महात्मा गांधी की स्वच्छता:: ब्यापक अर्थों में प्रोफेसर (डॉ) अखिलेश्वर शुक्ला
सबसे पहले तो गांधी जी भारत के नवनिर्माण के लिए मानवीय सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक मानते हैं। जिसमें नैतिकता तथा स्वावलंबन पर विशेष बल देते हैं। ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण (नैतिकता) तथा स्वावलंबन आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल देते हैं। "सादा जीवन उच्च विचार", "अहिंसा परमो धर्म " जैसे विचार मानवीय मूल्यों को स्वच्छ, सुन्दर, नैतिक आचरण का एक सुगम सरल रास्ता मानते थे। यहां तक कि स्वतंत्र भारत में प्रारम्भिक शिक्षा कक्षा 7 वीं तक मातृभाषा हिंदी में देने को राष्ट्रीय हित में मानते थे। जिससे बच्चों में सहजता, सरलता तथा रूचि बनी रहेगी। भारतीय संस्कृति सभ्यता और ईश्वर में आस्था विश्वास रखने वाले महात्मा गांधी आत्मा की आवाज को सत्य माना। लेकिन सत्य को ईश्वर के साथ जोड़ते हुए कहा कि *सत्य ही ईश्वर है**। महात्मा गांधी आज भी इसीलिए प्रासंगिक हैं, क्योंकि बेरोजगारी, गरीबी, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, स्वार्थी प्रवृत्ति जैसी ज्वलंत मुद्दों/समस्याओं का निदान यदि देखना है तो वह गांधी के विचारों में भलि भांति दिखाई देता है। जन्म जयंती पर स्थलीय स्वच्छता अभियान चलाया जाना तभी सार्थक होगा जब इसे मानसिक स्तर पर भी चलाया जाएगा। मैं ब्यक्तिगत रूप से कह सकता हूं कि -""स्वस्थ शरीर में स्वच्छ विचार होगा तभी भारत अपने खोए हुए पहचान को पुनः विश्व स्तर पर स्थापित कर सकेगा।
प्रोफेसर डॉ अखिलेश्वर शुक्ला पूर्व प्राचार्य विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर