लोहड़ी से होली तक देश में दिखेगा उत्सव—हर्षोल्लास का माहौल तो 22 को आयेंगे ‘रामलला’
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संजय सक्सेनादेश और उत्तर प्रदेश मंे इस समय उत्सव का माहौल है। यह सिलसिला आगामी तीन महीनों यानी लोहड़ी से शुरू होकर होली तक जारी रहेगा। एक तरफ 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभुराम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के कारण देश के 140 करोड़ देशवासी ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया राममय नजर आ रही है। वहीं इससे पहले 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जायेगा तो 15 जनवरी को मकर संक्राति है। मकर संक्रांति के साथ ही प्रयागराज में माघ मेला भी शुरू हो जायेगा जो पुरुषोत्तम माह के कारण 52 तक दिनों चलेगा। पौष पूर्णिमा 25 जनवरी से माघ मास प्रारंभ होगा तो 25 फरवरी को माघी पूर्णिमा होगी। 9 फरवरी को मौनी अमावस्या 14 फरवरी को वसंत पंचमी और 8 मार्च को महाशिवरात्रि और 25 मार्च को रंगों का त्योहारा होली मनाई जायेगी। बात माघ मेले की ही की जाय तो वैसे तो कल्पवासी एक माह तक माघ मेले में रहेंगे, मगर माघ मेला 15 जनवरी मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर 8 मार्च शिवरात्रि तक चलेगा। मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा जो बताता है कि सूर्य 14 जनवरी की रात 2 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। 15 जनवरी को पुण्यकाल सूर्याेदय से शाम 5.35 बजे तक रहेगा। ऐसे में दान और स्नान का महत्व 15 तारीख को माना जाएगा।
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल के अनुसार मकर संक्रांति तिथि पर वरीयान योग बन रहा है। इसका निर्माण देर रात 11 बजकर 11 मिनट तक है। वरीयान योग को शुभ योग मानते हैं। इसके अलावा रवि योग का निर्माण सुबह 7 बजकर 15 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगा। इस योग में पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने से आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। ज्योतिषानुसार कुंडली में सूर्य शनि का दोष होने पर मकर संक्रांति पर सूर्य उपासना से पिता-पुत्र के संबंध अच्छे होते हैं। सूर्य के अच्छे प्रभाव से यश, सरकारी पक्ष और पिता से सुख और लाभ, आत्मविश्वास में वृद्धि, सिर दर्द, आंखों के रोग, हड्डियों के रोग, ह्रदय रोग आदि रोगों से भी आराम मिलता है।
13 जनवरी को लोहड़ी है जिसे लोहड़ी या लाल लोई के नाम से भी जाना जाता है, अग्नि देवता से प्रार्थना करने और परिवार और प्रियजनों के लिए आशीर्वाद मांगने का समय है। यह त्योहार फसल के मौसम की शुरुआत और सर्दियों की फसलों के पकने का प्रतीक है। यह त्योहार गर्म सर्दियों के आगमन का भी जश्न मनाता है, क्योंकि लोहड़ी के बाद दिन बड़े हो जाते हैं और रातें छोटी हो जाती हैं। घरों और आवासीय परिसरों के बाहर लकड़ी और गाय के गोबर से बना अलाव जलाया जाता है। लोग प्रार्थना करते हैं और अलाव के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। वे पूजा अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में गजक, तिल, गुड़, मूंगफली भी चढ़ाते हैं। कई स्थानों पर पंजाब के लोकप्रिय लोक नृत्य गिद्दा का प्रदर्शन करके त्योहार मनाया जाता है जबकि कुछ लोग भांगड़ा भी करते हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं।
14 फरवरी को वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन 6 मौसमों में बांटा जाता था, उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते है. वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के 5वें दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता है।
8 मार्च को महाशिवरात्रि है जो भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ फागुन फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ तो इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व पत्नी पार्वती की पूजा होती है। यह पूजा व्रत रखने के दौरान की जाती है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
बसंत माह का एक और प्रमुख त्योहार है होली। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है जो आज विश्व भर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। प्रमुख रूप से भारत तथा नेपाल में मनाया जानं वाला यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं, वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक—दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजाकर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक—दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता हैं इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैंं कुुल मिलाकर अगले जनवरी, फरवरी और मार्च के महीने में हिन्दुस्तानी जश्न में डूबे रहेंगे जिसका फायदा बाजार को भी मिलेगा और मन भी प्रसन्न रहेगा जो किसी टॉनिक से कम नहीं होगा।