“खो गयी वो......”चिठ्ठियाँ”जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे
बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!!
“और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”
नन्हें के आने की “खबर”
“माँ” की तबियत का दर्द
और पैसे भेजने का “अनुनय”
“फसलों” के खराब होने की वजह...!!
कितना कुछ सिमट जाता था एक
“नीले से कागज में”...
जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती
और “अकेले” में आंखो से आंसू बहाती !
“माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी
बच्चों का भविष्य थी और
गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां”
“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा
देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को
अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!!
अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौडता हैं
और अक्सर ही दिल तोडता है
“मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो
सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता है...
सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में
जैसे “मकान” सिमट गए फ्लैटों में
जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में
“चूल्हे” सिमट गए गैसों में
और इंसान सिमट गए पैसों में
यह कविता किसने लिखी है इसकी मुझे जानकारी नही है लेकिन सोशल मीडिया में वायरल हो रही यह कविता दिल को छूने वाली है इस लिए मेरे द्वारा इसे पोस्ट किया गया है।