नूतन वर्ष अलौकिक उत्सव देखि रहे मिलि सब नर नारी

 

नूतन वर्ष—2024

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नूतन वर्ष अलौकिक उत्सव
देखि रहे मिलि सब नर नारी
अवनि प्रफुल्लित अम्बर हर्षित
गायन देव करें श्रुति चारी
ईसामसीह सों स्नेह है पावन
पुण्य सुधा रमणीय विचारी
हर्ष-निशा है बनी रविवार की
होत चहूँ दिशि मंगल भारी।

दिन रविवार है माह दिसम्बर
वर्ष विदाई सबै मन भावैं
अर्ध महानिशि होत जबै
तब स्वागत स्नेह जगाई सुनावैं
मानहुं कान्हा का हो जन्मोत्सव
जागत नेह में रात बितावैं
वर्ष लग्यो जनु जन्म भयो
जन उत्सव गीत सबै मिलि गावैं।

पश्चिमि संस्कृति के भ्रम में हम
आपनों चइत बिसारि दिए हैं
पावन मास बसन्त सुहावन
क्यों मधुमास को आस गए हैं
नव वधू सी धरती हो सजी
पिक चातक मोर अनन्द भए है
श्यामल अंचल भूमि सुसज्जित,
नव निज संवत भूलि गए हैं।

पर्व पुरातन पावन है यह
जीवन जीव में मंगलकारी
त्यागि बसन्त ऋतून को कन्त
हेमंत ॠतूत्सव की तैयारी
कम्पित अंग है वेदना शीत की
पश्चिमी संस्कृति है दुखकारी
हैप्पी न्यू ईयर की अभिलाष में
पश्चिमी सभ्यता प्रीति है भारी।

कीरति शुभ्र दशो दिशि फैलहिं
सकल मनोरथ पूर्ण दिखावैं
चौबिस ईश्वीय वर्ष में वैभव
कल्पलता यश वृद्धिहिं पावैं
गौरव कीर्ति बढ़े नित भारत
विश्व सकल कल कीरति गांवै
ईश्वीय वर्ष की भांति सनातन
चैत बसन्त नव वर्ष मनावैं।

रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य-शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार

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