अखाड़े से लेकर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तक का सफर....
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सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पुण्यतिथि पर विशेषभारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसा कम ही देखा गया है कि कोई व्यक्ति कुश्ती के अखाड़े से निकलकर प्रधानमंत्री के पद के दावेदार तक पहुंचा हो। धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव को इस रूप में नहीं याद किया जाएगा कि वह 1 बार रक्षा मंत्री, 3 बार मुख्यमंत्री रहे हैं। मुलायम सिंह का आंकलन इस रूप में किया जाएगा कि उन्होंने पिछड़ों और दलितों को आवाज दी। उनकी आवाज को उस समय बुलंद किया जब हिंदूवादी ताकतें बहुत जोरों पर थीं। मुलायम सिंह राम मनोहर लोहिया के साये तले राजनीति शुरू की थी। उनको समाजवादी विचारधारा घुट्टी पी—पीकर मिली। राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर और एक स्वतंत्र पार्टी बनकर कांशीराम से समझौता की और उत्तर प्रदेश को केंद्र में रखकर सभी प्रयोग किया तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गैर कांग्रेसवाद का नारा लगाते हुए मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। जब मुलायम सिंह यादव का उत्तर प्रदेश में दौर आया तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगड़ी जात का वर्चस्व समाप्त हो गया। 1989 से लेकर 2017 तक राजनाथ सिंह और राम प्रकाश गुप्ता अपवाद स्वरूप निकाल दिया जाय तो कोई अगड़ी जाति का मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ। जहां तक (कल्याण सिंह पिछड़ी जात के थे) की बात है तो मुलायम सिंह की देन है। याद कीजिये देवाई के उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव का दिया गया भाषण एक लोध उम्मीदवार को जिताने के लिए कह रहे थे। जब तक मैं मजबूत रहूंगा तब तक कल्याण सिंह की बीजेपी में इज्जत रहेगी।
आजादी के बाद (विभाजन की त्रासदी अलग थी) सबसे बड़ी चुनौती मिली थी। रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद का विवाद तब मुलायम सिंह यादव की राजनीति 360 अंश के कोण पर घूमती है। नेता जी ने सोचा कि अब गैर कांग्रेसवाद से नहीं, बल्कि गैर भाजपावाद से काम चलेगा। अखिलेश यादव कोई ऐसा शब्द बोलने से डरते हैं जिससे कोई वर्ग नाराज न हो जाय लेकिन नेता जी ने सुप्रीम कोर्ट संविधान का पालन करते हुए बाबरी मस्जिद को बचाया जिसमें 16 या 28 लोग मारे गये लेकिन आज का दौर देखा जाय तो किसान आंदोलन में 750 से ज्यादा किसान शहीद हो गये। मणिपुर हालात के बारे में विदेशों में भी निंदा हो रही है लेकिन वह नेरेटिव नहीं बन पाया जो आरएसएस व बीजेपी के लोगों ने मुलायम सिंह के बारे में बताया। मुलायम सिंह यादव को हिंदू हत्यारा और मौलाना मुलायम कहकर बदनाम किया गया।
6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ तब बीजेपी सत्ता के रथ पर सवार हो गयी लेकिन नेता जी ने काशीराम से समझौता करके भारतीय जनता पार्टी की हवा निकाल दी। वरना जो 2017 में हुआ, वह 1993 में हो जाता। मुलायम सिंह यादव केवल यादव के नेता नहीं थे। जैसा कि उनको बदनाम किया जाता है। किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप केवल यादवों की राजनीति करते हैं तो उन्होंने कहा कि मेरे आस-पास तीन नाम हैं— जैनेश्वर मिश्रा, मोहन सिंह एवं बृजभूषण तिवारी। ऐसे कद का कोई यादव नेता दिखा दीजिये। जाने-माने पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने कहा कि जब 1993 में विधानसभा के परिणाम आ रहे थे तो मैंने काशीराम से पूछा कि यह धर्मनिरपेक्षता की सांप्रदायिकता पर जीत है तो उन्होंने कहा कि नहीं। यह हिंदूवादी ताकतों पर जातिवादी ताकतों की जीत है।
विनोद अग्निहोत्री आगे कहते हैं कि आरएसएस के रणनीतिकारों ने 1993 के बाद से ही काम शुरू कर दिया था। उनके एक साथी प्रोफ़ेसर जो आरएसएस के थे, ने कहा कि तुम क्या समझते हो? यह गठबंधन कितने दिन चलेगा? विनोद अग्निहोत्री ने कहा कि चलेगा क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि नहीं, यह गठबंधन जल्दी ही टूट जाएगा। उन्होंने कहा कि कैसे प्रोफेसर साहब ने कहा कि मायावती की दो बैठकें गोविंदाचार्य के साथ हो चुकी हैं। मुलायम सिंह यादव अंदर और बाहर दोनों तरफ लड़ाई लड़ रहे थे। जनता दल (कमंडलवादी ताकतें) उस समय बहुत बड़ी ताकत हुआ करती थी।
विश्वनाथ प्रताप सिंह, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नांडीज, चौधरी अजीत सिंह जनता दल सभी 425 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। दिल्ली का समाजवादी विचारधारा का मीडिया उस समय जनता दल की सरकार बनवा रही थी। मुलायम सिंह यादव के बारे में एक बड़े पत्रकार ने कहा था कि मुलायम सिंह बिजली का वह नंगा तार हैं जो छुएगा जलकर खाक हो जाएगा। मुलायम और काशीराम के गठबंधन को तवज्जो नहीं दे रहा था। मुलायम तो उन लोगों की नजर में हिंदुओं पर गोली चालवाने वाले खलनायक और हिंदू हत्यारा थे। पत्रकार पूर्णिमा यश त्रिपाठी से कांशीराम ने अपना विचार साझा किया था। हम जानते हैं कि अगर मुलायम और मायावती एक साथ रहे तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी कभी सरकार नहीं बना पाएगी लेकिन क्या करें, मायावती पर हमारा बस नहीं चलता। पूर्णिमा आगे कहती हैं कि उस समय पत्रकार बटे हुए थे। ऐसे पत्रकार भी थे जो मुलायम से समय-समय पर सहायता लेते थे। फाइनेंशियल हेल्प भी लेते थे और आगे जाकर उसी को कहानी बनकर उनकी तरफ करप्शन का चार्ज लगाकर उसको प्रचारित भी करते थे। कहानी बनाई जाती थी। मुलायम महाजातिवादी हैं। महा करप्ट हैं। हिंदू विरोधी हैं। देश के लिए खतरनाक हैं। यह सब पत्रकारों द्वारा प्रचारित किया जाता था।
मुलायम सिंह यादव ने जो अपमान सहा, भारत का शायद ही कोई नेता सहा होगा। 1991 में सड़क पर जितने भी गधे—कुत्ते थे, उन पर लिख दिया गया था कि मेरा नाम मुलायम है। एटा जिले के एक कार्यक्रम में नेता जी और सीपी राय साहब जा रहे थे। एटा जिले में सड़क पर जितनी भी दुकानें थीं, उन दुकानदारों को उसी समय मुख से थूक निकाला। नेता जी की अंबेसडर कार निकलती जाती, लोग थूकते जाते। उस एरिया के आस—पास के जिलों में यही हाल था। नेता जी की आंख में आंसू आ गये। नेता जी ने कहा कि देखो राय साहब कितनी घृणा लोगों की मुझसे हो गई है? सीपी राय ने कहा कि नहीं भाई साहब, यही लोग एक दिन माला लेकर खड़े होंगे। जब हकीकत का पता लग जाएगा आपने संविधान का पालन किया है।
याद कीजिये जब 1999 में वाजपेई सरकार एक वोट से गिर गई थी। 21 अप्रैल 1999 को सोनिया गांधी ने महामहिम राष्ट्रपति के0आर0 नारायण से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। लगभग उसी समय मुलायम सिंह यादव ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव आगे किया। 1996 के विपरीत इस बार सीपीएम भी इसके लिए तैयार हो गई लेकिन कांग्रेस इस बार किसी को समर्थन देने के लिए राजी नहीं हुई। बाद में मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस का समर्थन करने से साफ इनकार कर दिया। इस फैसले में सबसे बड़ी भूमिका जॉर्ज साहब फर्नांडीज की थी। लालकृष्ण आडवाणी अपनी किताब माय कंट्री माय लाइफ में लिखते हैं। 21 व 22 अप्रैल 1999 रात में जॉर्ज फर्नांडीज का मेरे पास फोन आया। उन्होंने कहा कि लालजी आपके लिए मेरे पास एक अच्छी खबर है। सोनिया गांधी अगली सरकार नहीं बना सकती। विपक्ष के एक बड़े नेता आपसे मिलना चाहते हैं। यह बैठक न मेरे घर और न ही आपके घर पर होगी। तय हुआ कि यह मुलाकात जया जेटली के सुजान सिंह पार्क वाले घर पर होगी जब मैं जया जेटली के घर गया तो वहां मैंने जॉर्ज फर्नांडीज और मुलायम सिंह को बैठे हुए पाया जॉर्ज साहब ने मुझसे कहा। मेरे दोस्त ने मुझे आश्वासन दिया है कि उनके 20 सांसद किसी भी हालत में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के प्रयास में समर्थन नहीं देंगे। मुलायम सिंह ने भी यह बात मेरे सामने दोहराई लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आडवाणी जी इसके लिए मेरी एक है। मेरी इस घोषणा के बाद कि हमारी पार्टी सोनियां गांधी को सरकार बनाने में मदद नहीं करेगी। आपको यह वादा करना होगा कि आप दोबारा सरकार बनाने का दवा नहीं पेश करेंगे। मैं चाहता हूं कि देश में नए चुनाव करवाए जायं। तब तक एनडीए घटक दलों का भी मन बन चुका था कि मध्यवधि चुनाव का सामना किया जाय। 1999 में मध्यावधि चुनाव हुए और भाजपा फिर सत्ता में आ गई।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर