बेसिक शिक्षा विभाग का असली चेहरा देखना हो तो देखिए "सरजी" फिल्म
इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, कलाकार, कैमरा मैन समेत सभी कार्य प्राथमिक स्कूल के टीचर, छात्र व अभिभावको ने ही किया है। सभी किरदार निभाने वाले किसी फिल्म एक्टर से कम नही है। इस फिल्म में वर्तमान परिवेश में बुनियादी शिक्षा का हू -ब - हू चित्रण किया है। इस फिल्म के माध्यम से कलाकारो ने जहां प्राथमिक शिक्षा को बेहतर करने के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं के बारे में बताया गया है वही कुछ दबंग टीचरो द्वारा बेसिक शिक्षा का चेहरा कैसे खराब किया जा रहा है उसे भी बखूबी प्रस्तुत किया गया है। समाज में फैले भेदभाव, जातिवाद व छूआछूत को खत्म करने का प्रयास किया गया है। इतना ही नही दिव्यांग बच्चे भी कैसे पढ़ लिखकर समाज की मुख्यधारा में जुड़ सकते है यह किरदार एक नन्ही बच्ची ने गुगी बनकर ऐसा निभाया कि हर किसी के दिल की गहरायी में उतर गयी।
दबंग शिक्षक का रोल प्रेम तिवारी ने किया है। उन्होने अपने अभिनय के माध्यम से उन शिक्षको को आईना दिखाने का प्रयास किया है जो तनख्वाह तो सरकार से लेते है लेकिन पद, पावर और पैसे की लालच में नेता, मंत्री व जनप्रतिनिधियों के दरबारी बनकर रह जाते है। शिक्षक जैसे पवित्र पेशे को कलंकित करके उसे भ्रष्ट नेताओं के यहां गिरवी रख दे रहे है।
शिक्षक सुधाकर उपाध्याय इस फिल्म में हेड मास्टर की भूमिका निभायी है। उन्होने पुराने मास्टर साहेब लोग कैसे साईकिल द्वारा स्कूल पहुंचकर बच्चो को सीमित संसाधन में बच्चो को तालिम देते है उसका सराहनीय अभिनय किया है।
इस फिल्म का मुख्य किरदार शिवम सिंह ने किया है। शिवम नये जमाने के शिक्षक कैसे नयी तकनीकी का प्रयोग करके बच्चो को पढ़ा लिखाकर हर क्षेत्र में निपुण बनाते है उसका जीवंत चित्रण किया है। इतना ही नही स्कूल में नामाकंन संख्या बढ़ाने व सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में शिक्षको की भूमिका व परेशानियों को दर्शाया है।
शिवम का रोल इस लिए भी विशेष है कि वे खुद क्षत्रिय होने के बाद भी इस फिल्म में छोटी जाति का अभिनय किया हैं उन्होने इस फिल्म के माध्यम से समाज को यह भी बताने का काम किया कि किस तरह से छोटी जाति के शिक्षको को अगड़ी जाति के लोगो तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में छोटे जाति से तालुख रखने वाले शिक्षको को क्या दुश्वारियां झेलनी पड़ती है तथा इस भेदभाव को दूर करने का उपाय भी इस सिनेमा के माध्यम से बताया है।
"सरजी" फिल्म के माध्यम से स्कूल की रसोईयों का दर्द बखूबी बयां करने का काम की है टीचर नूपुर श्रीवास्तव ने। उन्होने खुद टीचर होने के बाद भी सरकार द्वारा परिषदीय स्कूलों में दोपहर में बच्चो के लिए खाना बनानी वाली रसोईयां का रोल अदा की है। नूपुर ने यह बताने का प्रयास किया कि एक तरफ कुदरत की मार ऊपर से पति शराबी है, उसके परिवार पर शिक्षा की कोई रोशनी नही है।
इस फिल्म में अभिभावक की भूमिका निभाई है शिक्षिका रीता यादव ने, उन्होने यह बताने के का प्रयास किया है कि यदि बेटा प्रतिदिन स्कूल के लिए घर से तैयार होकर निकलता है लेकिन वह स्कूल न जाकर बाग बगीचे में टहलता है। ऐसे बच्चो को मारने पीटने बजाय मनोविज्ञान के माध्यम से स्कूल का रास्ता दिखाने का काम किया है।
नालायक अभिभावक का रोल अदा किया है शिक्षक राकेश सिंह ने। राकेश सिंह रियल में एक आडियल शिक्षक है लेकिन इस सिनेमा में उनका किरदार देखने में लगता है कि अपनी मुक बधिर मासूम बच्ची के लिए एक खलनायक पिता है।
एक महत्वकांक्षी अभिभावक की भूमिका आशीष मौर्य ने निभाया है जो एक गड़ेरिया है। सरकारी स्कूल में अपने बच्चे को तेज होता देख कैसे उसे प्राइवेट स्कूल में दाखिला करा देता है और सरकारी धन का उपयोग बच्चे के फीस में लगा देता है बहुत ज्वलन्त मुद्दा है आज के समय का।
देखिए पूरी फिल्म "सरजी "