हाथी को वश में करने वाला बनेगा विजेता

 भाजपा एवं सपा के निशाने पर रहे बसपा के वोटर

प्रमोद जायसवाल

जौनपुर। चुनावी समर के छठे चरण में संसदीय क्षेत्र जौनपुर और मछलीशहर के प्रत्याशियों के भाग्य ईवीएम में कैद हो चुके हैं। दोनों जगह मुख्य मुकाबले में भाजपा व इंडी गठबंधन ही नजर आ रहा है। बसपा तीसरे नंबर पर है। कमल की चमक तथा साइकिल की रफ्तार ने हाथी की चाल धीमी कर दी। इसका फायदा भाजपा व सपा ने जमकर उठाया। बसपा के कोर वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर हथकंडे अपनाए। अपने वोटबैंक के अलावा बसपा के वोटरों को तोड़ने में जो प्रत्याशी ज्यादा कामयाब होगा उसके जीत की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी।



वर्ष 2019 में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। जौनपुर में बसपा उम्मीदवार श्याम सिंह यादव ने बीजेपी के केपी सिंह को करीब 81 हजार मतों से हराया था जबकि मछलीशहर में भाजपा के बीपी सरोज ने बसपा के त्रिभुवन राम को मात्र 181 वोटों से शिकस्त दी थी। इस बार दोनों जगह बसपा के प्रत्याशी भी मैदान में है, इसीलिए बसपा का मत इंडी गठबंधन के खाते से माइनस होगा। कांग्रेस का वोट इंडी गठबंधन के खाते में इस बार अवश्य जुड़ेगा मगर वह बसपा के मतों की भरपाई एक चौथाई भी नहीं कर पाएगा। भाजपा और सपा के आगे बसपा की हालत काफी कमजोर है और लड़ाई से बाहर मानी जा रही है। बसपा उम्मीदवार निवर्तमान सांसद श्याम सिंह यादव ने सपा के यादव वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की, मगर ज्यादा सफल नहीं हो सके। यदुवंशियों का वही वोट उन्हें मिल रहा है जो बाबू सिंह कुशवाहा के प्रत्याशी बनाए जाने से नाराज हैं। बसपा के लड़ाई से बाहर होने का हवाला देकर सपा ने दलितों का काफी वोट अपनी तरफ कर लिया इसमें बीजेपी भी पीछे नहीं रही। इसमें सपा द्वारा संविधान खत्म करने का नैरेटिव काफी कारगार रहा। एक दलित वोटर ने बताया कि जीतने के बाद भाजपा बाबा साहेब का संविधान खत्म कर देगी, इसलिए सपा की हालत मजबूत देखकर उसे वोट दिया।

इधर मछलीशहर में निवर्तमान सांसद बीपी सरोज भाजपा से इस बार भी मैदान में है। सपा ने पूर्व सांसद तूफानी सरोज की बेटी प्रिया सरोज को समर में उतारा है। बसपा ने कृपाशंकर सरोज पर दांव लगाया है। यहां जातीय आंकड़ों पर गौर करें तो पिछड़े और दलितों की संख्या अधिक है। यहां भी इस बार बसपा का वोट इंडी गठबंधन के उम्मीदवार के खाते से माइनस होगा। उसे जीत के लिए इतना मत अन्य दलों में सेंध लगाकर जुटाना होगा।


बीजेपी का वोटबैंक लगभग स्थिर


पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी का वोटबैंक लगभग स्थिर है। अयोध्या में रामलला का मंदिर बनने तथा तमाम कल्याणकारी विकास योजनाओं के चलते जहां कुछ फीसदी मत प्लस हुए हैं वहीं एंटी इनकम्बेंसी के मुद्दे पर वोटरों का रुझान बीजेपी से थोड़ा कम हुआ है। बीजेपी इस डैमेज को कंट्रोल करने में जी जान से जुटी रही। वहीं पार्टी के स्टार प्रचारक भी जनसभाओं के माध्यम से बीजेपी के पक्ष में हवा बनाते रहे। 


धनंजय का समर्थन मिलने से बीजेपी को फायदा


चुनाव के आखिरी दौर में पूर्व सांसद धनंजय सिंह द्वारा समर्थन देने की घोषणा से बीजेपी दोनों  सीटों पर फायदे में नजर आ रही है। धनंजय सिंह ने जगह जगह जनसभा कर समर्थकों से बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील किया। उनके समर्थक भी बीजेपी को वोट देने के लिए वोटरों से सम्पर्क में जुटे रहे। ग्राउंड रिपोर्ट से पता चला कि धनंजय सिंह अपने समर्थकों का सौ फीसदी वोट बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा पाए फिर भी तीन चौथाई समर्थकों का मत बीजेपी को अवश्य मिला है। मल्हनी क्षेत्र के एक समर्थक ने बताया कि धनंजय भैया लड़ते तो और बात रहती अब हम अपना मत अपने हिसाब से देंगे।


इंडी गठबंधन का नैरेटिव रहा कारगर


अब ऐसा चलन हो गया है कि चुनाव मुद्दों के बल पर नहीं बल्कि जनता को बरगला कर भी जीता जा सकता है। इस चुनाव में ऐसा ही हुआ। इंडी गठबंधन के नेताओं के द्वारा वोटरों में यह भ्रम फैलाया गया कि बीजेपी इस बार भी अगर सत्ता में आई तो आरक्षण समाप्त कर देगी। संविधान को खत्म कर दिया जाएगा। यह बात वोटरों के दिमाग में बैठ गई। बड़ी संख्या में वोटरों ने भाजपा से मुंह मोड़कर सपा प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान कर दिया। बनते बिगड़ते इन तमाम समीकरण के बीच बसपा के वोटों का ट्रांसफर दोनों लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के हार जीत में अहम भूमिका निभाएगा।

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