घड़े और मिट्टी के जैसे ही जीव और ब्रह्म की सत्ता भी एक ही है: नारायणानंद तीर्थ
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विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी में नारायण सेवा समिति के तत्वावधान में चल रही सप्त दिवसीय शिव महापुराण कथा के पंचम दिन काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज के पावन सानिध्य में जनपद और गैर जनपदों से आये भक्तों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करते हुए कहा कि जीवात्मा और परमात्मा की सत्ता ठीक उसी प्रकार है जैसे घड़े और मिट्टी की सत्ता एक ही है। ब्रह्म और जीव की सत्ता में अंतर समझना गलत है।जीव और ब्रह्म की सत्ता में अंतर संस्कार और अहं के कारण है।जीव और ब्रह्म को एक न मानना ही सारे कष्टों को जन्म देता है। गुरु के सानिध्य में साधक को सबसे पहले अहं को दूर करना चाहिए जिसके लिए शिव महापुराण की कथाओं का श्रवण आवश्यक है। इसके श्रवण से जीवन में शांति आती है। सर्वत्र एक ही सत्ता है इसका बोध होने के बाद द्वैत नाम की कोई वस्तु नहीं बचती है।इस अवस्था का बोध होने पर हर्ष, राग,द्वेष सबसे जीवन उसी प्रकार अप्रभावित रहने लगता है जैसे आकाश विभिन्न घटनाओं से अप्रभावित रहता है।इस समझ को प्राप्त करने के लिए गुरु का सानिध्य आवश्यक है।
महाराज जी ने कहा कि चित्र नहीं चरित्र का उपासक बने जिसके लिए भक्ति और सत्संग और सत्कर्मों को अपनी आदत बना लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें मदिरापान से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह सम्बन्धों की शुचिता छीन लेती है और मन प्राण का संतुलन बिगाड़ देती है।
कथा का शुरू होने से पूर्व जनपद और गैर जनपद से पधारे भक्तों ने पादुका पूजन किया और कथा के समापन पर स्वामी जी की आरती की गई ।