चुनाव खत्म, अब लगने लगे तरह-तरह के कयास

जौनपुर और मछलीशहर लोकसभा सीट पर 2024 के चुनावों में कई दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिली। चुनाव के पहले काम कोई और किया टिकट किसी और को मिला। जिस तरह दलों ने अपने कार्यकर्ताओं को छला। हो सकता है कि परिणाम भी पार्टी के मन मुताबिक ना आवे।

इस सीट का राजनीतिक इतिहास और वर्तमान घटनाक्रम मिलकर इसे और भी महत्वपूर्ण बना देते हैं। जौनपुर में भारतीय जनता पार्टी से आईएएस अभिषेक सिंह सहित तमाम और समाजवादी पार्टी से लकी यादव, ललई यादव सहित कई धुरंधर मैदान में थे। मगर भाजपा ने कृपाशंकर सिंह को टिकट देकर मुंबई प्रेम दिखाया और सांसद बीपी सरोज को टिकट दिया। दोनों महाराष्ट्र के उद्योगपति हैं। अगर दोनों चुनाव जीतते भी हैं तो अपना उद्योग चमकाने महाराष्ट्र चले जाएंगे। यहां की जनता को मिलने वाला कुछ नहीं है। जनता तो जानती है। वह बेचारी हर बार छली जाती है। इसी तरह मछलीशहर में समाजवादी पार्टी ने डा. रागिनी सोनकर को क्षेत्र में काम करने के लिए कहा। साथ ही टिकट के लिए भी आश्वासन भी दिया। मगर अखिलेश यादव की चाल वह नहीं समझ पाई। अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव कभी नहीं बन सकते। मुलायम के पास रिश्तों की पूरी टीम होती थी जबकि अखिलेश सारे फैसले अपनी मनमर्जी से किया करते हैं। उसमें उनके परिवार का कोई योगदान नहीं, इसलिए दिन में कुछ और शाम को कुछ और और रात में फैसला कुछ और हो जाते हैं। इन्हीं फैसलों के कारण प्रिया सरोज टिकट की हकदार बन गई।

बताते चलें कि समाजवादी पार्टी कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। यहां कोई खाता वही नहीं है। मुखिया जो कहे, वही बात सही है। यानी मुखिया की पसंद ही उसकी पसंद होनी चाहिए। जौनपुर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी मंडल के अंतर्गत आता है और इसमें 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं— बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी और मुंगराबादशाहपुर। 2011 की जनगणना के अनुसार जौनपुर की कुल आबादी 44 लाख से अधिक है जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। इस क्षेत्र की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत के करीब है। इसी तरह मछलीशहर लोकसभा में पिंडरा, जफराबाद, केराकत, मड़ियाहूं और मछलीशहर विधानसभा है। इस बार के चुनाव में मुख्यतः भारतीय जनता पार्टी और सपा के बीच मुकाबला है। 2019 के चुनाव में बीएसपी के श्याम सिंह यादव ने जीत हासिल की थी जो इस बार फिर मैदान में हैं। दूसरी तरफ बीजेपी ने कृपाशंकर सिंह को टिकट दिया है जो हाल ही में कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हैं।
धनंजय सिंह जो पूर्व सांसद के साथ बाहुबली छवि के लिए जाने जाते हैं। उन्हें हाल ही में सजा होने के कारण चुनाव लड़ने से बाहर हो गये। उन्होंने बीजेपी को समर्थन देने की अपील किया लेकिन यह समर्थन कितना प्रभावी होगा, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि उनके समर्थक विभिन्न समुदायों से आते हैं जिनमें ठाकुर, दलित और मुस्लिम शामिल हैं। इस वजह से बीजेपी के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा। जौनपुर की राजनीतिक परिस्थितियां इस बार काफी जटिल हैं। दलित, मुस्लिम, यादव, ठाकुर और ब्राह्मण वोटरों का मिश्रण इसे एक चुनौतीपूर्ण सीट बनाता है। इस बार विपक्ष ने संविधान और आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ एक नैरेटिव तैयार किया है जिससे जमीनी स्तर पर दलित-पिछड़े समुदायों में एक अलग माहौल देखने को मिल रहा है। धनंजय के समर्थन से बीजेपी को लाभ हो सकता है लेकिन मुस्लिम वोटरों का समर्थन खोने का खतरा भी हैं। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी सिर्फ कोरम पूरा कर रहे हैं। उनके कार्यकर्ता भी विभिन्न दलों में बैठे हुए नजर आ रहे हैं।
जौनपुर की राजनीतिक जटिलताएं और विभिन्न जातीय समीकरण इस सीट को बहुत ही दिलचस्प और प्रतिस्पर्धात्मक बनाते हैं। आगामी चुनाव में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कौन सी पार्टी इन जटिल समीकरणों को अपने पक्ष में कर पाती है और किस तरह से वोटरों का विश्वास जीत पाती है? इस बार चुनाव में जाति फैक्टर ज्यादा दिख रहा है। समाजवादी पार्टी का पीडीएफ जाति समीकरण के हिसाब से काफी मजबूत है। भाजपा के 400 पार के नारे में इसे और मजबूती दी है, क्योंकि विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर संविधान हटाने से जोड़ दिया। कोई भी पीडीए का मतदाता आरक्षण खत्म हो बर्दाश्त नहीं कर सकता। जाहिर है कि इसका लाभ एक दल को मिलेगा ही। वैसे कुछ भी हो जनमत का फैसला 4 जून को होगा। उसी दिन जनता का असली मत सामने आएगा। कयास तो हम कुछ भी लगा सकते हैं लेकिन वह 4 जून के फैसले को जस्टिफाई करेगा यह नहीं कह सकते।
डा. सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
जनसंचार विभाग पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।

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