राम वन गमन का मंचन देख दर्शक हुए भाव विह्वल
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जौनपुर। विकास खंड मछलीशहर के गांव कुंवरपुर में वर्ष 1885 से निरन्तर प्रति वर्ष खेली जा रही ऐतिहासिक रामलीला के छठवें दिन राम वन गमन का मंचन किया गया।छठें दिन जैसे ही परदा खुलता है, राजा दशरथ अपने श्वेत बालों को देखकर राज काज राम को सौंपने का निर्णय लेते है और गुरु वशिष्ठ से सलाह मशविरा करके मंत्री सुमंत को राज्याभिषेक की तैयारी करने को कहते हैं। राज्याभिषेक की भनक जैसे ही मंथरा को लगती है वह कैकेई को अपने दोनों वचन राजा दशरथ से मांगने के लिए कान भरती है और अपने षडयंत्र में सफल हो जाती है।राजा दशरथ कैकेयी को मनाने कोपभवन जाते हैं लेकिन कैकेई अपनी मांग पर अड़िग रहती है अन्ततः राजा दशरथ राम को वन गमन की आज्ञा दे देते हैं।राम के साथ सीता और लक्ष्मण तपसी के वेशभूषा में दशरथ से आज्ञा लेने आते हैं। उन्हें वन गमन करते देख दशरथ राम राम कहते हुए मुर्छित होकर जमीन पर गिर जाते हैं जिसे देखकर दर्शक भाव विह्वल हो जाते हैं।राम वन गमन का समाचार जैसे ही पुरवासी सुनते हैं वह भी राम के साथ चल पड़ते हैं।रात में सोते समय पुरवासियों को छोड़कर राम जंगल की ओर आगे निकल जाते हैं। आगे जाने पर उनकी भेंट निषाद राज से होती है और निषाद राज उनको आदर पूर्वक गंगा पार कराते हैं।परदा गिर जाता है।वन गमन के मंचन में दशरथ का अभिनय सुशील,राम का सचिन,लक्ष्मण का अभी, सीता का आकाश, कैकेई का लल्ला, वशिष्ठ का मदन पाठक, कौशल्या का कुंदन, सुमित्रा का लकी और सुमंत का छोटे मिश्रा ने किया जिसकी सराहना दर्शकों ने की।