धनाभाव से पितरों का श्राद्ध करने में समर्थ न हो तो कोई बात नहीं

प्रत्येक मानव पर जन्म से ही तीन ऋण होते हैं– देव, ऋषि व पितृ। पितृ यज्ञ का दूसरा नाम ही श्राद्ध कर्म है। जीवात्मा को पृथ्वी पर लाने के निमित्त जो ऋण जीवात्मा पर चढ़ता है, उसे ही पितृ ऋण कहा जाता है, इसीलिये बुजुर्गों, माता-पिता या परिजनों का यह ऋण चुकाने के लिए श्राद्ध कर्म का विधान है। शास्त्रों की परम्परानुसार पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने माता-पिता की सेवा करे व उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि का पितृपक्ष में विधिवत श्राद्ध करे।

पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है जब वह करता है अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म श्राद्ध पक्ष वास्तव में पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित करने और नयी पीढ़ी को समृद्ध भारत देश की प्राचीन वैदिक और पौराणिक संस्कृति से अवगत करवाने का पर्व है। हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के 14 दिन निर्धारित किए गए हैं, ताकि आप अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण करवाकर उन्हे शांति और तृप्ति प्रदान करें जिससे आपको उनका आर्शीवाद और सहयोग मिले।
श्राद्ध महिमा में कहा गया है– आयुः पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिता। जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।
जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है। जीवन में किस प्रकार के ऋण से व्यक्ति के जीवन में किस प्रकार की हानि संभव है, इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से किया जाना संभव है।
कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब ज्योतिषीय दृष्टिकोण के अनुसार कुंडली में पितृ दोष के संकेत हो सकते है| कुंडली में ग्रहो एवं भाव की स्थिति के अनुसार पितृ दोष को जाना जा सकता है| ज्योतिष के अनुसार भी जन्म कुंडली में पितृ दोष को सबसे जटिल दोष माना गया है, क्योंकि जिस व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष होता है जो जातक को उसके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के कष्टों से पीड़ित कर सकता है। कुंडली में सूर्य अथवा कुंडली के नौवें घर के एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों के प्रभाव में आ जाने पर कुंडली में पितृदोष बन जाता है।
जन्मकुण्डली में यदि चंद्र पर राहु केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ ऋण से पीड़ित होता है। पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है और इसका शुद्ध निवारण श्राद्ध के दिनों में ही संभव है। वेदों के अनुसार पितरों के लिए किये गये चार प्रकार के विशेष कर्म श्राद्ध कर्म कहलाते हैं तथा ये कर्म हैं— हवन, पिंड दान, तर्पण और सुयोग्य ब्राह्मण भोजन। फलस्वरूप ग्रहों के दुष्प्रभाव दूर होते हैं और पितरों का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त होने से समस्त सुख-सुविधाएं मिलने लगती हैं। पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है|
जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं, उनका आदर-सत्कार करना चाहिए। भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए। धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराए या भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान करें। इससे पितृ दोष का प्रभाव कम होता है। धन की कमी से पितरों का श्राद्ध करने में समर्थ न हो पाये तो वह किसी पवित्र नदी के जल में काले तिल डालकर तर्पण करें। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है।
ब्राह्मण को काले तिल दान करने से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। सूर्यदेव को हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि आप मेरे पितरों तक मेरा भावनाओं और प्रेम से भरा प्रणाम पहुंचाएं और उन्हें तृप्त करें। कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्व. परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
प्रत्येक अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें। प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है। कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है। प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें| पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए। पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए। ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है| पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए। कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए। इससे शुभ फल मिलते हैं|
श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन तथा शराब का त्याग करना चाहिए। सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए|
सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है| प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है| किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है| श्राद्ध करते समय किसी तरह का दिखावा नहीं करना चाहिए तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही श्राद्ध में दान आदि करना उचित रहता है। धन के अभाव में घर में निर्मित खाद्य पदार्थ को अग्नि को समर्पित करके जल से तर्पण करते हुए गौ माता को खिलाकर भी श्राद्ध कर्म पूर्ण किया जा सकता है। श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है।
ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री

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