मुबारक हो नया साल
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मुस्कानों का मौसम छाने वाला है,नया साल अब आने वाला है।
उगेंगे पेड़ों में नये बसंत के पत्ते,
पर्यावरण का कद भी बढ़ने वाला है।
कोहरा औ सर्दी से काँप रहा सूरज,
बर्फबारी से पर्वत ढंकने वाला है।
अम्न का पैगाम कोई आकर तो बोए,
आँखों से जाम वो छलकने वाला है।
बहे रोजगार की गंगा, मिले नौकरी सबको,
ऐसे जख्मों पे मरहम लगने वाला है।
मुस्कुरा रही हैं दुल्हन सी वह फसलें,
सोने-चांदी से घर भरने वाला है।
लाल, गुलाबी, नीले-पीले, रंगों से,
नफरत का 'पर' कटने वाला है।
मिलन-जुदाई का पल सदा सजा रहे,
रफ्ता-रफ्ता वह पल आने वाला है।
नहीं नोंचेगा ख्वाब तुम्हारी आँखों का,
शबाब गुलों पे खिलने वाला है।
जाँतों का वो गीत खो गया, खोजो कोई,
पनघट पर वो गीत पलटने वाला है।
सच सुनने को कोई अब तैयार नहीं,
छोड़ के अमृत, शराब पीने वाला है।
बिगड़ रहा है रूप संस्कार का यहाँ,
देह पे कपड़ा खराब लगने वाला है।
भूलो मत अपने जीवन की परिपाटी,
गाँव, शहर अब बनने वाला है।
चूसेंगे सब सीजन में आम जहां वाले,
लो हाथ में सुतुही टिकोरा लगने वाला है।
जीवन का बस चाक चलाओ भाई,
हर चेहरे पे नूर चमकने वाला है।
नहीं पड़ी हैं समय के गाल पे झुर्रियाँ,
तरक्की की वो पूँछ ऐंठने वाला है।
लिट्टी-चोखा, सतुआ, कुछ भी खाओ,
वो मकर संक्रांति का शुभ दिन आने वाला है।
मत खींचो तुम टंगरी किसी का भाई,
लगता कोई चुनाव तो आने वाला है।
नदियों खून बहा तब हमें मिली आजादी,
फिर से कोई पान चबाने वाला है।
खोने न पाए भाईचारा गंगा-जमुनी तहजीब से,
नेह-स्नेह का लेप लगाने वाला है।
जमीं से फलक तक देखो छाया नूतन वर्ष,
घी-शक़्कर वो आके खिलाने वाला है।
भृकुटी न ताने कहीं मिसाइलें फिर जग में,
मोहब्बत का वो बर्फ पिघलने वाला है।
गुल से आकर लिपटेंगी नई तितलियाँ,
खजाना प्यार का भरने वाला है।
चूँमेंगे वो भौरें कलियों को लेकिन,
चुटकीभर सिंदूर तो भरने वाला है।
रामकेश एम. यादव मुम्बई
(कवि व लेखक)