अर्थ और काम के लिए धर्म की मर्यादाओं उल्लंघन उत्पात का कारण: नारायणानंद तीर्थ

जौनपुर। धर्म की मर्यादाओं का उल्लघंन करके अर्थ और काम को प्राप्त करने के लिए जो भी प्रयास किये जाते हैं वह सभी समाज में उत्पात पैदा करते हैं जिस कारण नाना प्रकार के संघर्ष समाज में पैदा होते हैं। धर्म की मर्यादाओं का उल्लघंन करके अर्थ और काम की प्राप्ति मोक्ष का आधार नहीं बन पाते हैं।शिव लिंग के पूजन और गुरु कृपा से माया का हरण हो जाता है जिससे बुद्धि की शुद्धि हो जाती है और व्यक्ति की सांसारिक व्याकुलता दूर हो जाती है।भक्ति के लिए व्यक्ति को ईश्वर की कृपा और गुरु कृपा का आकांक्षी होना आवश्यक है। गुरु कृपा तभी प्रभावी होती है जब हम अपनी दुर्बलताओं को गुरु के सम्मुख ठीक उसी प्रकार रखें जैसे एक रोगी रोगमुक्त होने के लिए अपनी समस्याओं को चिकित्सक के सम्मुख रखता है। गुरु को भी शास्त्र का ज्ञाता होना चाहिए और शिष्य के प्रति अनुग्रही होना चाहिए। एक सच्चे शिष्य का अज्ञान दूर न कर पाने पर गुरु पर दोष लगता है। गुरु से हमें शिवत्व को जानने में मदद मिलती है लेकिन केवल जानने से ही फल नहीं मिलता है।फल के लिए शिवलिंग का पूजन भी आवश्यक है।ये बातें काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ ने विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी में नारायण सेवा समिति के तत्वावधान में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन के सत्संग में श्रोताओं से कहीं।


इससे पूर्व पंडाल में पधारने पर भक्तों ने पादुका पूजन किया। और कार्यक्रम के समापन पर गुरुदेव जी की आरती की गई। आज के सत्संग में बामी के अलावा भटेवरा, कठार, महापुर, तिलौरा, भुसौला, कल्याणपुर, रामगढ़, करौरा, अलापुर,भाटाडीह, खरुआंवा, अदारी, लासा आदि गांवों के भक्तगण पंडाल में मौजूद रहे।

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