भागवत धर्म अपनी उदारता के कारण अत्यंत प्रख्यात है :स्वामी नारायणानंद
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जौनपुर : जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज* का गहलाई में चल रही *श्रीमद् भागवत कथा* के *तृतीय दिवस* में उपस्थित भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए बताए कि = *भागवत धर्म अपनी उदारता के कारण अत्यंत प्रख्यात है*
भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान् हों। और वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्' शब्द वाच्य हैं *(कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् : भागवत)*
अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं जिनकी आराधना भक्ति के द्वारा सिद्ध होकर भक्तों को भगवान् का सान्निध्य तथा सेवकत्व प्राप्त कराती है।।
*महाराज श्री ने बताया* कि=भागवत मत का सर्वश्रेष्ठ मान्य ग्रंथ है : श्रीमद्भागवत जो अष्टादश पुराणों में अपने विषयविवेचन की प्रौढ़ता तथा काव्यमयी सरसता के कारण सबसे अधिक महत्वशाली है
भागवत के सिद्धांत भागवतधर्म के महनीय तथा माननीय सिद्धांत हैं। भागवत का कथन है कि परमार्थत: एक ही अद्वय ज्ञान है। वही ज्ञानियों के द्वारा 'ब्रह्म', योगियों के द्वारा 'परमात्मा' तथा भगवद्भक्तों के द्वारा 'भगवान्' कहा जाता है।।
भेद है उपासकों की दृष्टि का तथा उपासना के केवल तारतम्य का। एक अभिन्न परम तत्व नाना उपासना की दृष्टि में भिन्न प्रतीत होता है, परंतु वह अभिन्न
शक्तियों की संपत्ति ही भगवान् की भगवत्ता है। यह शक्ति एक न होकर अनेक हैं तथा अचिंतनीय है।।
अचिंत्यशक्ति का निवास होने के कारण वह 'लीलापुरुषोत्तम' है। इसी के कारण वह एक होते हुए भी अनेक प्रतीत होता है और भासित होने पर भी वह वस्तुत: एक है। इसीलिए वह बहुमूर्तिक होने पर भी एकमूर्तिक है ।।
*कथा के पूर्व काशी धर्मपीठ* परंपरा अनुसार महाराज श्री का पादुका पूजन आचार्य पंडित कृष्ण कुमार दुबे एवं पंडित हिमांशु शुक्ल मुख्ययजमान बलराम मिश्रा,बालकृष्ण मिश्रा, प्रेमकांत मिश्रा ,परमानन्द मिश्र,अखिलेश तिवारी`अकेलाʼ, कृष्ण मोहन तिवारी, विपिन तिवारी, सभापति तिवारी,सहित अनेकों भक्तों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार से सम्पन्न हुई।