कौन हैं भगवान धन्वन्तरि?

आयुर्वेद एवं जड़ी बूटियों के जनक की जयन्ती पर विशेष

भगवान धनवंतरि भगवान विष्णु के अंश अवतार हैं जिनका जन्म समुद्र मंथन में 14 में और अंतिम रन के रूप में हुआ था। यही दुनिया की सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के प्रवर्तक या जनक माने जाते हैं। इन्होंने ही विश्व में सर्वप्रथम सभी जड़ी बूटियां की खोज किया था। उनके वंशज देवदास हुए जो विश्व के पहले शल्य चिकित्सक बने और उनके शिष्य ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र तथा सुश्रुत हुए जिनके बारे में संपूर्ण दुनिया भली भांति जानती है।

एक—दूसरे से अभिन्न है दीपावली व धनतेरस
दीपावली एक संकुल महापर्व है। अर्थात यह कई पर्वों का एक महासमूह है जिसका प्रारंभ अर्थात श्री गणेश धनतेरस या धन्वंतरि जयंती से होता है जो कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन से प्रारंभ होता है। इस महापर्व में धन्वंतरि जयंती नरक चतुर्दशी या बड़ी दिवाली या हनुमंत जयंती छोटी दीपावली या मुख्य दीपावली गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महापर्व तथा भैया दूज अथवा यम द्वितीया शामिल होते हैं।
धनतेरस से लेकर यम द्वितीया तक की वैज्ञानिक विवेचन संसार में सबसे पहले स्वास्थ्य आवश्यक होता है बिना स्वस्थ शरीर के संसार में सब कुछ बेकार है, इसलिए सबसे पहले दीपावली पर्व में धन्वंतरि जयंती आता है। अपने को जड़ी बूटियां और प्राकृतिक पेड़ पौधों से स्वस्थ बनाकर रखना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। इसके बाद नरक से स्वर्ग तक जाने की यात्रा शुरू होती है जो बिना हनुमान जी के सहयोग के संभव नहीं है। यह हनुमत जयंती या नरक चतुर्दशी कहा जाता है। जब व्यक्ति ज्ञान स्वस्थ प्रकाश और सत्य संपन्न होगा तभी उसे नर्क से छुटकारा मिलेगा और स्वर्ग जाएगा। स्वर्ग में चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश होता है और चारों ओर सुगंध विद्यमान रहता है, इसीलिए तीसरे दिन दीपावली को चारों ओर दीपक जलाकर धूप दीप सुगंध जलाया जाता है। यह अंधकार के अलावा जीवाणु कीटाणु विषणु रोगाणु का सफाया कर देता है और मौसम तथा प्रदूषण नियंत्रित करता है। इसके बाद अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का सांकेतिक अर्थ है कि राजा को सम्राट को और दिव्य शक्ति को इंद्र की तरह अधूरा चारी अभिमानी अहंकारी न होकर भगवान श्रीकृष्ण की तरह होना चाहिए, इसलिए इंद्र का गुरुर चूर—चूर किया गया। अंतिम दिन भाई-बहन के प्रेम का पर्व यम द्वितीया आता है जिसमें यमराज की बहन यमुना का स्मरण करने से यम के त्रास से मुक्ति मिलती हैं यह इसका वैज्ञानिक विवेचन है।

भगवान धनवंतरि का अवतरण क्यों हुआ?
जब रोग बीमारियां बहुत बढ़ गई और उसका ज्ञान लोगों में नहीं रहा और इंद्र अत्यधिक हठी दंभी और अहंकारी हो गए थे जिसके कारण उनको महान ऋषि दुर्वासा ने शाप दे दिया और तीनों लोक श्रीहीन हो गया। लक्ष्मी जी अपने लोक को लौट गई तब भगवान शिव के  सलाह पर सभी लोगों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिसमें से 14 रन श्री, मणि, रंभा, वारुणी, गजराज, शंख, कल्पवृक्ष, चंद्रमा, कामधेनु, गाय, हलाहल, विष, घोड़ा और अमृत कलश के साथ धनवंतरी का अवतरण हुआ था और फिर से लक्ष्मी जी पृथ्वी पर लौट आई थी।

कैसा है भगवान धनवंतरि का स्वरूप?
भगवान धन्वंतरि भगवान श्री हरि के ही अंश हैं। इनके एक हाथ में अमृत कलश औषधि दूसरे में शंकर तीसरे में आयुर्वेद और चौथा हाथ में सभी जड़ी बूटियां विद्यमान थी जिनके तेज से सारी दिशाएं प्रकाशमान हो उठी थी। उन्होंने ही सारी धरती पर फिर से जड़ी बूटियां का ज्ञान और आयुर्वेद का प्रचार प्रसार किया और यह सिद्ध किया कि संसार में कोई भी पेड़, पौधा, लता, वैलेरी, वृक्ष ऐसा नहीं है जिसमें औषधि का गुण ना होता हो। पूरा विश्व उनके आयुर्वेद है। इनकी चार भुजाएं होती हैं और सर पर छात्र होता है। ज्ञात हो कि प्रदोष व्यापिनी धनतेरस ही मनाया जाता है।

धनतेरस व बाजार में खरीददारी की प्रथा
यह बिल्कुल स्पष्ट और साफ है कि धनतेरस पर किसी भी प्रकार के क्रय विक्रय का कोई प्रश्न नहीं है। सोना चांदी गहने कपड़े आभूषण नए बर्तन लोग अपनी इच्छा अनुसार खरीदने हैं। ठीक उसी तरह जैसे विवाह में दुनिया भर का डीजे आर्केस्ट्रा नाच गाना शराब और नशा हो गया है जबकि यह विवाह की प्रथम नहीं है, इसलिए इनका कोई भी अर्थ नहीं है। यदि भगवान धन्वंतरि के आदर्श को अपनाये रखना है और वास्तव में धनतेरस को मनाना है तो इस दिन कम से कम हर व्यक्ति एक औषधीय वृक्ष या पौधा लगाए और जड़ी बूटियां का ज्ञान प्राप्त करें या औषधि के गुण वाले पौधे या औषधि खरीदे यहां तक तो बात व्यावहारिक और वैज्ञानिक दृष्टि से सही है लेकिन विज्ञापन और प्रचार—प्रसार के चक्कर में जो लोग कुछ भी नया खरीदने हैं, वह बिल्कुल ही बेकार है। अगर कोई खरीदना ही चाहे तो इस दिन तांबे का कोई बर्तन खरीद सकता है, क्योंकि तांबा भी औषधि के गुना से भरपूर ऐसी धातु है जिसका पता भगवान धन्वंतरि ने ही लगाया था।

2023 में किस दिन है धन्वंतरि जयंती?
वर्ष 2023 में धन्वंतरि जयंती या धनतेरस अंग्रेजी तिथि के अनुसार 10 नवंबर शुक्रवार के दिन है। इस दिन प्रदोष व्रत भी हैं। इस दिन 11:44 से त्रयोदशी शुरू हो जाएगी। इसे प्रदोष व्यापारी मानने के कारण ही 10 नवंबर के दिन मनाया जाएगा। इस दिन तमाम अच्छे और शुभ मुहूर्त मिल रहे हैं। पूजा करते समय भगवान धन्वंतरि लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा भी करें और औषधि के जड़ी बूटियां या प्रत्यय रखकर पूजा करने से अपार लाभ की प्राप्ति होगी। बिना किसी संशय के धन्वंतरि जयंती आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की जयंती है जिसका सोना, चांदी, बर्तन, गाना, भवन, वाहन, मकान या किसी भी वस्तु के खरीदने से कोई संबंध ही नहीं है। यह सभी खरीदे गए ज्योतिषी और कर्मकांडी लोगों के छल कपट अलावा और कुछ भी नहीं है।
डा. दिलीप सिंह एडवोकेट
ज्योतिष शिरोमणि एवं मौसम वैज्ञानिक

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