अब घायल के दिव्यांग होने या कोमा में जाने पर 10 वर्ष से उम्रकैद तक की होगी सजा

 पुराने व नये कानून में गम्भीर चोट पहुंचाने वाले को तत्काल जमानत की व्यवस्था विचारणीय



हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट

जौनपुर। पुराने कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 325 जमानतीय धारा होने के कारण गंभीर चोट पहुंचाने के आरोपितों को तुरंत जमानत का प्रावधान था। मारपीट कर किसी का हाथ या पैर तोड़ने, आंख फोड़ने इत्यादि अन्य मामलों में जमानत मिल जाती थी। नए कानून भारतीय न्याय संगीता 2023 की धारा 117 की उपधारा 2 में अभी भी पुरानी व्यवस्था ही है लेकिन नये कानून में उपधारा 3 व उपधारा 4 जोड़ी गई है। उपधारा 3 में यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को ऐसी चोट पहुंचाई जाती है जिससे वह स्थाई रूप से दिव्यांग हो जाता है या कोमा में चला जाता है तो आरोपित को 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा होगी।
अपराध अजमानतीय होगा और सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय होगा जबकि पूर्व की धारा 325 आईपीसी एवं नए कानून की धारा 170 की उपधारा दो अभी भी जमानतीय और मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है जिसमें 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। अर्थात अभी भी किसी व्यक्ति की आंख की दृष्टि की स्थाई क्षति, कान की श्रवण शक्ति की स्थाई क्षति, शरीर के किसी अंग या जोड़ का विच्छेद या स्थाई ह्वास, सिर या चेहरे का विद्रूपीकरण इत्यादि मामले में आरोपित की अभी भी तत्काल जमानत का प्रावधान है। हां, यदि चोट से व्यक्ति विकलांग हो जाए या कोमा में चला जाए तो वह धारा 117 की उपधारा 3 की श्रेणी में आएगा और 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा से दंडित होगा। नए कानून की धारा 117 के उपधारा 4 में प्रावधान है कि 5 या उससे अधिक व्यक्ति सामान्य सहमति से कार्य करते हुए किसी व्यक्ति को उसके मूलवंश, जाति या समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या अन्य किसी समान आधार पर गंभीर चोट पहुंचाते हैं तो ऐसे व्यक्ति 7 वर्ष कारावास से दंडित होंगे। यह धारा भी अजमानतीय और सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय बनाई गई है। पहले यह प्रावधान नहीं था।
इस संबंध में अधिवक्ता अवधेश तिवारी, प्रशांत पंकज श्रीवास्तव व अवनीश चतुर्वेदी ने बताया कि नए कानून भारतीय न्याय संहिता की धारा 117 की उपधारा 3 में किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाकर दिव्यांग करने या उसके कोमा में जाने पर कठोर दंड एवं उपधारा 4 में मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान इत्यादि आधार पर गंभीर चोट पहुंचाने वाले को कठोर दंड का प्रावधान स्वागत योग्य है। अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कठोर दंड आवश्यक है लेकिन उपधारा 2 में अभी भी किसी का हाथ या पैर तोड़ने, आंख फोड़ने वाले को जमानत का प्रावधान है जिसमें संशोधन अपेक्षित है।लगातार प्रहार करके किसी का हाथ या पैर तोड़कर उसे गंभीर चोट पहुंचाना एक जघन्य आपराधिक कृत्य है। कठोर दंड का प्रावधान करके इस आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है। जेल जाने का डर होने, सजा कठोर होने पर आरोपियों में भय पैदा होगा तुरंत जमानत का प्रावधान अपराध को बढ़ावा देता है।

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