अर्पित मेरा प्रणाम! हे राम! हे राम!

 
मेरा प्रणाम

अर्पित मेरा प्रणाम!

हे राम! हे राम!

धन्य धरा तुमसे प्रभु मेरे,
मोह जनित जड़ता के घेरे,
लोभ निरंकुश नर्तन करता
माया-पाश गले के फेरे।
झूठे रिश्ते, नाते सारे
कैसे हूं निष्काम?
हे राम! हे राम!

कर में शस्त्र, शास्त्र में चिंतन,
दिव्य दृष्टि दो अलख निरंजन,
भाव शुचित, मधुमय, मर्यादित
कुविचारी का करूं विखंडन।
सत्य न्याय की पावन गाथा
गाऊं आठों याम!
हे राम! हे राम!

दुष्ट दलन की शक्ति हमें दो,
पावन नवधा भक्ति हमें दो,
रघुकुल का वह धर्म पताका
विश्वविजय अनुरक्ति हमें दो!
जनमानस कल्याण करूं
नित्य छवि दे दो अभिराम!
हे राम! हे राम!

नित अविनाशी
घट-घट वासी
स्वीकार करो प्रणाम!
हे राम! हे राम!

प्रतिभा इन्दु

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