अधिकारियों की मनमानी से भुखमरी के कगार पर पहुंचे संविदा कर्मचारी
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बिना मतलब का मुकदमा झेल रहे बिजलीकर्मियों का 16 माह से नहीं मिला वेतन
जौनपुर। कर्मचारी हड़ताल के दौरान संविदा कर्मियों पर उच्चाधिकारियों द्वारा हड़ताल में शामिल होने का दबाव बनाने, फर्जी ढंग से प्राथमिकी दर्ज कराने तथा पिछले 16 माह से वेतन रोके जाने का मामला तूल पकड़ रहा है। पीड़ित कर्मचारियों ने सूबे के मुख्यमंत्री को लिखित पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाते हुये दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग किया है। शिकायतकर्ताओं के अनुसार वह बिजली विभाग में निविदा के तहत 1990 से कार्य कर रहे हैं। आये दिन मुसीबतों का सामना करने के साथ नये अधीक्षण अभियंता के आने से समस्याओं की वृद्धि हो गयी है।
मार्च 2003 को कर्मचारियों के हड़ताल के दौरान समस्त सरकारी कर्मचारी, अवर अभियन्ता, अधिशासी अभियन्ता एवं अधीक्षण अभियन्ता वि.वि. मण्डल प्रथम द्वारा समस्त संविदाकर्मियों को जबर्दस्ती हड़ताल पर भेजा जा रहा था। यह आश्वासन दिया जा रहा था कि तुम लोग हड़ताली कर्मियों का साथ दो, मैं देख लूंगा। फिलहाल संविदाकर्मियों ने हड़ताल में शामिल होने से मना कर दिया जिससे नाराज अधीक्षण अभियन्ता विवेक खन्ना एवं निवर्तमान अधिशासी अभियन्ता राम अधार ने हम लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। हड़ताल के दौरान कुछ लोगों को ही छोड़कर जनपद के तमाम संविदाकर्मियों को मजबूर कर हड़ताल में शामिल किया गया था लेकिन हड़ताल के दौरान चन्द लोगों का नाम ही यह स्पष्ट करता है कि यह मुकदमा फर्जी ढंग से थोपा गया है जबकि यदि इस दशा में मुकदमा हुआ तो सभी पर होना चाहिये था, न कि गिने—चुने संविधाकर्मियों पर। फिलहाल इससे जाहिर होता है कि सरकारी तंत्र ने बात न मानने वाले संविदाकर्मियों को किसी तरह बलि का बकरा बनाया है।
शिकायतकर्ताओं के अनुसार उपस्थिति रजिस्टर का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जायेगा कि मुकदमा झेल रहे कर्मचारी काम पर थे या नहीं? इतना ही नहीं, उपरोक्त मनबढ़ अधिकारियों ने 16 माह का वेतन भी रोक दिया जबकि काम लगातार लिया जा रहा है। ऐसे में ऐसे संविदाकर्मियों सहित उनके परिवार भुखमरी के कगार पर आ गये हैं जिससे हताश होकर मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत करते हुये गुहार लगायी गयी है। पीड़ितों कर्मियों में सन्त राम यादव, हिमांशु, जमाल, नरायन दास, कुंवर सिंह, प्रदीप कुमार, आशुतोष दुबे, सतीश सिंह आदि हैं।
मार्च 2003 को कर्मचारियों के हड़ताल के दौरान समस्त सरकारी कर्मचारी, अवर अभियन्ता, अधिशासी अभियन्ता एवं अधीक्षण अभियन्ता वि.वि. मण्डल प्रथम द्वारा समस्त संविदाकर्मियों को जबर्दस्ती हड़ताल पर भेजा जा रहा था। यह आश्वासन दिया जा रहा था कि तुम लोग हड़ताली कर्मियों का साथ दो, मैं देख लूंगा। फिलहाल संविदाकर्मियों ने हड़ताल में शामिल होने से मना कर दिया जिससे नाराज अधीक्षण अभियन्ता विवेक खन्ना एवं निवर्तमान अधिशासी अभियन्ता राम अधार ने हम लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। हड़ताल के दौरान कुछ लोगों को ही छोड़कर जनपद के तमाम संविदाकर्मियों को मजबूर कर हड़ताल में शामिल किया गया था लेकिन हड़ताल के दौरान चन्द लोगों का नाम ही यह स्पष्ट करता है कि यह मुकदमा फर्जी ढंग से थोपा गया है जबकि यदि इस दशा में मुकदमा हुआ तो सभी पर होना चाहिये था, न कि गिने—चुने संविधाकर्मियों पर। फिलहाल इससे जाहिर होता है कि सरकारी तंत्र ने बात न मानने वाले संविदाकर्मियों को किसी तरह बलि का बकरा बनाया है।
शिकायतकर्ताओं के अनुसार उपस्थिति रजिस्टर का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जायेगा कि मुकदमा झेल रहे कर्मचारी काम पर थे या नहीं? इतना ही नहीं, उपरोक्त मनबढ़ अधिकारियों ने 16 माह का वेतन भी रोक दिया जबकि काम लगातार लिया जा रहा है। ऐसे में ऐसे संविदाकर्मियों सहित उनके परिवार भुखमरी के कगार पर आ गये हैं जिससे हताश होकर मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत करते हुये गुहार लगायी गयी है। पीड़ितों कर्मियों में सन्त राम यादव, हिमांशु, जमाल, नरायन दास, कुंवर सिंह, प्रदीप कुमार, आशुतोष दुबे, सतीश सिंह आदि हैं।