मेडिकल कालेज व जिला अस्पताल आने वाले मरीज परेशान

अजय पाण्डेय

जौनपुर। अमर शहीद उमानाथ सिंह स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय सिद्दीकपुर एवं शहीद उमानाथ सिंह जिला चिकित्सालय के कर्मचारी, अधिकारी एवं मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों के झंझावात में फंसते हैं मरीज व पीड़ित जिसका असर दूर—दराज से आए मरीजों में देखने को मिलता है। दोनों स्थानों के पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी एवं एक्सरे विभाग में चल रहे आपाधापी का जो खेल खेला जा रहा है, उससे मेडिकल कालेज और जिला चिकित्सालय की छवि धूमिल होती जा रही है। कहीं न कहीं से यह स्पष्ट करता है कि जिला चिकित्सालय एवं उमानाथ सिंह स्वाशासी चिकित्सा महाविद्यालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एवं प्रधानाचार्य की मनमानी की वजह से व्यर्थ के ऊहापोह में मरीज जूझ रहे हैं। शहीद उमानाथ सिंह जिला चिकित्सालय में मरीजों का मेला लगा रहता है।
वहीं राज्य चिकित्सा महाविद्यालय पर सन्नाटा पसरा रहता है, आखिर क्यों? यह अपने आपमें बड़ा सवाल है जबकि मेडिकल कॉलेज में आधुनिक मशीनें एवं कुशल प्रबुद्ध चिकित्सक और कार्यकुशल अनुदेशक उपलब्ध होने के बावजूद भी पीड़ितों को पूर्णतः स्वास्थ लाभ नहीं मिल पा रहा है।
 अवगत कराते चलें कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से ही विकलांगता का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है जबकि वहां पर चिकित्सक और बगल में ही टीवी हॉस्पिटल है जहा एक्स रे मशीन व उनके टेक्निसियन की उपलब्धता के बावजूद भी आवेदकों को जिला चिकित्सालय का रास्ता दिखाया जाता है, आखिर क्यों? दूर—दराज से आए मरीजों को परेशान कर उनका दोहन, शोषण का किया जाता है। एक दिन  के कार्य को हफ्तों में पूर्ण किया जाता है परन्तु इन बिंदुओं पर जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी का ध्यान आकृष्ट क्यों नहीं होता है?
कहीं न कहीं से उन पर भी सवालिया निशान उठता है कि करोड़ों की लागत से बने राज्य चिकित्सा महावद्यालय और टीवी अस्पताल के अधिकारी कर्मचारीगण उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं कि "बने रहो पगला, काम करे अगला, बने रहो लुल, वेतन लो फुल। सभी चिकित्सा संबंधी कार्यों में महत्वपूर्ण है कि राज्य चिकित्सा महाविद्यालय एवं टीवी हॉस्पिटल एवं विकलांग प्रमाण पत्र अथवा विकलांगता की जांच रिपोर्ट सभी शहीद उमानाथ सिंह चिकित्सालय में भेजकर अपने कार्य भार से मुक्त हो, वहां पर तैनात डा. एके पाण्डेय पर कार्य का भार देकर क्या साबित करना चाहता है?
मेडिकल कॉलेज और टीबी हास्पिटल के उच्चस्थ अधिकारी कैसे कर सकते हैं इतनी बड़ी लापरवाही? उमानाथ सिंह स्वाशसी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य शिव कुमार एवं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ जाफरी जो जनपद के ही नगर स्थित आला हॉस्पिटल एक निजी अस्पताल के मालिक हैं, मेडिकल कॉलेज की कोई भी जिम्मदार पद पर आसीन होते हुए भी मरीजों की समस्याओं को नहीं समझ रहे हैं जबकि विभागीय लापरवाहियों पर निश्चित रूप से कार्यवाही करनी चाहिए परन्तु कैसे करेंगे? यह उनकी निष्क्रियता का ही परिणाम है कि स्वयं के अस्पताल को भी चलना होता है।
बताते चलें कि मेडिकल कॉलेज में डॉ अरुण मिश्रा रेडियोलॉजिस्ट एवं डॉ स्मृता सिंह रेडियोलॉजिस्ट पद पर तैनात होने के बावजूद दोनों लोग अन्य पैथोलॉजी पर मौजूद रहते हैं। इनके अपने कार्यक्षेत्र की तैनाती के कार्य अवधि पर नदारद रहने के कारण मरीजों को जिला चिकित्सालय का रास्ता दिखा दिया जाता है। सूत्रों की मानें तो एक ही चिकित्सक सदैव उपलब्ध रहते हैं जिनके ऊपर न्यायालय, विकलांगता, अल्ट्रासाउण्ड पुरुष और महिला अस्पताल सहित जनपद के सभी थानों के पास्को मुकदमों की रिपोर्ट व चिकित्सकीय जांच करना पड़ता है।
चर्चाओं की मानें तो उनके द्वारा संबंधित सभी उच्च अधिकारियों को अपनी पीड़ा की सूचना देने के बाद भी आखिर कार्यवाही क्यों नहीं हो पा रही है? मरीजों और पीड़ितो को सिर्फ जिला चिकित्सालय का मार्ग दिखा दिया जाता है जबकि विकलांगता का प्रमाण पत्र मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय से ही निर्गत किया जाता है लेकिन जांच जिला अस्पताल करेगा तो सबकी निगाह एक ही चिकित्सक पर केंद्रित होती है जबकि सरकार द्वारा राज्य चिकित्सा महाविद्यालय में दो रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सा उपलब्ध होने के पश्चात भी उनकी उपलब्धता नहीं रहती है। सूत्रों की मानें तो डा. अरुण मिश्रा, दूसरी डा. स्मिता सिंह है।
इन बिंदुओं पर यदि ध्यान दिया जाय तो निश्चित रूप से इन्हें उनके उच्च अधिकारियों का बरदहस्त प्राप्त है जिस पर जनता का सवालिया निशान उठ खड़ा होता है कि राज्य चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य शिव कुमार की मनसा के अनुरूप यह कार्य किया और कराया जा रहा है जबकि राज्य चिकित्सा महाविद्यालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक निजी हॉस्पिटल के प्रबंधक मोहम्मद जाफरी महाविद्यालय के क्रिया—कलापों से पूर्णता आस्वस्थ होकर अपना निजी चिकित्सालय चलाने में व्यस्त हैं। बताते चलें कि जिस प्रकार उमानाथ सिंह मेडिकल कॉलेज एवं शहीद उमानाथ सिंह जिला चिकित्सालय में कार्यरत चिकित्सकों द्वारा मरीज को दलालों के माध्यम से गुमराह करके अपने निजी चिकित्सालयों तक बुलाकर मरीजों का चिकित्सा कर उनका दोहन एवं शोषण किया जाता है।
बताते चलें कि उमानाथ सिंह जिला चिकित्सालय में चारों तरफ सीसी कैमरा मुख्य चिकित्सा अधिकारी अधीक्षक द्वारा अपनी सक्रियता को दिखाने हेतु लगाया गया है, अपितु वह सिर्फ दिखावा के ही रूप में काम आ रहा है। ठीक उसी प्रकार सरकार के करोड़ों—करोड़ रुपए लागत से बना हुआ राज्य चिकित्सा महाविद्यालय आज महज वह एक प्रदर्शनी की भांति ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं दिखाई दे रही हैं जबकि वहां पर चल रहे गोरखधंधे पूर्ण रूप से फूल फल रहे हैं। कहने में कत्तई गुरुराज नहीं कि डॉक्टर एवं पैथोलॉजी विभागों के कर्मचारियों के मिलीभगत में धनादोहन को लेकर आए दिन कोई न कोई विवाद जन्म लेता है, फिर भी इस पर स्वास्थ्य विभाग से संबंधित उच्च अधिकारियों के कानों तक जूं तक नहीं रेंगती है। न ही जिलाधिकारी द्वारा इस पर संज्ञान लिया जा रहा है जबकि यदि उच्च अधिकारियों द्वारा आवश्यक है।
कुल मिलाकर औचक निरीक्षण बिना पूर्व सूचना के किया कराया जाय तो निश्चित रूप से दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा परंतु यहां तो सरकारी जुमले या उनके द्वारा दिए गए आदेश ढाक के पत्ते साबित होते हैं। कहने में कत्तई गुरेज नहीं है कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा वाली कहावत चरितार्थ होती प्रतीत होती है। इस पर मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री सहित अन्य सम्बन्धित को संज्ञान लेना अति आवश्यक है।

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