क्यों होते हैं भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ?

 

डा. रजनीकान्त द्विवेदी

एक बार भगवान जगन्नाथ अपने प्रिय भक्त माधव दास की अनन्य सेवा से प्रमुदित हो गई। कुछ ही दिनों बाद माधव दास अत्यंत अस्वस्थ हो गए। भगवान ने उनकी खूब सेवा करें और जैसे ही वह होश में आए, उन्होंने भगवान से निवेदन किया कि प्रभु आप तो जगदीश्वर हो, इसलिए नाथ इस सेवा के बदले आप मेरे कष्ट की निवृत्ति ही कर देते हो। अच्छा होता। प्रभु श्री जगन्नाथ जी ने अपने प्रिय भक्त माधव दास से कहा कि प्रारब्ध का भोग आवश्यक है। इससे तुम्हारे कष्ट की मैंने निवृत्ति की। यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो तुम्हारे बच्चे हुए शेष 15 दिन मैं ग्रहण कर लेता हूं और भगवान उसी कारण से भक्तों के प्रारब्ध को अपने ऊपर लेकर 15 दिनों तक अस्वस्थ रहे। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए श्री जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव समिति रासमंडल मंदिर प्रांगण में भगवान को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गर्मी से हो रहे तपन को शांत करने लिए 108 घड़े से भक्तों ने स्नान कराया। तत्पश्चात भगवान आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक ज्वर पीड़ा से पीड़ित हो अस्वस्थ हो गये। नित्य भगवान की सेवा भोग प्रसाद आदि कार्य में अध्यक्ष शशांक सिंह, शिवशंकर साहू, संजय गुप्ता सीए, आशीष यादव, मंदिर के महंत दिनेश चंद्र दिवेदी, राजेश गुप्ता, निशाकांत के अलावा मंदिर से जुड़े अनेक भक्तों एवं माताओं की उपस्थिति निरंतर रहती है।

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