भारत के निवासी हैं गमें शब्बीर करेगें, हिन्दू हैं मगर मातमें शब्बीर करेगें

   

मुर्हरम में बड़ी संख्या में हिन्दू अजादार करते हैं मजलिस पढ़ते हैं नौहा         

  "सै. हसनैन कमर "दीपू"


जौनपुर। भारत के निवासी हैं गमें शब्बीर करेगें, हिंदू हैं मगर मातमें शब्बीर करेगें। ये नौहे की सदा माहे मुहर्रम के शुरू होते ही शिराजे हिन्द के नाम से पूरी दुनिया में पहचान रखने वाले जौनपुर में हिन्दू अजादार हजरत इमाम हुसैन व उनके 71 साथियों की शहादत की याद में दस दिनों तक रोजाना पढ़कर नौहा मातम करते हैं। हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक बनने के साथ संाप्रदायिक सौहार्द बनाने का यह मंजर नगर के यहियापुर इमामबाड़े में रोजाना शाम को सात बजे के बाद देखने को मिलता है। यहां मजलिस के बाद इमाम हुसैन को अपना नजरानए अकीदत को पेश करते हुए इमाम हुसैन को चाहने वाले अपने गम का इजहार खिराजे अकीदत पेश करते हैं। यही नहीं इन लोगों ने फिदाये हुसैन नाम की हिन्दू अंजुमन बना रखी है जो नौहा मातम करने के साथ साथ दसवी मुहर्रम को अपने घरों मे रखे ताजिये को सर पर रखकर सदर इमामाबड़े स्थित कर्बला में लेजाकर दफन करते हैं। हिन्दू अजादारों में खासकर के स्व.राजेश साहू के पुत्र सूरज साहू, सोनू साहू, निवासी अहियापुर काले कपड़ों में रहकर नंगे पांव न सिर्फ इमाम हुसैन की अजादारी करते हैं बल्कि शबीहे तुर्बत ताबूत को अपने हाथों से उठाकर नजरानए अकीदत पेश करते हैं। मजलिस मातम में शामिल होने वाले हिन्दू अजादार विरेंद्र कन्नौजिया, दिनेश राय, राहुल मौर्या, पवन मौर्या, विकास प्रजापति, ओम प्रकाश राव, डब्बू यादव, अंचल श्रीवास्तव, संदीप यादव, किशन यादव, मिथिलेश कुमार, अनुराग श्रीवास्तव, बासू यादव, रिशु यादव, हिमांशु सेठ ऐसे सैकड़ों हिन्दू अजादार है जो रोजाना अहियापुर इमामबाड़ा सैयद मोहम्मद अली मरहूम में पहुंचकर मजलिस करने के बाद नौहा मातम कर कर्बला के शहीदों को याद करते हैं। इन लोगों का कहना है कि इमाम हुसैन केवल एक धर्म के नहीं थे बल्कि पूरी इंसानियत के वो मसीहा थे इसलिए हम सभी लोग उनके गम में परिवार के साथ शामिल होते हैं जिसमे महिलाएं भी शामिल होती हैं। सैदनपुर निवासी पंजाब नेशनल बैंक से रिटार्यड प्रबंधक ज्ञान कुमार के आवास पर भी दस दिनों तक रोजाना अजाखाने में ताजिया रखने के बाद मजलिस व मातम का सिलसिला चलता रहता है और ग्यारहवीं मुर्हरम को उनके आवास से शबीहे ताबूत अलम व दुलदुल का जुलूस निकाला जाता है जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू अजादार शामिल होते हैं। ज्ञान कुमार ने बताया कि उन्होंने हजरत इमाम हुसैन के ऊपर दास्ताने कर्बला के नाम से किताब भी लिखी थी साथ ही वे कर्बला के दर्शन भी कर चुके हैं। ज्ञान कुमार ने बताया कि हजरत इमाम हुसैन ने जिस तरह से कर्बला के मैदान में शांति का प्रतीक बनते हुए अपने व परिजनों की शहादत दी उससे हमें सीख लेने की जरूरत है और उनके बताये हुए रास्ते पर चलकर अमन व शांति का पैगाम दें यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।

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