हर किसी को देखो लुभाती है अयोध्या.....
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हर किसी को देखो लुभाती है अयोध्या,तप-त्याग, संयम सिखाती है अयोध्या।
पल में सिंहासन छोड़ राम वन चले गए,
वचन का गुण-धर्म निभाती है अयोध्या।
रो-रो के बुरा हाल था तब हरेक का वहाँ,
उस राम के जिगर को समझती है अयोध्या।
ब्रह्माण्ड का वो सार है चाहो तो देख लो,
अपनों से हमें हारना सिखाती है अयोध्या।
कोई कलम बनी नहीं राम का यश गा सके,
सरयू में राम की छबि दिखाती है अयोध्या।
कैकेयी का कोई दोष नहीं राम-गमन में,
दूसरों का बला देखो उठाती है अयोध्या।
तू दो-चार आसमां ख़रीदा, क्या तीर मार ली,
टले भले चाँद-सूरज न टलती है अयोध्या।
रावण मरा तो कैसे मरा, सबको है पता,
लोगों में नित्य संस्कार उगाती है अयोध्या।
चाहो बदलना दुनिया बदल भी सकते हो,
नहीं किसी का हक़ छीनती है अयोध्या।
जीतकर लंका राम लिए भी नहीं,
मर्यादा में ही रहना सिखाती है अयोध्या।
प्रजा है सर्वोपरि ये राम ने दिखा दिया,
राज धर्म का पाठ पढ़ाती है अयोध्या।
संबंधों का आयाम नया दिया प्रभु राम ने,
तभी तो हमें आईना दिखाती है अयोध्या।
शबरी का बेर खाए, अहिल्या को भी तारे,
राम को वो राम बनाती है अयोध्या।
भालू-बंदर लेके राम फतह किए लंका,
जमीं से हमें उठना सिखाती है अयोध्या।
एक दिन में देखो राम कोई बन नहीं सकता,
सीता न जलीं आग से, थाती है अयोध्या।
होते न यदि हनुमान जलाता कौन लंका,
हर किसी का साथ चाहती है अयोध्या।
राम को पाकर फिर सनाथ हुई जनता,
मुक्ति का द्वार खोलती है अयोध्या।
कण-कण में व्याप्त हैं वो हमारे राम,
हर किसी के दिल में बसती है अयोध्या।
सत्कर्म से बड़ा कुछ हो नहीं सकता,
कर्म को प्रधान बताती है अयोध्या।
राममय आज फिर हुई पूरी कायनात,
त्रेतायुग के जैसी गमकती है अयोध्या।
रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)
पल में सिंहासन छोड़ राम वन चले गए,
वचन का गुण-धर्म निभाती है अयोध्या।
रो-रो के बुरा हाल था तब हरेक का वहाँ,
उस राम के जिगर को समझती है अयोध्या।
ब्रह्माण्ड का वो सार है चाहो तो देख लो,
अपनों से हमें हारना सिखाती है अयोध्या।
कोई कलम बनी नहीं राम का यश गा सके,
सरयू में राम की छबि दिखाती है अयोध्या।
कैकेयी का कोई दोष नहीं राम-गमन में,
दूसरों का बला देखो उठाती है अयोध्या।
तू दो-चार आसमां ख़रीदा, क्या तीर मार ली,
टले भले चाँद-सूरज न टलती है अयोध्या।
रावण मरा तो कैसे मरा, सबको है पता,
लोगों में नित्य संस्कार उगाती है अयोध्या।
चाहो बदलना दुनिया बदल भी सकते हो,
नहीं किसी का हक़ छीनती है अयोध्या।
जीतकर लंका राम लिए भी नहीं,
मर्यादा में ही रहना सिखाती है अयोध्या।
प्रजा है सर्वोपरि ये राम ने दिखा दिया,
राज धर्म का पाठ पढ़ाती है अयोध्या।
संबंधों का आयाम नया दिया प्रभु राम ने,
तभी तो हमें आईना दिखाती है अयोध्या।
शबरी का बेर खाए, अहिल्या को भी तारे,
राम को वो राम बनाती है अयोध्या।
भालू-बंदर लेके राम फतह किए लंका,
जमीं से हमें उठना सिखाती है अयोध्या।
एक दिन में देखो राम कोई बन नहीं सकता,
सीता न जलीं आग से, थाती है अयोध्या।
होते न यदि हनुमान जलाता कौन लंका,
हर किसी का साथ चाहती है अयोध्या।
राम को पाकर फिर सनाथ हुई जनता,
मुक्ति का द्वार खोलती है अयोध्या।
कण-कण में व्याप्त हैं वो हमारे राम,
हर किसी के दिल में बसती है अयोध्या।
सत्कर्म से बड़ा कुछ हो नहीं सकता,
कर्म को प्रधान बताती है अयोध्या।
राममय आज फिर हुई पूरी कायनात,
त्रेतायुग के जैसी गमकती है अयोध्या।
रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)