आसान तो नहीं...
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न चाहते हुए मुस्कुराना ये आसान तो नहीं।लोग बना रहे हैं घर, उसमें दालान तो नहीं।
दिल पे दस्तक देता है कोई कुछ पाने के लिए,
मेरा दिल कोई बाजार, कोई सामान तो नहीं।
सर गिराकर नहीं बल्कि तुम उठाकर जियो,
है जीने का ये सरल तरीका,कोई गुमान तो नहीं।
ताउम्र कोई हसीन, कमसीन, नाजनीन रहता नहीं,
है कुछ दिन की जवानी कोई आसमान तो नहीं।
उसके दिल में अपने दिल का फूल रखना चाहते हैं,
पर हर किसी के घर की वो गुलदान तो नहीं।
लगाकर गले उसने मेरी थकान तो मिटा दी,
है दिल की ये बात, मैं कोई सुल्तान तो नहीं।
दिल का बोझ उतारना है फेंको लालच का लबादा,
संवर जाएगी तकदीर इसमें कोई अपमान तो नहीं।
हवाओं के विरुद्ध चलो तुम तो कोई बात बने,
दुनिया को दुनिया बनाना इतना आसान तो नहीं।
अंध विश्वास,पाखंड हटाना है ये बड़ी टेढ़ी खीर,
कुछ इसे चलाना चाहते हैं, ये दुकान तो नहीं।
घुल रही साँसों में अगर किसी के साँस की महक,
लगता है दोनों हुए जवान, अनजान तो नहीं।
गलत बात का पल्लू पकड़ के चलना ठीक नहीं,
झूठ हिला देता है बुनियाद, ये कोई शान तो नहीं।
कितनी खूबसूरत दुनिया और कितने अच्छे लोग,
किसी के जिगर से निकलना आसान तो नहीं।
वो तन्हाई में रहती ही नहीं, मैं उससे कैसे मिलूँ,
करूँ किससे गिला, मैं इतना नादान तो नहीं।
बारूद के धुएँ से देखो आसमान मैला हो रहा,
एटमी जंग में न बदले, मेरे हाथ कमान तो नहीं।
सलीके से नहीं बरसता अब्र कोई कहाँ करे गिला,
बरसे उसके ही खेत में ऐसा कोई विधान तो नहीं।
अकेले हँसना, अकेले रोना, ये कोई जिन्दगी नहीं,
क्या उम्र की ये ढलान की थकान तो नहीं।
मत मरने दो अपने ख्वाबों को मेरे अजीज दोस्त,
नहीं तो बदरंग होगी जिन्दगी, ये अभिमान तो नहीं।
रोते हुए सब आते हैं अगर हँसते हुए जाएँ,
इससे अच्छी क्या बात होगी,मेरा अज्ञान तो नहीं।
रामकेश एम. यादव मुम्बई
(कवि व लेखक)