भारतीय संस्कृति की संरक्षक हैं महिलाएं: शान्ति दुबे
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महिला सशक्तिकरण में महिलाएं विषयक संगोष्ठी आयोजित
पराऊगंज, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र के कुटीर पीजी कॉलेज चक्के में महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी महिला सशक्तिकरण नेतृत्व में महिलाएं विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में विचार व्यक्त करती हुईं शांति दुबे कुटीर संस्थान प्रबंधन समिति की सदस्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति की मूल संरक्षक हैं।
आज के अर्थ प्रधान युग में महिलाएं गृहस्थी को संभालते हुए अगली पीढ़ी का निर्माण करती हैं, तरह-तरह के प्रशासनिक दायित्वों को निभाते हुए छोटे-छोटे रोजी रोजगार से भी जुड़कर परिवार की आय में वृद्धि करती हैं, बल्कि पति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलती हैं। समाज को बनाने के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदारी निभानी होगी। बहन के रूप में बेटी के रूप तथा मां के रूप में भी विशिष्ट वक्ता डॉ नम्रता दुबे ने कहा कि महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक की लिंग भेद बंद नहीं होगा। मैं सभी माता-पिता से अपील करूंगी कि बेटे—बेटी की शिक्षा, दीक्षा, पालन, पोषण आदि किसी भी रूप में भेद न किया जाय। दोनों को समान अवसर दिए जाने की आवश्यकता है।
आयोजन समिति की सदस्य डॉ पूनम सिंह ने कहा कि बेटों की तरह ही बेटियों को भी कल दीपक माना जाय, क्योंकि बेटियां यदि प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं तो उससे भी परिवार का नाम रोशन होता है, इसलिए समानता का भाव होना चाहिए।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ नीता तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि आज युग बदल रहा है और इस बदलाव के दौर में विभिन्न व्यवस्थाओं को करते हुए आज बेटियां सीमा पर भी विपरीत मौसम में देश की रक्षा कर रही हैं। हमारा उद्देश्य किसी को सशक्त और किसी को सत्य करना नहीं है, बल्कि आह्वान करती हूं कि उनका जो भी दायित्व है, उसमें किसी का दखल ना हो प्रधान पति प्रधानी ना करें। हम महिलाओं के स्वाभिमान को जगाने और स्वस्थ समाज के निर्माण का वहन करते हैं जिससे सशक्त भारत का निर्माण संभव हो सके। संगोष्ठी को प्राध्यापक पुष्पा दुबे, संध्या चतुर्वेदी, कामकाजी महिलाओं, छात्राओं ने भी संबोधित किया। वंदे मातरम के साथ संगोष्ठी समाप्त हुई।
आयोजन समिति की सदस्य डॉ पूनम सिंह ने कहा कि बेटों की तरह ही बेटियों को भी कल दीपक माना जाय, क्योंकि बेटियां यदि प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं तो उससे भी परिवार का नाम रोशन होता है, इसलिए समानता का भाव होना चाहिए।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ नीता तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि आज युग बदल रहा है और इस बदलाव के दौर में विभिन्न व्यवस्थाओं को करते हुए आज बेटियां सीमा पर भी विपरीत मौसम में देश की रक्षा कर रही हैं। हमारा उद्देश्य किसी को सशक्त और किसी को सत्य करना नहीं है, बल्कि आह्वान करती हूं कि उनका जो भी दायित्व है, उसमें किसी का दखल ना हो प्रधान पति प्रधानी ना करें। हम महिलाओं के स्वाभिमान को जगाने और स्वस्थ समाज के निर्माण का वहन करते हैं जिससे सशक्त भारत का निर्माण संभव हो सके। संगोष्ठी को प्राध्यापक पुष्पा दुबे, संध्या चतुर्वेदी, कामकाजी महिलाओं, छात्राओं ने भी संबोधित किया। वंदे मातरम के साथ संगोष्ठी समाप्त हुई।