1989 लोकसभा चुनाव में इस आईएएस अधिकारी को नकार चुकी है जौनपुर की जनता

जौनपुर। शिराज ए हिन्द की सरजमी पर दो आईएएस अधिकारी अपनी राजनीतिक की जमीन तलास रहे है। ये दोनो अधिकारी अपने मकशद में कामयाब होते है या नही यह तो आने वाले कल पर निर्भर करता है। लेकिन हम आप को बताते चले कि जौनपुर की जनता बरिष्ठ आईएएस अधिकारी इन्दू प्रकाश सिंह को 1989 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह नकार चुकी है। आईपी सिंह पूरे देश में आईएएस अधिकारियों के गांव जाने वाले गांव माधोपट्टी  गांव के निवासी थे उन्हे इस गांव के पहले आईएएस अधिकारी होने का गौरव भी प्राप्त था। आईपी सिंह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के करीबी रिश्तेदार भी थे। 

बीते कुछ महीने से जिले में दो आईएएस अधिकारियों का चुनाव लड़ने की चर्चा तेजी से हो रही है। इसमें एक जिले के पूर्व जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह है, दूसरे है इस जिले के निवासी अभिषेक सिंह। अभिषेक हाल ही में  अपनी नौकरी से त्याग पत्र भी दे दिया है। अभिषेक ने नयी पारी का श्री गणेश , गणेश पूजन के माध्यम से किया है तो वही दिनेश सिंह माता शीतला चौकियां का आर्शीवाद लेकर अपनी मुहिम में जुटे हुए है। डी के सिंह हर सप्ताह लखनऊ से यहां आकर मातारानी का आर्शीवाद लेने के बाद अपने शुभचिंतको के घर जाकर समर्थन जुटा रहे है। हलांकि दोनो आईएएस अधिकारियों ने अभी तक चुनाव लड़ने की घोषणा नही किया है । भले ही दोनो ब्यूरोक्रेट्स ने अपना पत्ता नही खोला है लेकिन दोनो लोगो की चहल कदमी राजनीति में आने का साफ संकेत दे रहा है।  

इससे पूर्व माधोपट्टी गांव के मूल निवासी  आईएएस अधिकारी इन्दू प्रकाश सिंह 1989 में सेवानिवृत्ति होने के  बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) में शामिल होकर राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया, जो उस समय वी.पी. सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे का हिस्सा था । वे 1989 के लोकसभा चुनाव में  जौनपुर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस (एस) के टिकट पर खड़े हुए, लेकिन भाजपा के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे से हार गए।  उसके बाद वे  1990 में कांग्रेस (एस) के महासचिव बने। 1991 में, उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी 'सझावादी पार्टी' लॉन्च की - जो उस राजनीतिक-आर्थिक विचारधारा के आधार पर बनाई गई थी जिसे उन्होंने अपनी आखिरी किताब - "कॉमनिज्म - ए मेनिफेस्टो ऑफ ए न्यू सोशल ऑर्डर" में रेखांकित किया है । 

1992 में दिल्ली उपचुनाव में सहजवादी पार्टी से लोकसभा के लिए खड़े होने का उनका एक और असफल प्रयास था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार और अनुभवी बॉलीवुड अभिनेता राजेश खन्ना ने जीता था। 1995 में, डॉ. सिंह ने सहजवादी पार्टी का भारतीय जनता पार्टी में विलय कर दिया और भाजपा के विदेशी प्रकोष्ठ के प्रमुख बन गये। 1998-99 में जब पार्टी कुछ समय के लिए सत्ता में आई तो वह भाजपा के राष्ट्रीय परिषद सदस्य बने। इस अवधि के दौरान वह कैबिनेट रैंक के साथ इंडो-जर्मन सलाहकार समूह के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1999 से 2002 तक विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस) के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया - विदेश मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त थिंक टैंक जो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों और विकास सहयोग पर नीति अनुसंधान में माहिर थे। 

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