एक बेटी के अनकहे शब्द

 एक बेटी के अनकहे शब्द


आखिर क्यूँ तुम इतने भेदभाव करते हो कि

बेटे के जन्म पर शहनाई बजाते हो और
बेटी के जन्म पर मातम मनाते हो।
आखिर क्यूं बेटे को ऊँचे स्तर की शिक्षा दिलाते हो और
बेटी को घर की लाज का तग्मा पहनाते हो।
आखिर क्यूं तुम बेटे की हर फरमाइश को
पूरी करते हो और
बेटी की हर जरूरतो को भी
नजर अंदाज करते हो।
आखिर क्यूं तुझे बेटे की बुराइयों में भी
अच्छाइयां नजर आती हैं और
बेटी की अच्छाइयों में भी तुझे
बुराइयां नजर आती हैं।
आखिर क्यूं तुम बेटे को
इतना बढ़ावा देते हो और
बेटियों की हर खुशी का
गला दबाते हो।
अरे! क्या तूने सिर्फ बेटे को पैदा
करने में ही दर्द सहन किया था
क्या बेटी को किसी डाल से
आसानी से तोड़ लाया था।
अरे जरा सोचो...
बेटे को तो तुम्हारी फिकर भी
नहीं है होती जबकि
बेटियां तुम्हारे हर गम पर हैं रोती।
अरे! बेटे को तो हमेशा तुझ से
दौलत की ही चाह है होती जबकि
बेटियों को तो हमेशा तुम्हारी खुशी की चाह बस है रहती।
फिर भी तुझे हमेशा बेटे की ही
परवाह क्यूं है होती
क्यूं तुझे बेटी की आंखों में मचलते सपने नजर नहीं है आती।
अर! तुम अब तो अपनी
सोच में बदलाव लाओ
बेटे जैसे ही बेटी को भी
अपने हृदय से लगाओ।
क्योंकि, तुम सुधरोगे, जग सुधरेगा
जग सुधरेगा, नया सृजन होगा।

संजुला सिंह, जमशेदपुर।

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