काल कलौती उज्जर धोती मेघा...पानी दे

 काल—कलौती खेलकर बच्चों ने इन्द्रदेव से की बारिश की याचना

पाश्चात्य संस्कृति की आंधी में दिखने लगीं प्राचीन मान्यताएं



सुइथाकला, जौनपुर। सावन के महीने में जहां धरती जल से परिपूर्ण रहती थी, वहीं अब तेज उमस और गर्मी के बीच धूल उड़ती दिख रही है। मानसून की बेरूखी व बारिश को लेकर लगाए जा रहे तमाम अनुमानों पर पानी फिर चुका है। बारिश का पूरा जुलाई माह गुजर चुका है लेकिन फिलहाल अभी बारिश का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। बारिश की धूमिल होती उम्मीदें और आसमान पर काले बादलों की आंख-मिचौली अब किसानों के साथ आम जनमानस को पीड़ा देने लगी है।

 मौसम विभाग की नाकाम साबित हुई भविष्यवाणी के बाद अब बारिश के लिए भगवान इन्द्र से प्रार्थना करने के साथ हीं बादलों की खुशामदी के लिए गांवों में लोग टोटके भी अजमाने शुरू दिये हैं। उमस भरी गर्मी से बेहाल बच्चे मंगलवार को भगवान इंद्रदेव से याचना करते हुए जमीन पर पानी फेंककर उसमें लोटते हुए काल कलौती उज्जर धोती मेघा...पानी दे कहते नजर आए। कहा जाता है कि बच्चों के इस तरह मिट्टी में लोटने पर भगवान को दया आती है और भगवान इंद्रदेव जल की वर्षा कर लोगों को सुखी कर देते हैं।

पुरानी मान्यताओं के अनुसार जल के देवता इंद्र को मनाने के लिए महिलाओं द्वारा जहां अनेक टोटके अजमाये जा रहा है, वहीं गांव के बच्चे  इंद्र देवता को रिझाने के लिए काल—कलौती उज्जर धोती कहकर बादलों से पानी मांग रहे थे। प्रत्येक घर के लोगों द्वारा बच्चों के ऊपर पानी फेंका जाता है और बच्चे कीचड़ में लोटकर बादल से जल की याचना करते हैं।इस टोटके में प्रत्येक घर से जाते वक्त घर के मुखिया द्वारा आटा, दाल, आलू आदि दिया जाता है जिससे काल—कलौती खेल रहे बच्चे शाम को उसी का भोजन करते हैं। दो-तीन दशक पहले यह प्रथा बारिश न होने पर हर गांव में चलती थी। इसी प्रथा को निभाते हुए विकास खण्ड स्थित पलिया गांव के बच्चों ने पूरे गांव में लोटकर इंद्रदेवता से पानी मांगा। इस दौरान बच्चों के अलावा गांव के बड़े-बुजुर्ग और किसान मौजूद रहे।

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