें 'बिग फोर' के कारण होती हैं -स्पेक्टेक्लेड कोबरा, कॉमन क्रेट/कैरत, सॉ-स्केल्ड वाइपर और रसेल वाइपर।
सर्पदंश से सम्बन्धित कुछ वैश्विक आंकड़े— सर्पदंश के मुख्यत: दो प्रकार होते हैं। 1. गीला सर्पदंश- जहर युक्त/विषहीन साँप द्वारा, 2. सूखा सर्पदंश- जहरीले साँप द्वारा (विष रहित), गैरजहरीले साँप द्वारा।
चिंताजनक केवल गीला (जहर युक्त) सर्पदंश होता है जो सांप के काटने के कुल मामलों में से केवल 5-8% होता है। दुनिया भर में सालाना लगभग 50 लाख सर्पदंश के मामले सामने आते हैं। सर्पदंश से मरने वालो की संख्या 81000 से 138000 के बीच रहती है। 4 लाख लोग स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं। सर्पदंश के वैश्विक मामलों में से आधे से अधिक भारत में रिपोर्ट होते हैं। मौत-विकलांगता का आंकड़ा भी भारत में ज्यादा मिलते हैं।राजस्थान, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक मृत्यु दर्ज की जाती है।
सर्पदंश का इलाज— वैसे तो सर्पदंश एक उपेक्षित समस्या है। WHO ने भी इसे नेगलेक्टेड टीरिड रिजन्स डीजीज (NTD) करार दिया है। दुनिया भर में अभी इस विषय पर व्यापक शोध की आवश्यकता है। भारत की बात करें तो 'बिग फोर' चिंता का कारण हैं। इन्हीं को टारगेट करते हुए एंटी स्नेक वेनम (ASV) का प्रोडक्शन लार्ज स्केल पर होता है। ज्यादातर मामलो में यह कारगर साबित होता है। सर्पदंश के केस में समय का बड़ा महत्त्व है। सर्पदंश के पश्चात् पहले एक घण्टे को 'दी गोल्डेन ऑवर' कहा जाता है। इस दौरान इलाज शुरू हो जाने पर जाने बचने की शत—प्रतिशत संभावना रहती है।
अधिकतम 6 घण्टे का विंडो माना जाता है। इसके पश्चात जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
अभी तक ASV सर्पदंश का एकमात्र प्रमाणित इलाज है। 10-30 वायल एक मरीज को नशों में लगाया जाता है। नीम-हकीम, झाड़-फूंक से कोई लाभ नहीं होता, बल्कि इससे आपका अनमोल समय नष्ट होता है। भारत ASV का लार्जेस्ट प्रोड्यूशर व एक्सपोर्टर है किंतु विशाल देश में सप्लाई चैन की बाधा व मेडिकल सुविधाओं के अभाव में लोग जान गवां रहे हैं।
सांप के काटने पर क्या करें— घबराए नहीं। सांप से दूर हो जायं। तत्काल लोंगो की मदद लें। फोन करें/आवाज लगायें। ध्यान रहे, अक्सर सर्पदंश जहरीला नहीं होता है। सांप की पहचान करने की कोशिश करें। मदद करने वाले व्यक्ति मरीज को सीधा लेटा दें। हिलाये-डुलाए नहीं। तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के पास पहुंचे। प्राथमिक चिकित्सालयों/जनपदीय चिकित्सालयों पर सरकार एंटी वेनम मुहैया कराती है। निजी चिकित्सालय भी अपने पास रखते हैं। घाव वाली जगह को काटना/चूसना/बांधना बिल्कुल भी नहीं है। सही दृष्टिकोण- राइट अप्रोच, आश्वासन, स्थिरीकरण, अस्पताल पहुंचना और इलाज करने वाले डॉक्टर को बताना है।